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मेरठ के इस शिव मंदिर में पूजा करती थीं रानी मंदोदरी, वरदान में वर के रूप में मिला था रावण

मेरठ का एक शिव मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता है. यह मंदिर रामायण कालीन बताया जाता है. चलिए जानते हैं इसकी मान्यता और इतिहास के बारे में.

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Published : Jul 15, 2023, 8:04 PM IST

मेरठः शायद आपको मालूम हो कि मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है. यहां एक ऐसा शिव मंदिर हैं जिसे लेकर मान्यता है कि इस मंदिर में रानी मंदोदरी शिवजी की पूजा किया करतीं थीं. उन्होंने भगवान से बुद्धिमान और बलशाली पति मांगा था. उनकी नियमित पूजा से प्रसन्न होकर देवाधिदेव ने उन्हें वर के रूप में रावण दिया था. मंदोदरी से रावण का विवाह हुआ था. यहां सावन मास में भक्तों का तांता लगा रहता है.

सावन में सिद्ध पीठ बिल्वेश्वर शिव मंदिर में उमड़ रहे भक्त.
कैंट एरिया में स्थित भगवान शिव के दक्षिणमुखी मन्दिर में रानी मंदोदरी नियमित पूजन के लिए आती थीं. इसके बाद रावण को उन्होंने पति के रूप में पाया था. शिवरात्रि के मौके पर तो यहां मेले जैसा माहौल रहता है. आज सावन की शिवरात्रि है. भगवान शिव की आराधना के लिए शिवालयों में शिवभक्त पहुंचे.
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एक नजर.

प्रसिद्ध सिद्ध पीठ के पुजारी हरिश्चंद्र जोशी ने बताया कि पहले मेरठ का नाम मयराष्ट्र था. यह मय राजा की नगरी थी जो कि अब मेरठ हो गई है. मय राजा की बेटी मंदोदरी थी. वह शिवभक्त थी. मान्यता है कि इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ था. रानी मंदोदिरी ने यहां शिव पूजा नियमित रूप से की थी. मंदोदरी की पूजा और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें मनवांछित वर मांगने को कहा था. ऐसा कहा जाता है कि मंदोदरी ने भगवान शिव से अपने लिए सबसे शक्तिशाली और विद्वान पति को वरदान के रूप में मांगा था. भोलेनाथ के आशीर्वाद से उन्हें रावण जैसा शक्तिशाली और विद्वान पति राजा के रूप में मिला था. इस वजह से मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है.

उनके मुताबिक यह भी मान्यता है कि जो इस मंदिर में 41 दिन तक लगातार पूजा-अर्चना कर दीपक जलाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है. मन्दिर की महंत सुधा गोस्वामी बताती हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो यहां आता है उसकी झोली भर जाती है. यहां सावन में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है.

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मेरठः शायद आपको मालूम हो कि मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है. यहां एक ऐसा शिव मंदिर हैं जिसे लेकर मान्यता है कि इस मंदिर में रानी मंदोदरी शिवजी की पूजा किया करतीं थीं. उन्होंने भगवान से बुद्धिमान और बलशाली पति मांगा था. उनकी नियमित पूजा से प्रसन्न होकर देवाधिदेव ने उन्हें वर के रूप में रावण दिया था. मंदोदरी से रावण का विवाह हुआ था. यहां सावन मास में भक्तों का तांता लगा रहता है.

सावन में सिद्ध पीठ बिल्वेश्वर शिव मंदिर में उमड़ रहे भक्त.
कैंट एरिया में स्थित भगवान शिव के दक्षिणमुखी मन्दिर में रानी मंदोदरी नियमित पूजन के लिए आती थीं. इसके बाद रावण को उन्होंने पति के रूप में पाया था. शिवरात्रि के मौके पर तो यहां मेले जैसा माहौल रहता है. आज सावन की शिवरात्रि है. भगवान शिव की आराधना के लिए शिवालयों में शिवभक्त पहुंचे.
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प्रसिद्ध सिद्ध पीठ के पुजारी हरिश्चंद्र जोशी ने बताया कि पहले मेरठ का नाम मयराष्ट्र था. यह मय राजा की नगरी थी जो कि अब मेरठ हो गई है. मय राजा की बेटी मंदोदरी थी. वह शिवभक्त थी. मान्यता है कि इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ था. रानी मंदोदिरी ने यहां शिव पूजा नियमित रूप से की थी. मंदोदरी की पूजा और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें मनवांछित वर मांगने को कहा था. ऐसा कहा जाता है कि मंदोदरी ने भगवान शिव से अपने लिए सबसे शक्तिशाली और विद्वान पति को वरदान के रूप में मांगा था. भोलेनाथ के आशीर्वाद से उन्हें रावण जैसा शक्तिशाली और विद्वान पति राजा के रूप में मिला था. इस वजह से मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है.

उनके मुताबिक यह भी मान्यता है कि जो इस मंदिर में 41 दिन तक लगातार पूजा-अर्चना कर दीपक जलाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है. मन्दिर की महंत सुधा गोस्वामी बताती हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो यहां आता है उसकी झोली भर जाती है. यहां सावन में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है.

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