मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान अब परंपरागत फसलों के स्थान पर ऐसी फसलों का चयन कर रहे हैं, जिनसे उन्हें अधिक मुनाफा मिले. इसके लिए कृषि वैज्ञानिक भी किसानों को फसलों का चयन करने में मदद कर रहे हैं. मेरठ और आसपास के जिलों में किसान गन्ने की खेती छोड़कर पपीता और केले की खेती करने लगे हैं. पपीते की खेती करने से किसानों की आमदनी में इजाफा हो रहा है.
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. आरएस सेंगर ने बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान धीरे-धीरे पपीते की खेती करने लगे हैं. गन्ने के मुकाबले पपीते की खेती से अधिक मुनाफा किसानों को हो रहा है. किसानों को पपीते की ऐसी प्रजाति उपलब्ध कराई जा रही है, जिसमें फल अधिक लगे.
कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरएस सेंगर ने बताया कि, अभी तक किसान इसलिए पपीते की खेती नहीं करता था, क्योंकि उसे यह पता नहीं होता था कि जो पौधे उसने लगाए हैं, वह नर है या मादा. पौधा बड़ा होने पर ही उसके नर या मादा होने का पता चलता था. इस कारण किसानों को नर पौधे अधिक होने पर नुकसान का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब किसानों की यह समस्या दूर हो गई है. सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय की टिशु कल्चर लैब में पहले से ही नर या मादा होने का पता कर पौध तैयार की जा रही है. यही कारण है कि अब किसान चिंता मुक्त होकर पपीते की खेती कर रहे हैं.
सहफसली के रूप में ले सकते हैं दूसरी फसल
डाॅ. आरएस सेंगर ने बताया कि, पपीते की खेती के साथ दूसरी फसलें भी सहफसली के रूप में ली जा सकती हैं. इनमें सब्जी की फसलें भी शामिल हैं. एक ही खेत में एक साथ एक से अधिक फसल लेने से किसान की आमदनी दोगुना होगी. भारत सरकार की भी मंशा है कि किसानों की आय दोगुना की जाए. उन्होंने बताया कि, इस समय मेरठ के अलावा मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, गाजियाबाद, हापुड़, बिजनौर और सहारनपुर आदि जिलों में बड़े पैमाने पर किसान पपीते की खेती कर रहे हैं. कृषि विश्वविद्यालय किसानों को इस संबंध में समय-समय पर तकनीकी जानकारी और प्रशिक्षण भी दे रहा है.