मुरादाबाद: इंसान के मन में समाज के लिए कुछ करने का जज्बा हो तो राह की अड़चनें भी रास्ता बनाने में जुट जाती हैं. जी हां कुछ ऐसी ही कहानी है मुरादाबाद की रहने वाली सुषमा की. ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी मध्यमवर्गीय परिवार की यह लड़की अपने मजबूत इरादों और समाज को राह दिखाने के जज्बे के साथ नशामुक्ति का अभियान चला रही है.
नशा मुक्ति के लिए चलाया अभियान
शराब से उजड़ते घरों को नजदीक से देख चुकी सुषमा पिछले चार सालों से अपने इस अभियान के जरिये सैकड़ों लोगों को नशे की लत से उबार चुकी है. समाज और परिजनों के विरोध के बावजूद सुषमा लोगों को जागरूक करती रही और आज हर किसी को उस पर गर्व है. सुषमा की नशामुक्ति मुहिम में बड़ी संख्या में वो महिलाएं और युवतियां जुड़ रही हैं जिनके परिवार नशे के नुकशान को झेल रहे हैं.
परिवार में रही संसाधनों की कमी
मध्यमवर्गीय परिवार में पांच भाई-बहनों के परिवार में पली सुषमा के पास संसाधनों की कमी थी लेकिन उसके इरादे अभावों पर हमेशा जीत हासिल करते रहे. नशे के आदी चाचा की असमय मौत ने सुषमा को समाज के लिए कुछ करने का जज्बा दिया और नशा मुक्त समाज उसके लिए एक अभियान बन गया. जवान लड़की अकेले घर से बाहर समाज को जागरूक करने निकली तो पड़ोसियों के साथ परिजनों ने भी विरोध किया लेकिन यहां भी सुषमा विरोध को पीछे छोड़ आगे बढ़ती चली गयी.
लोगों को नशे से दूर रहने के लिए किया प्रेरित
लोगों को नशे से दूर रहने के लिए अभियान चला रही सुषमा हर रोज आस-पास के गांवों में लोगों के लिए चौपाल लगाती है. इसके साथ ही वह खुद नशे की लत रखने वाले लोगों के परिवारों से सम्पर्क कर उन्हें नशा छोड़ने के लिए तैयार करती है. सुषमा के अभियान के बाद अकेले उसके गांव में पचास से ज्यादा लोग शराब पीना छोड़ चुके है. नशामुक्ति का यह अभियान धीरे-धीरे अपना दायरा फैला रहा है, साथ ही सुषमा का साथ देने वाले लोगों की तादात भी हर दिन बढ़ती जा रही है. जिस अभियान को लेकर लोग हमेशा विरोध करते नजर आते थे आज खुद सुषमा की तीन बहनें उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है.
इस अभियान को मिली सराहना
छोटे कदमों से शुरू हुआ यह सफर धीरे-धीरे ही सही लेकिन आगे बढ़ रहा है. सुषमा के मुताबिक उसके लगातार प्रयासों के बाद सैकड़ों लोग शराब जैसी बुराई से दूर हुए हैं, लेकिन इस बुराई को समाप्त करने के लिए लंबा सफर तय करना होगा. ग्रामीण परिवेश में नशे के चलते उजड़ते परिवार और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं सुषमा के इस अभियान को खूब सराह रहीं हैं. शुरुआती विरोध के बाद अब लोगों के समर्थन को सुषमा खुद के लिए प्रेरणा मानती हैं और उसे विश्वास है कि एक दिन वह अपने मकसद को पूरा जरूर करेगी.