मैनपुरी: पैसा ही सब कुछ नहीं होता है, कई बार लोग पैसे का मोह छोड़कर प्रकृति से अपने को जोड़ लेते हैं. ऐसा ही एक उदाहरण जिले की अर्चना दीक्षित पेश करती हैं. करोड़ों की संपत्ति की मालकिन होने के बाद भी अर्चना शहर के जानवरों में अपनी खुशी ढूंढ रही हैं. पीले वस्त्र धारण करके और हाथ में झोला लेकर वो कुत्तों को खाना खिलाती हुई अक्सर दिख जाती हैं. अर्चना ने पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों में अपना जीवन तलाश लिया है. अर्चना अपना शरीर तक दान में दे चुकी हैं.
मोहल्ला कटरा निवासी कलेक्टर दीक्षित शिक्षक थे और उनकी धर्मपत्नी रामकली प्राइमरी विद्यालय में शिक्षिका थीं. 1971 में रामकली ने एक बेटी को जन्म दिया. इसका नाम रखा गया अर्चना दीक्षित. बेटी के जन्म के बाद घर में खुशियां नहीं आई, क्योंकि परिवार के लोगों को बेटे की चाह थी. बेटी होने के कारण कई बार अर्चना को तिरस्कार भी सहन करना पड़ा. अर्चना की शिक्षा जनपद में स्नातक तक हुई. परास्नातक के लिए उन्होंने कानपुर का रुख किया और कानपुर विश्वविद्यालय से एमए उत्तीर्ण किया.
शादी के सदमे में गुजर गए मां-बाप
कई प्रयासों के बाद भी अर्चना की शादी नहीं हुई तो माता-पिता दुखी हो गए. इसी दुख के चलते 1996 में पिता की मौत हो गई. उसके बाद 2006 में मां भी चल बसीं. अर्चना अब पूरे परिवार में अकेली रह गईं. परिवार में और कोई नहीं था. करोड़ों की संपत्ति उनके किसी काम की नहीं बची. 2015 में एक सड़क दुर्घटना में अर्चना मरते-मरते बचीं. लोगों ने बताया कि आज अर्चना इसलिए जीवित है, क्योंकि वो जानवरों और पक्षियों की सेवा करती है.
मां की इच्छा से पहने पीले कपड़े
अर्चना की मां की इच्छा थी कि यदि उसका संसार न बसे, तो वह पीले वस्त्र धारण कर लें. उनके माता-पिता ने सारी संपत्ति दान कर दी थी. अर्चना ईश्वर के प्रति समर्पित हो गईं. इसके बाद से अर्चना ने जीने का तरीका ही बदल दिया. उन्होंने करोड़ों की संपत्ति दान में दे दी और बेजुबान आवारा जानवरों में अपना जीवन तलाश लिया. मां-बाप की पेंशन से अर्चना जीवन-यापन कर रही हैं.
हजारों रुपये जानवरों पर करती हैं खर्च
अर्चना लगभग 31 हजार की धनराशि सहारा बेजुबान जानवरों पर खर्च कर देती हैं. उन्होंने वृद्धा आश्रम में आश्रय बना रखा है. भोर में वह योग करती हैं. इसके बाद वह दोनों कंधों पर झोला लटका कर पैदल ही निकल पड़ती हैं. उन्हें जहां भी कुत्ते, बंदर, गाय आदि दिखाई देते हैं, तो वह उनको टोस्ट या ब्रेड खिलाने लगती हैं. शाम होने तक वो वृद्धा आश्रम वापस आ जाती हैं. इस दौरान रास्ते में यदि कोई हरा पेड़ काटता हुआ दिख जाता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई कराने में भी नहीं चूकती. अपनी डॉगी लल्ली के नाम उन्होंने तेरह लाख रुपये एसबीआई में डिपॉजिट कर रखे हैं. वो ऐसी संस्था तलाश करती रहती हैं, जो 100% इमानदारी से इन बेजुबान को दाना-पानी उपलब्ध करा सके.
अपने पैसों से खरीदती हैं दवा
उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी धीरेंद्र तोमर ने बताया कि अर्चना 5 वर्ष से लगातार यहां आती हैं. वो हरा चारा, भूसा खरीद कर इन बेजुबान बेसहारा जानवरों को खिलाती हैं. लोग घायल जानवरों को पशु चिकित्सालय में छोड़ जाते हैं. अर्चना उनका इलाज भी करवाती हैं. साथ ही अस्पताल में कोई दवा नहीं है तो अपने पैसों से जानवरों के लिए दवा खरीदती हैं.