मेरठ: आज पूरे देश में 22वां कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाया जा रहा है. आज देश कारगिल की बर्फीली पहाड़ियों पर 22 साल पहले विजय की शौर्य गाथा लिखने वाले भारत मां के वीर सपूतों को नमन कर रहा है. करगिल युद्ध (Kargil war) के दौरान भारत मां के वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहूति देकर दुश्मनों के ना'पाक' मंसूबों को नाकामयाब करते हुए देश की रक्षा की थी. साथ देश दुश्मनों को यह बता दिया था कि जब भी भारत मां की आन-बान-शान में किसी की बुरी नजर पड़ेगी तो यह जवान अपने लहू से रक्षा करेंगे.
करगिल की दुर्गम चोटियों से दुश्मनों को खदेड़कर भारत मां का तिरंगा फहराने के लिए मेरठ जिले के भी पांच जवान शामिल थे जिन्होंने इस युद्ध में अपनी शहादत देकर भारत माता की रक्षा की थी. इन्हीं में से एक जवान थे ग्रेनेडियर योगन्द्र सिंह यादव(Grenadier Yogendra Singh Yadav). इस बहादुर जवान ने आखिरी दम तक दुश्मनों से मोर्चा लिया और सत्रह पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर कर दिया. इस जवान को बॉलीवुड ने भी फिल्म एलओसी कारगिल के जरिए नमन किया है. फिल्म में ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव का किरदार आशुतोष राणा ने निभाया है.
ग्रेनेडियर योगन्द्र सिंह यादव ने कारगिल युद्ध(Kargil War) में जाने से पहले एक चिट्ठी अपने परिवार वालों के लिए लिखी थी, जिसमें कहा था कि मैं वापस आऊंगा डरने की बात नहीं है. योगेन्द्र सिहं यादव वापस तो आए, लेकिन तिरंगे में लिपटकर. उसी तिरंगे में लिपटकर जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने खाई थी. हालांकि शहीद योगेंद्र यादव के परिजनों को मलाल है कि मरणोपरांत सेना व सरकार ने परमवीर चक्र से सम्मानित करने की घोषणा की थी, लेकिन आज तक उन्हें यह सम्मान नहीं दिया गया. उनकी जगह उन्हीं के नाम से उनकी यूनिट में शामिल सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव को दे दिया गया.
कारगिल युद्ध(Kargil War) से पहले लिखी थी चिट्ठी
'मैं ठीक-ठाक हूं. कारगिल में लड़ाई छिड़ गई है. मुझे पहाड़ों पर जाना पड़ रहा है. हम लोग वहां के लिए रवाना हो गए हैं. कोई भी दिल छोटा मत करना... डरने की कोई बात नहीं है. मेरे साथ पूरी यूनिट है. दुश्मनों को मारकर मैं वापस आऊंगा'. शहीद ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव(Grenadier Yogendra Singh Yadav) की ये वो आखिरी चिट्ठी थी, जो उन्होंने कारगिल जाने से कुछ देर पहले लिखी थी.
चिट्ठी घर पहुंचने के कुछ दिनों बाद ही ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव के शहीद होने का संदेश आ गया. 17 दुश्मनों को मारकर ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह टाइगर हिल पर शहीद हो गए. उनके इस अदम्य साहस और शौर्य के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना मेडल से सम्मानित किया गया. शहीद योगेन्द्र सिंह की पत्नी उन्हें याद कर फूट फूटकर रोने लगीं. वो बताने लगीं कि जब उनके पति ने देश के लिए प्राण न्योछावर किए थे तो उनकी उम्र मात्र अट्टाईस वर्ष थी. बच्चों की उम्र सात साल, चार साल की थी. वहीं बेटे संदीप और दीपक बताते हैं कि उन्हें अपने पिता पर नाज है. दोनों बेटे कारगिल के इस योद्धा को सैल्यूट करते नजर आए.
हस्तिनापुर निवासी ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव (Grenadier Yogendra Singh Yadav) की तैनाती 1999 के वक्त जम्मू में थी. कारगिल में लड़ाई छिड़ी तो उनकी बटालियन 18 ग्रेनेडियर को कारगिल पहुंचने का आदेश हुआ. योगेंद्र सिंह भी बटालियन के साथ रवाना हो गए. टाइगर हिल से दुश्मन को खदेड़ने में दिक्कत आ रही थी. उनके पास हैवी इनफैंट्री गन के साथ मिसाइल गन भी थी. 18 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मन बैठा था. ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह ने अपने सात साथियों के साथ प्वाइंट पर पहुंचकर पाकिस्तानी सैनिकों के बंकरों को ध्वस्त कर दिया और दुश्मन के 17 जवानों को मौत के घाट उतार दिया. पांच जुलाई की शाम दुश्मन की जवाबी गोलीबारी में ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव शहीद हो गए.
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शहीद योगेन्द्र सिंह की इस विजय गाथा पर बॉलीवुड़ ने फिल्म भी बनाई. इस फिल्म में आशुतोष राणा ने शहीद योगेन्द्र सिंह का किरदार निभाया. ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव को शुरू से ही सेना में जाने का जज्बा था. एक भर्ती में फेल हुए तो उन्होंने दोबारा तैयारी शुरू कर दी. वह कहा करते थे कि नौकरी करो तो सेना में करो. अपने छोटे भाई महिपाल सिंह को भी उन्होंने सेना में भर्ती कराया, लेकिन अफसोस कि भाई का जब नंबर आया तो कुछ दिन पहले ही वो शहीद हो गए. योगेंद्र सिंह यादव के पूरे परिवार ने महिपाल से उनकी इच्छा पूरी करने को कहा. अपने भाई के सपने को साकार करते हुए महिपाल 18 ग्रेनेडियर दिल्ली में तैनात हैं.
परिजनों को है मलाल
कारगिल युद्ध में अपने शौर्य का परिचय देते हुए 17 दुश्मनों को मारकर शरीद हुए योगेंद्र सिंह यादव के परिवार की सरकार से नाराजगी भी है. शहीद के भाई सुशील यादव का कहना है कि मरणोपरान्त उनके भाई को परमवीर चक्र देने की घोषणा की गई थी. लेकिन जब परमवीर चक्र देने की बारी आई तो सेना और सरकार ने उनके भाई की जगह उन्हीं की यूनिट में उन्हीं के नाम से शामिल सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव को दे दिया. इस बात का उन्हें हमेशा मलाल रहेगा.
शहीद योगेंद्र सिंह की पत्नी वीर नारी उर्मिला देवी बताती हैं जब वो शहीद हुए तो बड़ी बेटी ज्योति आठ साल की थी. बेटा संदीप सात और दीपक चार साल का था. आखिरी खत लड़ाई के दौरान भेजा था. लिखा था कि युद्ध शुरू हो गया है, लेकिन घबराना मत. दुश्मनों को मारकर ही वापस आऊंगा, लेकिन वो नहीं लौटे. गोलियों से छलनी उनका पार्थिव शरीर आया. शहीद योगेंद्र सिंह की बेटी की शादी हो चुकी है. बड़ा बेटा गैस एजेंसी का काम देखता है. छोटा बेटा दीपक है. दोनों बेटे कहते हैं कि उन्हें अपने पिता पर फक्र है कि उन्होंने देश के लिए जान दी.