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उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की जयंती पर गोष्ठी का आयोजन - गोष्ठी और कवि सम्मेलन का आयोजन

मुंशी प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में उत्तर प्रदेश के मऊ में गोष्ठी और कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. गोष्ठी में मुरारीलाल केडिया, डॉ. अलका राय, डॉ. श्रीनाथ खत्री, डॉ. कमलेश राय ने भी अपने विचार रखे.

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद
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Published : Aug 1, 2019, 4:38 PM IST

मऊः देश के विभिन्न हिस्सों में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती मनाई गई. जनपद मऊ में भारत विकास परिषद द्वारा गोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में साहित्य प्रेमियों और बुद्धिजीवियों ने प्रेमचंद की रचनाओं पर चर्चा की.

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन
गोष्ठी में पूर्व प्राचार्य डॉ. मान्धाता राय ने कही ये बातें-
  • प्रेमचंद की रचनाएं उस समय का यथार्थ चित्रण करती थीं जो आज भी प्रासंगिक हैं.
  • प्रेमचंद अपनी रचनाओं में सामंतवाद और शोषण का विरोध करते थे.
  • मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने के लिए प्रेमचंद तब तक प्रासंगिक हैं जब तक मनुष्यता आवश्यक है.
  • प्रेमचंद ने रचनाओं के माध्यम से भ्रष्टाचार का भी चित्रण किया है.
  • प्रेमचंद प्रगतिशील थे, लेकिन प्रगतिवादी नहीं, वो किसी विचारधारा से बंधे नहीं थे बल्कि समाज में शोषण और बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाते थे.

मऊः देश के विभिन्न हिस्सों में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती मनाई गई. जनपद मऊ में भारत विकास परिषद द्वारा गोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में साहित्य प्रेमियों और बुद्धिजीवियों ने प्रेमचंद की रचनाओं पर चर्चा की.

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन
गोष्ठी में पूर्व प्राचार्य डॉ. मान्धाता राय ने कही ये बातें-
  • प्रेमचंद की रचनाएं उस समय का यथार्थ चित्रण करती थीं जो आज भी प्रासंगिक हैं.
  • प्रेमचंद अपनी रचनाओं में सामंतवाद और शोषण का विरोध करते थे.
  • मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने के लिए प्रेमचंद तब तक प्रासंगिक हैं जब तक मनुष्यता आवश्यक है.
  • प्रेमचंद ने रचनाओं के माध्यम से भ्रष्टाचार का भी चित्रण किया है.
  • प्रेमचंद प्रगतिशील थे, लेकिन प्रगतिवादी नहीं, वो किसी विचारधारा से बंधे नहीं थे बल्कि समाज में शोषण और बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाते थे.
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मऊ। यूपी सहित देश के विभिन्न हिस्सों में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती मनाई गई. इस अवसर जनपद मऊ में भारत विकास परिषद द्वारा गोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में साहित्यप्रेमियों और बुद्धिजीवियों ने प्रेमचंद की रचनाओं पर चर्चा की और देश की वर्तमान परिस्थितियों में उनकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला.


Body:गोष्ठी में हिस्सा लेने आए सहजानन्द पीजी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ मान्धाता राय ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाएं उस समय यथार्थ का चित्रण करती थीं जो आज भी प्रासंगिक हैं लेकिन रूप बदल गया है. प्रेमचंद अपनी रचनाओं में सामंतवाद और शोषण का विरोध करते थे. उन्होंने कहा कि मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने के लिए प्रेमचंद तब तक प्रासंगिक है जब तक मनुष्यता आवश्यक है. अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने भ्रष्टाचार और उसके सिपहसालारों का भी चित्रण किया था. आज परिवेश बदल गया, महाजन की जगह बैंक और मंत्री हैं जो गरीब और किसान का शोषण कर रहे हैं. कमजोर आदमी ऋण लेता है जो न चुकाने पर उसकी सम्पत्ति नीलाम हो जाती है जबकि अमीर मौज करते हैं. सरकार भी बैंक को पैसा देकर उनके कर्ज की भरपाई करती है. यह विडंबना है कि इनका बिजनेस फलता-फूलता है जबकि बैंक घाटे में जा रहे हैं. प्रेमचंद प्रगतिशील थे लेकिन प्रगतिवादी नहीं, वो किसी विचारधारा से बंधे नहीं थे बल्कि समाज में शोषण और बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाते थे. उनको जमींदारों के खिलाफ या कम्युनिस्ट आदि बताकर घेरना प्रेमचंद का अपमान करना है.

गोष्ठी में मुरारीलाल केडिया, डॉ अलका राय, डॉ श्रीनाथ खत्री, डॉ कमलेश राय, अनिल कुमार मिश्र, रवीश तिवारी, रामनरेश पाण्डेय ने भी अपने विचार रखे.

बाईट -डॉ मान्धाता राय (पूर्वा प्राचार्य, सहजानन्द पीजी कॉलेज, गाजीपुर)


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