मेरठ: जिले की हैंडबॉल नेशनल खिलाड़ी श्वेता भारद्वाज रेस्टोरेंट चलाने को मजबूर हैं. कोरोना वायरस की वजह से स्कूल में पीटीआई कोच की नौकरी चली गई. जिससे उसके परिवार के सामने आर्थिक संकट मंडराने लगा. बेटे की स्कूल फीस जमा कराना तो दूर मां बेटे के लिए दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ गए. हालात ऐसे बन गए कि श्वेता की हिम्मत जवाब दे गई और उन्होंने आत्महत्या तक करने का मन बना लिया, लेकिन आखिरी प्रयास में वेटलिफ्टिंग अमरनाथ त्यागी से नौकरी मांगने पहुंच गईं. जहां अमरनाथ त्यागी ने पूर्व खिलाड़ी को नौकर बनाने के बजाय इनके हाथ को दस्तकार दे दिया.
नेशनल हैंड बॉल खिलाड़ी रही हैं श्वेता भारद्वाज
श्वेता भारद्वाज हैंड बॉल खेल की पूर्व नेशनल खिलाड़ी हैं. श्वेता राष्ट्रीय स्तर पर हैंड बॉल सीरीज में सैकड़ों मैच खेल चुकी है. ज्यादातर मैच में श्वेता का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है. जिससे 60 फीसदी से ज्यादा मैचों में जीत हासिल की. तीसरे स्थान पर रहते हुए इन्होंने 2 कांस्य पद भी अपने नाम किए हैं. श्वेता ने ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट हासिल किया है. साथ ही इन्हें 1995 में गांधी जंयती के दिन स्काउट गाइड में राष्ट्रपति से सम्मान भी मिला है. श्वेता हैंड बॉल के साथ-साथ ताइक्वांडो की भी अच्छी खिलाड़ी रही हैं.
ताइक्वांडो कोच रही हैं श्वेता
ETV भारत से बात चीत में इन्होंने बताया कि खेल के बाद वे ताइक्वांडो खिलाड़ियों की कोच रही हैं. उन्होंने मेरठ शहर में ताइक्वांडो की कोचिंग देकर कई खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा हैं. जिन्होंने कई खेलों में अच्छा प्रदर्शन भी किया है, लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों के कारण कोच की नौकरी छूट गई.
पति की मौत के बाद टूटा दुखो का पहाड़
श्वेता भारद्वाज बताती हैं कि कुछ साल पहले बीमारी के कारण उनके पति की मौत हो गई थी. जिसके बाद श्वेता के ऊपर मानो दुखों का पहाड़ टूट गया. पति की जमा पूंजी उनके इलाज में चली गई. श्वेता के पास एक 20 साल का बेटा भी है जो अपनी पढ़ाई कर रहा है. पति की मौत के बाद बेटे की पढ़ाई भी प्रभावित होने लगी तो श्वेता ने अपने गहने तक बेच दिए. रोजगार नहीं होने की वजह से श्वेता की आर्थिक स्तिथि इतनी कमजोर हो गई कि अब बेटे की स्कूल फीस भी जमा नहीं कर पा रही थीं.
आत्महत्या करने को हुई मजबूर
आंखों में नमी लिए श्वेता भारद्वाज ने बताया कि कोरोना काल में उनके घर में रखा राशन सब खत्म हो गया. जेब में एक फूटी कौड़ी भी नहीं रही. जब उसके पास सब कुछ खत्म हो गया तो वह इस कदर टूट गई कि आत्महत्या करने तक का मन बना लिया, लेकिन बेटे की वजह से मौत को भी गले नहीं लगा पाई. ऐसी हालत में खेल के मैदान में पसीना बहाने वाली बहादुर खिलाड़ी ने आंसू बहाकर दिन रात गुजारने पड़े.
स्कूल में की पीटीआई की नौकरी
श्वेता ने ETV भारत से बातचीत में बताया कि जैसे-तैसे भाग दौड़ करके एक स्कूल में उनकों पीटीआई अध्यापक की नौकरी मिल गई. स्कूल से जो सैलरी मिलती उससे परिवार का गुजारा करना मुश्किल था. उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और स्कूल से मिलने वाली सैलरी से अपना और बेटे का गुजारा किया, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से पीटीआई की नौकरी भी छूट गई. हालात ये हो गए कि नेशनल खिलाड़ी के सामने दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ गए.
आपदा को अवसर में बदला
जिस तरह एक खिलाड़ी खेल के मैदान में हार नहीं मानता ठीक उसी प्रकार जिंदगी की भाग दौड़ से पीछे नहीं हटता. ऐसा ही कुछ हैंडबॉल में नेशनल खेल चुकी मेरठ के पल्लवपुरम फेस-2 की रहने वाली श्वेता भारद्वाज ने कर दिखाया है. जिंदगी से हार मानने के बाद खेल के मैदान से मिली हार से सबक लेकर आपदा को अवसर में बदल डाला और वेटलिफिटिंग कोच की मदद से हाइवे पर रेस्टोरेंट खोल कर अपना हुनर दिखाना शुरू कर दिया.
वेटलिफिटिंग कोच ने की मदद
हैंडबॉल खिलाड़ी श्वेता भारद्वाज ने बताया कि बेटे की परवरिश के लिए आखिरी प्रयास करते हुए दिल्ली देहरादून हाइवे पर वेटलिफिटिंग कोच एवं पूर्व सैनिक अमरनाथ त्यागी के पास दुकान पर नौकरी के लिए पहुंच गईं. जहां उन्होंने अमरनाथ त्यागी को आपबीती सुनाई और नौकरी की मांग की. उन्होंने नौकर बनाने की बजाए श्वेता भारद्वाज को न सिर्फ रेस्टुरेंट खोलने की सलाह दी बल्कि अपनी दुकान के बाहर रेस्टुरेंट के लिए निःशुल्क जगह और सामान उपलब्ध कराया. इतना ही नहीं बर्तन और रसोई का सभी सामान लाकर श्वेता को दिया.
खेल के बाद रसोई में हुनर दिखा रही नेशनल खिलाड़ी
जिस तरह श्वेता ने खेल में मैदान में हैंडबॉल खेलते हुए अपना हुनर दिखाया और नेशनल खिलाड़ी बनीं. उसी तरह श्वेता आज अपने छोटे से रेस्टोरेंट में लजीज, स्वादिष्ट फास्टफूड बना कर ग्राहकों का दिल जीत रही हैं. करीब एक महीने से नेशनल खिलाड़ी श्वेता दिल्ली देहरादून हाइवे पर रेस्टोरेंट चला रही हैं. श्वेता ने बताया कि वे अपने रेस्टोरेंट में चाय, कॉफी, मोमोज, चाउमीन, बर्गर, सैंडविच, ऑमलेट बनाकर बेच रही हैं.