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Infantry Day: विभाजन के बाद पाक की पहली नापाक हरकत को देश की पहरेदार सेना ने दिया था मुंहतोड़ जवाब

आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान की ओर से भारतीय क्षेत्र में हुए पहले हमले के दौरान इन्फेंट्री (पैदल सैनिक) जवानों के सर्वोच्च बलिदान की याद में इन्फैंट्री दिवस (Infantry Day 2023) को मनाया जाता है. आईए जानते हैं आखिर क्या है इस दिन विशेष दिन का महत्व.

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इन्फैंट्री दिवस
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 27, 2023, 9:50 PM IST

सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार ने ईटीवी भारत से साझा की जानकारी

मेरठ: भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद पहली बार पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने (Pakistan attempt to capture Kashmir) के लिए नापाक कोशिश की थी, जिसमें बहादुर सिख रेजिमेंट की पलटन ने जीत हासिल करके पाकिस्तान को खदेड़ दिया था और जीत हासिल की थी. देश की पहरेदार पैदल सेना की वीरता और सहादत को याद करने के लिए पैदल सेना दिवस यानी इन्फैंट्री डे हर साल 27 अक्टूबर को मनाया जाता है. ईटीवी भारत ने सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार से इस दिन के महत्व पर बातचीत की. आईए जानते हैं आखिर क्या है इस विशेष दिन का महत्व.

सेना ने पाकिस्तान को दिया था मुंहतोड़ जवाब: हर साल 27 अक्टूबर को भारतीय सेना इन्फैंट्री डे (indian army infantry day) के रूप में मनाती है. यह वह दिन है जब पाकिस्तान ने बंटवारा होने के बाद 27 अक्टूबर 1947 को हमलावरों की मदद से हमारे देश पर हमला किया था.यह हमला पाकिस्तान की तरफ से कश्मीर में हुआ था. सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार बताते हैं कि बंटवारे के वक्त कश्मीर हमें मिला था. पाकिस्तान की नीयत खराब थी तो उन्होंने कश्मीर पर अटैक किया था. लेकिन, हमारी बहादुर सेना ने जिसमें प्रमुख रूप से हमारी सिख रेजिमेंट समेत बाकि सेना ने मिलकर पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया था. कश्मीर आज भी हमारा अभिन्न अंग है. लेकिन, पाकिस्तान को तब से लेकर अब तक कई बार मुंह की खानी पड़ी.

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देश मना रहा 77 वां इन्फैंट्री दिवस
भारत की फौज के सामने नहीं टिका पाकिस्तान: सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार बताते हैं कि पाकिस्तान की तरफ से कई बार प्रयास किये गए हैं. लेकिन, पाकिस्तानी सेना के बुरे मंसूबों को हमारी सेना ने हमेशा करारा जवाब देकर विफल करने का काम किया है. पाकिस्तानी सेना ने आजादी और बंटवारे के बाद सबसे पहले जहां अक्टूबर 1947 में हमला किया, उसी तरह 1965,1971 हो या फिर कारगिल वार जब भी पाकिस्तान ने हमसे टकराने की कोशिश की उसे हार का ही मुंह देखना पड़ा. वे कभी अपने प्रयास में सफल नहीं हो सके. रिटायर्ड सैन्य अधिकारी नरेश कुमार कहते हैं कि पाकिस्तान की असफलता की वजह यह है कि हमारे देश के वीर जवान बहादुर फौज के सामने उनकी कोई हैसियत ही नहीं है. हमारी बहादुर सेनाओं का देश प्रेम और जज्बा ऐसा है कि हमारे सामने दुश्मन रुक नहीं सकता.


पावरफुल है पैदल सेना: रिटायर्ड सैन्य अधिकारी नरेश कुमार बताते हैं कि 1971 में भी हमनें पाकिस्तान को सबक सिखाया था. तब ईस्ट पाकिस्तान को अलग करके बांग्लादेश अलग देश बनाया गया था. आज के दिन हमारी सेवा इतनी शक्तिशाली है, कि चाहे वह पाकिस्तान हो और चाहे चीन, या फिर कोई अन्य देश यह हिम्मत नहीं कर सकता कि वह हमसे कुछ छीन ले, या हमारे खिलाफ कुछ कार्रवाई कर सके.

इसे भी पढ़े-Infantry Day 2023 : भारतीय पैदल सैनिकों के किस सर्वोच्च बलिदान की याद में मनाया जाता है इन्फेंट्री दिवस, जानें इतिहास


सिख रेजिमेंट का रहा खास योगदान:सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार बताते हैं कि अक्टूबर 1947 में जब पाकिस्तान ने कबाइलियों की मदद से कश्मीर में हमला किया था. सिख रेजिमेंट ने बहादुरी से असाधारण साहस का परिचय देकर पाकिस्तान की सेना के बुरे मंसूबों पानी फेर दिया था.

हर बार दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देती है पैदल सेना: इन्फैंट्री भारतीय सेना की सबसे बड़ी लड़ाकू शाखा है. देश की सीमाओं से लेकर अलग- अलग जगहों पर हमारी पैदल सेना ने अपना लोहा कई बार मनवाया है. आजादी के बाद से ही पैदल सेना की गाथा लाखों युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित करती है. देश की सीमाओं की निगेहबानी करने वाली पैदल सेना की वीरता और साहस के रूप में 27 अक्टूबर को याद किया जाता है. बता दें कि देश में पहला परमवीर चक्र भी दिया गया था. 1947 में हुए भारत पाक के बीच मुकाबले में कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन भी शामिल थी. कुमाऊं रेजिमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा को तब देश में पहली बार परमवीर चक्र दिया गया था. पैदल सेना को “युद्ध की रानी के रूप में भी जाना जाता है. यह आजाद भारत की ऐसी पहली कार्रवाई थी जिसमें बड़े पैमाने पर सेना का इस्तेमाल तब हुआ था.


आज की युवा पीढ़ी को यह जानना है जरूरी: जब पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने की योजना बनाई थी तो 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने 5 हजार कबाइलियों को कश्मीर में घुसपैठ करके कब्जा करने के लिए उतारा था. तब कश्मीर में महाराजा हरि सिंह का शासन था और भारत सरकार से उन्होंने मदद मांगी थी. महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे. जिसके बाद आजाद भारत की तरफ से पहली सैन्य कार्रवाई हुई. भारतीय पैदल सैनिकों ने कश्मीर को कबायलियों के चंगुल से छु़ड़ाकर मुंहतोड़ जवाब दिया था. कुछ वर्षो के बाद 1956 में इसे भारतीय संघ का हिस्सा भी घोषित कर दिया गया था. रिटायर सैन्य अधिकारी कर्नल नरेश कुमार कहते हैं कि देश के युवाओं को इतिहास जानना चाहिए. मेरठ छावनी में भी आज के दिन कार्यक्रम होते हैं, वीरों को नमन किया जाता है.

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सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार ने ईटीवी भारत से साझा की जानकारी

मेरठ: भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद पहली बार पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने (Pakistan attempt to capture Kashmir) के लिए नापाक कोशिश की थी, जिसमें बहादुर सिख रेजिमेंट की पलटन ने जीत हासिल करके पाकिस्तान को खदेड़ दिया था और जीत हासिल की थी. देश की पहरेदार पैदल सेना की वीरता और सहादत को याद करने के लिए पैदल सेना दिवस यानी इन्फैंट्री डे हर साल 27 अक्टूबर को मनाया जाता है. ईटीवी भारत ने सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार से इस दिन के महत्व पर बातचीत की. आईए जानते हैं आखिर क्या है इस विशेष दिन का महत्व.

सेना ने पाकिस्तान को दिया था मुंहतोड़ जवाब: हर साल 27 अक्टूबर को भारतीय सेना इन्फैंट्री डे (indian army infantry day) के रूप में मनाती है. यह वह दिन है जब पाकिस्तान ने बंटवारा होने के बाद 27 अक्टूबर 1947 को हमलावरों की मदद से हमारे देश पर हमला किया था.यह हमला पाकिस्तान की तरफ से कश्मीर में हुआ था. सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार बताते हैं कि बंटवारे के वक्त कश्मीर हमें मिला था. पाकिस्तान की नीयत खराब थी तो उन्होंने कश्मीर पर अटैक किया था. लेकिन, हमारी बहादुर सेना ने जिसमें प्रमुख रूप से हमारी सिख रेजिमेंट समेत बाकि सेना ने मिलकर पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया था. कश्मीर आज भी हमारा अभिन्न अंग है. लेकिन, पाकिस्तान को तब से लेकर अब तक कई बार मुंह की खानी पड़ी.

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देश मना रहा 77 वां इन्फैंट्री दिवस
भारत की फौज के सामने नहीं टिका पाकिस्तान: सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार बताते हैं कि पाकिस्तान की तरफ से कई बार प्रयास किये गए हैं. लेकिन, पाकिस्तानी सेना के बुरे मंसूबों को हमारी सेना ने हमेशा करारा जवाब देकर विफल करने का काम किया है. पाकिस्तानी सेना ने आजादी और बंटवारे के बाद सबसे पहले जहां अक्टूबर 1947 में हमला किया, उसी तरह 1965,1971 हो या फिर कारगिल वार जब भी पाकिस्तान ने हमसे टकराने की कोशिश की उसे हार का ही मुंह देखना पड़ा. वे कभी अपने प्रयास में सफल नहीं हो सके. रिटायर्ड सैन्य अधिकारी नरेश कुमार कहते हैं कि पाकिस्तान की असफलता की वजह यह है कि हमारे देश के वीर जवान बहादुर फौज के सामने उनकी कोई हैसियत ही नहीं है. हमारी बहादुर सेनाओं का देश प्रेम और जज्बा ऐसा है कि हमारे सामने दुश्मन रुक नहीं सकता.


पावरफुल है पैदल सेना: रिटायर्ड सैन्य अधिकारी नरेश कुमार बताते हैं कि 1971 में भी हमनें पाकिस्तान को सबक सिखाया था. तब ईस्ट पाकिस्तान को अलग करके बांग्लादेश अलग देश बनाया गया था. आज के दिन हमारी सेवा इतनी शक्तिशाली है, कि चाहे वह पाकिस्तान हो और चाहे चीन, या फिर कोई अन्य देश यह हिम्मत नहीं कर सकता कि वह हमसे कुछ छीन ले, या हमारे खिलाफ कुछ कार्रवाई कर सके.

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सिख रेजिमेंट का रहा खास योगदान:सेना के रिटायर्ड कर्नल नरेश कुमार बताते हैं कि अक्टूबर 1947 में जब पाकिस्तान ने कबाइलियों की मदद से कश्मीर में हमला किया था. सिख रेजिमेंट ने बहादुरी से असाधारण साहस का परिचय देकर पाकिस्तान की सेना के बुरे मंसूबों पानी फेर दिया था.

हर बार दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देती है पैदल सेना: इन्फैंट्री भारतीय सेना की सबसे बड़ी लड़ाकू शाखा है. देश की सीमाओं से लेकर अलग- अलग जगहों पर हमारी पैदल सेना ने अपना लोहा कई बार मनवाया है. आजादी के बाद से ही पैदल सेना की गाथा लाखों युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित करती है. देश की सीमाओं की निगेहबानी करने वाली पैदल सेना की वीरता और साहस के रूप में 27 अक्टूबर को याद किया जाता है. बता दें कि देश में पहला परमवीर चक्र भी दिया गया था. 1947 में हुए भारत पाक के बीच मुकाबले में कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन भी शामिल थी. कुमाऊं रेजिमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा को तब देश में पहली बार परमवीर चक्र दिया गया था. पैदल सेना को “युद्ध की रानी के रूप में भी जाना जाता है. यह आजाद भारत की ऐसी पहली कार्रवाई थी जिसमें बड़े पैमाने पर सेना का इस्तेमाल तब हुआ था.


आज की युवा पीढ़ी को यह जानना है जरूरी: जब पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने की योजना बनाई थी तो 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने 5 हजार कबाइलियों को कश्मीर में घुसपैठ करके कब्जा करने के लिए उतारा था. तब कश्मीर में महाराजा हरि सिंह का शासन था और भारत सरकार से उन्होंने मदद मांगी थी. महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे. जिसके बाद आजाद भारत की तरफ से पहली सैन्य कार्रवाई हुई. भारतीय पैदल सैनिकों ने कश्मीर को कबायलियों के चंगुल से छु़ड़ाकर मुंहतोड़ जवाब दिया था. कुछ वर्षो के बाद 1956 में इसे भारतीय संघ का हिस्सा भी घोषित कर दिया गया था. रिटायर सैन्य अधिकारी कर्नल नरेश कुमार कहते हैं कि देश के युवाओं को इतिहास जानना चाहिए. मेरठ छावनी में भी आज के दिन कार्यक्रम होते हैं, वीरों को नमन किया जाता है.

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