ETV Bharat / state

पश्चिमी यूपी में बढ़ा औषधीय पौधों की खेती का चलन, अच्छा मुनाफा कमा रहे किसान

यूपी के मेरठ में किसान औषधीय खेती कर रहे हैं और लाखों रुपये मुनाफा कमा रहे हैं. औषधीय खेती से किसानों की आय भी दोगुनी हो रही है. किसानों का कहना है कि आने वाला समय हर्बल या नैचुरल का ही है, इसीलिए अब वह औषधीय खेती को बढ़ावा दे रहे हैं.

पश्चिमी यूपी में बढ़ा औषधीय पौधों की खेती का चलन
पश्चिमी यूपी में बढ़ा औषधीय पौधों की खेती का चलन
author img

By

Published : Aug 12, 2021, 2:55 PM IST

मेरठ: कोरोना काल ने औषधीय खेती के चलन को बढ़ा दिया है. यहां तक कि गन्ना बेल्ट के तौर पर जाने जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी अब औषधि के रुप में इस्तेमाल होने वाले पौधों की खेती करने लगे हैं. औषधीय खेती से किसानों की आय भी दोगुनी हो रही है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वेस्ट यूपी के किसान 25 से ज्यादा औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं.

दिल्ली, राजस्थान जैसे राज्यों के बाजारों में इस खेती की अच्छी कीमत भी मिल रही है. कई किसानों ने तो शुरुआत में 5 बीघा जमीन से औषधीय पौधों की खेती की शुरुआत की लेकिन, फायदा देखकर वही किसान अब 110 एकड़ में औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं. हल्दी, तुलसी, सर्पगंधा, सतावरी, अकरकरा, एलोवेरा जैसे करीब 25 से अधिक मेडिसिनल प्लांट की यहां खूब खेती हो रही है. किसानों का कहना है कि आने वाला समय हर्बल या नैचुरल का ही है. वो कहते हैं कि औषधीय पौधों की खेती देखने विदेशों से कई मेहमान भी आ चुके हैं.

जानकारी देते उद्यान विभाग के उपनिदेशक.

इस संबंध में उद्यान विभाग के उपनिदेशक डॉक्टर विनीत कुमार का कहना है कि किसानों कि आय दोगुनी करने के लिए कई योजनाएं उद्यान विभाग की तरफ से चलाई जा रही हैं. परम्परागत खेती के साथ-साथ अगर फूलों या फिर औषधीय पौधों की खेती की जाए तो यकीनन अन्नदाता को फायदा हो सकता है. कई प्रगतिशील कृषक इससे खूब लाभ कमा रहे हैं. ये कह सकते हैं कि आय दोगुनी करने का मेडिसिनल फॉर्मूला अब वेस्ट यूपी के किसानों ने ढूंढ लिया है.

सिर्फ मेरठ ही नहीं कासगंज में भी किसान आठ सगंधीय फसलों की खेती कर रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से लेमन ग्रास, पामा रोजा, खस, जिरेनियम, तुलसी, जंगली गेंदा, कैमोमाइल, और मैंथा सहित लगभग 8 फसलें शामिल हैं. लेमन ग्रास और पामा रोजा का प्रयोग मुख्य रूप से मच्छर लोशन, साबुन, शैम्पू और अन्य कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में किया जाता है. इस फसल को खेतों में स्लिप के माध्यम से लगाया जाता है. इस फसल को लगाने में एक एकड़ में वर्ष भर की कुल लागत लगभग 30 हजार रुपये आती है. यह फसल वर्ष में तीन बार काटी जाती है. इस तरह किसान वर्ष में इस फसल से 70 हजार रुपये की आमदनी कर सकता है. यह फसल फरवरी से मार्च के बीच में रोपी जा सकती है.

कैमोमाइल की फसल अक्टूबर माह में लगाई जाती और इसकी कटाई मार्च में की जाती है. इस फसल में एक एकड़ में कुल लागत 30 हजार रुपये आती है और इस फसल में एक एकड़ में कुल 3 किग्रा. तेल निकलता है, जिसकी कीमत 25 से 30 हजार रुपये प्रति किलो है. यह तेल कॉस्मेटिक प्रोडक्टों और एरोमा थेरेपी में प्रयोग किया जाता है. इसके सूखे फूलों से विशेष प्रकार की चाय बनाई जाती है.

जिरेनियम की फसल को अक्टूबर माह से फरवरी माह तक कभी भी लगा सकते हैं. यह कटिंग से लगाया जाता है. पहले इसकी पौध बांस के बने हुए स्ट्रक्चर के अंदर तैयार की जाती है, जो मार्च में लगाई जाती है. उस स्ट्रक्चर पर बरसात से पहले पॉलीथिन पारदर्शी सीट डाली जाती है. इस फसल की एक एकड़ में कुल लागत 30 हजार रुपये आती है. इसका तेल एक एकड़ में 8 से 10 किग्रा तक निकलता है, जिसकी बाजार में कीमत 10 हजार से 20 हजार रुपये तक रहती है. इसके तेल का प्रयोग उच्च क्वालिटी के परफ्यूम बनाने में किया जाता है. इस फसल को लगाने का समय जनवरी से मार्च तक का है. इस फसल की लागत एक एकड़ में लगभग 25 हजार रुपये तक आती है. इसका तेल एक एकड़ में कुल 55 से 70 किग्रा निकलता है, जिसका बाजार भाव 900 से 1500 रुपये तक रहता है. इसके तेल का प्रयोग मुख्य रूप से टूथपेस्ट, बाम और मिंट फ्लेवर वाले उत्पादों में होता है.

मेरठ: कोरोना काल ने औषधीय खेती के चलन को बढ़ा दिया है. यहां तक कि गन्ना बेल्ट के तौर पर जाने जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी अब औषधि के रुप में इस्तेमाल होने वाले पौधों की खेती करने लगे हैं. औषधीय खेती से किसानों की आय भी दोगुनी हो रही है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वेस्ट यूपी के किसान 25 से ज्यादा औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं.

दिल्ली, राजस्थान जैसे राज्यों के बाजारों में इस खेती की अच्छी कीमत भी मिल रही है. कई किसानों ने तो शुरुआत में 5 बीघा जमीन से औषधीय पौधों की खेती की शुरुआत की लेकिन, फायदा देखकर वही किसान अब 110 एकड़ में औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं. हल्दी, तुलसी, सर्पगंधा, सतावरी, अकरकरा, एलोवेरा जैसे करीब 25 से अधिक मेडिसिनल प्लांट की यहां खूब खेती हो रही है. किसानों का कहना है कि आने वाला समय हर्बल या नैचुरल का ही है. वो कहते हैं कि औषधीय पौधों की खेती देखने विदेशों से कई मेहमान भी आ चुके हैं.

जानकारी देते उद्यान विभाग के उपनिदेशक.

इस संबंध में उद्यान विभाग के उपनिदेशक डॉक्टर विनीत कुमार का कहना है कि किसानों कि आय दोगुनी करने के लिए कई योजनाएं उद्यान विभाग की तरफ से चलाई जा रही हैं. परम्परागत खेती के साथ-साथ अगर फूलों या फिर औषधीय पौधों की खेती की जाए तो यकीनन अन्नदाता को फायदा हो सकता है. कई प्रगतिशील कृषक इससे खूब लाभ कमा रहे हैं. ये कह सकते हैं कि आय दोगुनी करने का मेडिसिनल फॉर्मूला अब वेस्ट यूपी के किसानों ने ढूंढ लिया है.

सिर्फ मेरठ ही नहीं कासगंज में भी किसान आठ सगंधीय फसलों की खेती कर रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से लेमन ग्रास, पामा रोजा, खस, जिरेनियम, तुलसी, जंगली गेंदा, कैमोमाइल, और मैंथा सहित लगभग 8 फसलें शामिल हैं. लेमन ग्रास और पामा रोजा का प्रयोग मुख्य रूप से मच्छर लोशन, साबुन, शैम्पू और अन्य कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में किया जाता है. इस फसल को खेतों में स्लिप के माध्यम से लगाया जाता है. इस फसल को लगाने में एक एकड़ में वर्ष भर की कुल लागत लगभग 30 हजार रुपये आती है. यह फसल वर्ष में तीन बार काटी जाती है. इस तरह किसान वर्ष में इस फसल से 70 हजार रुपये की आमदनी कर सकता है. यह फसल फरवरी से मार्च के बीच में रोपी जा सकती है.

कैमोमाइल की फसल अक्टूबर माह में लगाई जाती और इसकी कटाई मार्च में की जाती है. इस फसल में एक एकड़ में कुल लागत 30 हजार रुपये आती है और इस फसल में एक एकड़ में कुल 3 किग्रा. तेल निकलता है, जिसकी कीमत 25 से 30 हजार रुपये प्रति किलो है. यह तेल कॉस्मेटिक प्रोडक्टों और एरोमा थेरेपी में प्रयोग किया जाता है. इसके सूखे फूलों से विशेष प्रकार की चाय बनाई जाती है.

जिरेनियम की फसल को अक्टूबर माह से फरवरी माह तक कभी भी लगा सकते हैं. यह कटिंग से लगाया जाता है. पहले इसकी पौध बांस के बने हुए स्ट्रक्चर के अंदर तैयार की जाती है, जो मार्च में लगाई जाती है. उस स्ट्रक्चर पर बरसात से पहले पॉलीथिन पारदर्शी सीट डाली जाती है. इस फसल की एक एकड़ में कुल लागत 30 हजार रुपये आती है. इसका तेल एक एकड़ में 8 से 10 किग्रा तक निकलता है, जिसकी बाजार में कीमत 10 हजार से 20 हजार रुपये तक रहती है. इसके तेल का प्रयोग उच्च क्वालिटी के परफ्यूम बनाने में किया जाता है. इस फसल को लगाने का समय जनवरी से मार्च तक का है. इस फसल की लागत एक एकड़ में लगभग 25 हजार रुपये तक आती है. इसका तेल एक एकड़ में कुल 55 से 70 किग्रा निकलता है, जिसका बाजार भाव 900 से 1500 रुपये तक रहता है. इसके तेल का प्रयोग मुख्य रूप से टूथपेस्ट, बाम और मिंट फ्लेवर वाले उत्पादों में होता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.