मेरठ: जिले में कुल 479 ग्राम प्रधान हैं. इनमें से डेढ़ सौ से भी अधिक महिला प्रधान हैं. लेकिन, चौंकाने वाली बात ये है कि आरक्षित गांवों में महिला प्रधान तो बन गई. लेकिन, बावजूद इसके ऐसे गांवों में महिला प्रधानों के पति, बेटे या अन्य परिवारीजन ही गांव की सरकार चला रहे हैं. महिला प्रधानों को यह तक मालूम नहीं है कि गांव में कितना विकास हुआ है और गांव में कौन सी योजना चल रही है.
जिले में पंचायत चुनावों के दौरान महिलाओं के लिए कुल 161 ग्राम पंचायतें अलग-अलग ब्लॉक की आरक्षित की गई थी. जो कि जिले की कुल ग्राम पंचायतों का लगभग 33 फीसदी है. इसके अलावा भी कुछ ऐसी ग्राम पंचायतें थीं,जहां महिलाओं पर परिवारों ने दांव खेला और वे भी गांव की सरकार चलाने के योग्य साबित हुईं. लेकिन, मेरठ जिले की अगर बात करें तो जिले में अधिकतर महिला ग्राम प्रधान जरूर हैं. लेकिन, गांव में कौन से विकास कार्य अब तक हो रहे हैं, गांव के विकास के लिए कौन सी योजनाएं संचालित हैं. इसकी जानकारी इनमें से शायद ही पांच फीसदी महिला ग्राम प्रधानों को होगी. ये हम नहीं कहते, बल्कि ये कहना है जिले की जिला पंचायती राज विभाग का. गौर करने वाली बात ये भी है कि जिले में जिला पंचायती राज अधिकारी का जिम्मा संभालने वाला भी कोई और नहीं बल्कि वह भी एक महिला अधिकारी ही हैं.
जिले में बतौर DPRO तैनात रेणु श्रीवास्तव ने ईटीवी भारत को बताया कि मेरठ वेस्टर्न यूपी का जागरूक जिला है. यहां जब सरकारी बैठकें विकास योजनाओं के सबंध में होती हैं तो पुरुष प्रधान तो आ ही जाते हैं. लेकिन, समस्या तब होती है जब सभी महिला प्रधान नहीं आतीं. वे बताती हैं कि समस्या तो तब और ज्यादा होती है जब महिला प्रधानों को यह भी पता नहीं होता कि उनके गांव में क्या कार्य चल रहा है. उनके एकाउंट से कितना पैसा निकल गया है. वे बताती हैं कि ग्राम विकास के विषय में होने वाली तमाम योजनाओं की आवश्यक बैठकों में भी अधिकतर माननीया नहीं पहुंचतीं ,बल्कि उनके परिवारीजन ही वहां दिखाई देते हैं
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DPRO रेणु श्रीवास्तव ने कहा वह चाहती है कि महिला प्रधान खुद निर्णय लें और भाग लें. मीटिंग्स में जब महिला प्रधान नहीं आती तो वे कई बार ब्लॉक लेवल पर जाकर बैठक करती हैं. ताकि कम से कम उन महिला प्रधानों को वहां आने में सहूलियत हो. लेकिन, जब कई बार बुलाने पर भी प्रधान नहीं आती हैं तो उन्हें नोटिस भेजनी पड़ती हैं. पत्राचार करना पड़ता है. हालांकि, जिला पंचायती राज अधिकारी का कहना है कि कुछ महिला प्रधान बेहद एक्टिव भी हैं. लेकिन, दुख उन्हें तब होता है जब महिला प्रधान बढ़-चढ़कर नहीं बोल पाती हैं या फिर सिर्फ नाम के लिए उन्हें प्रधान बनाया गया है. मीटिंग में भी उनके पति ही आते हैं. ऐसे में हमें सख्ती करनी पड़ती है.
रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ प्रभात कुमार रॉय इन संकेतों को सही नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि यह बेहद गंभीर विषय है. महिला सशक्तिकरण को लेकर जो बातें हो रही हैं, उन सब बातों को यह स्थिति आईना दिखाती है. ग्राम विकास के विषय में होने वाली तमाम योजनाओं की आवश्यक बैठकों में भी अधिकतर माननीय नहीं पहुंचतीं. बल्कि, उनके परिवारीजन ही वहां दिखाई देते हैं, ऐसे में गांवों में विकास रफ्तार पकड़ेगा ये भी बड़ा सवाल है.
गौरतलब है कि 479 ग्राम पंचायतों में से 161 पंचायतों में तो महिला प्रधान ही चुनी गई हैं. इसमें 38 गांवों में अनुसूचित जाति महिला, 47 गांवों में अन्य पिछड़ा वर्ग महिला और 76 गांवों में महिला पद आरक्षित थे. जबकि, इनके अलावा भी कुछ महिला प्रधान चुनी गई थी.
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