मुजफ्फरनगरः जिले के पुरबालियान गांव की बेटी दिव्या काकरान 5 अगस्त को बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में अपना पहला मैच खेलेंगी. 21 साल की उम्र में अर्जुन अवार्ड जीतने वाली दिव्या के पीछे संघर्ष की कहानी है. दिव्या के पिता सूरज भी पहलवान थे. लेकिन परिवार की आर्थिक तंगी के चलते उन्होंने पहलवानी छोड़ दी और अखाड़ों में दंगल के दौरान लंगोट बेचने लगे. वहीं उनकी मां संयोगिता घर पर लंगोट सिलती थी.
मंगलवार को दिव्या अपने पहले कॉमनवेल्थ गेम्स मैच के लिए रवाना हुई है. दिव्या के पिता कहते है की चार लोगों के परिवार में हम आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे और मैं पहलवानी छोड़ चुका था. दंगल के दौरान लंगोट बेचकर जो पैसे मिलते थे. उसी से घर चलता था और दिव्या बड़ी हो रही थी. घर में ही खेल के दौरान वो कुश्ती के दांव-पेंच दिखाने लगी थी. मुझे दिव्या को पहलवान बनाने की चाहत पहले से ही थी.
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पहली कुश्ती जीतने पर मिले थे तीन हजारः एक दिन मैं दिव्या को अपने साथ एक दंगल में ले गया और वहां एक जानकार ने दिव्या से उसके बेटे को कुश्ती लड़ाने को कहा गया. जीत पर 500 रुपए का ईनाम रखा गया और मैंने भी इंकार नहीं किया. बेटी दिव्या ने पहली कुश्ती में ही लड़के को चित कर दिया. उसे ईनाम में 3 हजार रुपए मिले थे. पहली बार मुझे लगा कि दिव्या कुश्ती में पैसा कमा सकती है और मुझे ये स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं कि दिव्या को पैसों के लिए पहलवान बनाया है, क्योंकि एक वक्त पर हमारे पास दूध के भी पैसे नहीं होते थे. जब दिव्या ने दंगल जीतना शुरू किया तो परिवार का खर्च चला और इसके बाद दिव्या ने फ्री स्टाइल कुश्ती में पीछे मुड़कर नहीं देखा. उसने अंतरराष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल भी जीते और उसे 21 साल की उम्र में उसे अर्जुन अवार्ड भी मिला.
मुजफ्फनगर की बेटी पहलवान दिव्या काकरान ने बीते सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदकों की झड़ी लगा दी है. कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में स्वर्ण, वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य, एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीत चुकी है. कामयाबी के चलते उन्हें अर्जुन और रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड मिला है. वहीं दिव्या काकरान ने बताया कि कॉमनवेल्थ खेलों की बढ़िया तैयारी हुई है.
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