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UP Election 2022: खतौली विधानसभा सीट पर कांटे की टक्कर के आसार, जानिए चुनावी समीकरण - UP Assembly Election 2022

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर महासंग्राम शुरू हो चुका है. मुज्जफरनगर जिले की खतौली विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी समीकरण क्या है, पढ़िए पूरी खबर....

खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
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Published : Sep 18, 2021, 5:36 PM IST

मुज्जफरनगरः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर पूरे प्रदेश में सियासी बयार चलने लगी है. सभी राजनीतिक दल और उनके नेता मतदताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए जुट गए हैं. नेता और पार्टी जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए भी सियासी दांव चल रहे हैं. जिले में भी सियासी रंग तेजी से बदलने लगा है. जिले के खतौली विधानसभा-15 पर इस बार भाजपा व गठबंधन में सीधे चुनाव होने के आसार नजर आ रहे हैं. इस बार बसपा चुनाव के बाहर की नजर आ रही है, क्योंकि हाल ही में बसपा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली है.

खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.

मुजफ्फरनगर जिले के अंतर्गत आने वाली खतौली विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 3 लाख 12 हजार 531 है. जिसमें पुरुष 1 लाख 70 हजार 48 और महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 45 हजार 468 है. इस विधानसभा सीट पर सपा लोकदल गठबंधन व भाजपा के बीच अहम लड़ाई है. पिछले 3 विधानसभा चुनावों में दो बार रालोद के प्रत्याशी को जीत हासिल हुई. जबकि बीएसपी के केंडिडेट ने एक बार जीत दर्ज की है. लेकिन इस बार सपा, लोकदल व भाजपा दोनों पार्टियों के बीच अहम टक्कर होगी. वहीं अन्य पार्टियां भी जनता को लुभाने में जुटी हुई हैं. बदले समीकरणों को देखते हुए इस बार बहुजन समाज पार्टी के लिए उम्मीदवार तलाशना भी अहम चुनौती हो सकती है. क्योंकि बसपा से टिकट लेने वाले दावेदार दूर-दूर तक भी नजर नहीं आ रहे हैं.

खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
खतौली विधानसभा के पिछले परिणामों पर एक नजरविधानसभा चुनाव 2017 भाजपा प्रत्याशी विक्रम सैनी ने सपा के चंदन सिंह चौहान को लगभग 30000 वोटों के अंतर से हराया था. वहीं बहुजन समाज पार्टी के शिवांग सैनी तीसरे स्थान पर रहे थे. जबकि विधानसभा चुनाव 2012 में रालोद के करतार सिंह भड़ाना ने बीएसपी के तारा चंद शास्त्री को करीब 6 हजार वोटों के अंतर से मात दी थी. तीसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी श्याम लाल रहे थे. जबकि बीजेपी के प्रत्याशी सुधीर कुमार 11.18 फीसदी वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे थे.
खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.

इसे भी पढ़ें-UP Assembly Election 2022: यहां जो जीता वही सिकंदर , जानिए क्यों खास हैं 'सुलतानपुर' की विधानसभा सीटें


वहीं, 2007 के चुनावों में बीएसपी के प्रत्याशी योगराज ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने रालोद के प्रत्याशी राजपाल सिंह बालियान को पराजित किया था. तीसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी प्रमोद त्यागी रहे थे. जबकि निर्दलीय साबिर अली 10.28 फीसदी वोट हासिल कर के चौथे नंबर पर रहे थे. इसी तरह 2002 के चुनावों में यहां से राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशी राजपाल सिंह बालियान विजयी रहे थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रमोद त्यागी को पराजित किया था. तीसरे स्थान पर 11.51 फीसदी वोटों के साथ बीएसपी के अकरम खान रहे थे. जबकि चौथे स्थान पर कांग्रेस के उम्मीदवार अशोक कुमार रहे थे.



ये है प्रमुख समस्याएं
खतौली विधान सभा को गन्ना बेल्ट कहा जाता है और हमेशा यहां पर गन्ना मूल्य भुगतान हमेशा से किसानों की समस्या रही है. चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के द्वारा किसानों को लुभाने के लिए गन्ने का तुरंत भुगतान कराना व गन्ना मूल्य बढ़ाकर दिलाना उम्मीदवारों द्वारा आश्वासन दिया जाता है और बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं. लेकिन चुनाव समाप्त होने के बाद यह सभी वादे ठंडे बस्ते में चले जाते हैं. इसलिए यहां किसान गन्ना मूल्य के भुगतान को लेकर सड़क से विधानसभा तक की लड़ाई लड़ते हैं.

मुज्जफरनगरः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर पूरे प्रदेश में सियासी बयार चलने लगी है. सभी राजनीतिक दल और उनके नेता मतदताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए जुट गए हैं. नेता और पार्टी जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए भी सियासी दांव चल रहे हैं. जिले में भी सियासी रंग तेजी से बदलने लगा है. जिले के खतौली विधानसभा-15 पर इस बार भाजपा व गठबंधन में सीधे चुनाव होने के आसार नजर आ रहे हैं. इस बार बसपा चुनाव के बाहर की नजर आ रही है, क्योंकि हाल ही में बसपा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली है.

खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.

मुजफ्फरनगर जिले के अंतर्गत आने वाली खतौली विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 3 लाख 12 हजार 531 है. जिसमें पुरुष 1 लाख 70 हजार 48 और महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 45 हजार 468 है. इस विधानसभा सीट पर सपा लोकदल गठबंधन व भाजपा के बीच अहम लड़ाई है. पिछले 3 विधानसभा चुनावों में दो बार रालोद के प्रत्याशी को जीत हासिल हुई. जबकि बीएसपी के केंडिडेट ने एक बार जीत दर्ज की है. लेकिन इस बार सपा, लोकदल व भाजपा दोनों पार्टियों के बीच अहम टक्कर होगी. वहीं अन्य पार्टियां भी जनता को लुभाने में जुटी हुई हैं. बदले समीकरणों को देखते हुए इस बार बहुजन समाज पार्टी के लिए उम्मीदवार तलाशना भी अहम चुनौती हो सकती है. क्योंकि बसपा से टिकट लेने वाले दावेदार दूर-दूर तक भी नजर नहीं आ रहे हैं.

खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
खतौली विधानसभा के पिछले परिणामों पर एक नजरविधानसभा चुनाव 2017 भाजपा प्रत्याशी विक्रम सैनी ने सपा के चंदन सिंह चौहान को लगभग 30000 वोटों के अंतर से हराया था. वहीं बहुजन समाज पार्टी के शिवांग सैनी तीसरे स्थान पर रहे थे. जबकि विधानसभा चुनाव 2012 में रालोद के करतार सिंह भड़ाना ने बीएसपी के तारा चंद शास्त्री को करीब 6 हजार वोटों के अंतर से मात दी थी. तीसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी श्याम लाल रहे थे. जबकि बीजेपी के प्रत्याशी सुधीर कुमार 11.18 फीसदी वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे थे.
खतौली विधानसभा की रिपोर्ट.
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वहीं, 2007 के चुनावों में बीएसपी के प्रत्याशी योगराज ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने रालोद के प्रत्याशी राजपाल सिंह बालियान को पराजित किया था. तीसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी प्रमोद त्यागी रहे थे. जबकि निर्दलीय साबिर अली 10.28 फीसदी वोट हासिल कर के चौथे नंबर पर रहे थे. इसी तरह 2002 के चुनावों में यहां से राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशी राजपाल सिंह बालियान विजयी रहे थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रमोद त्यागी को पराजित किया था. तीसरे स्थान पर 11.51 फीसदी वोटों के साथ बीएसपी के अकरम खान रहे थे. जबकि चौथे स्थान पर कांग्रेस के उम्मीदवार अशोक कुमार रहे थे.



ये है प्रमुख समस्याएं
खतौली विधान सभा को गन्ना बेल्ट कहा जाता है और हमेशा यहां पर गन्ना मूल्य भुगतान हमेशा से किसानों की समस्या रही है. चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के द्वारा किसानों को लुभाने के लिए गन्ने का तुरंत भुगतान कराना व गन्ना मूल्य बढ़ाकर दिलाना उम्मीदवारों द्वारा आश्वासन दिया जाता है और बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं. लेकिन चुनाव समाप्त होने के बाद यह सभी वादे ठंडे बस्ते में चले जाते हैं. इसलिए यहां किसान गन्ना मूल्य के भुगतान को लेकर सड़क से विधानसभा तक की लड़ाई लड़ते हैं.

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