लखनऊ : सबसे पहले कोरोना वायरस ने दस्तक दी. इसके बाद संचारी रोग ने लोगों का हाल बेहाल किया, बात यहां तक नहीं रुकी. कुछ ही महीनों में इन्फ्लूएंजा ने भी दस्तक दे दी. एक के बाद एक मानव शरीर को प्रभावित करने वाले वायरस ने लोगों की हालत खराब कर दी. ऐसे में व्यक्ति की दिनचर्या निर्धारित ही नहीं है. ऐसे में कई बार मरीज को गठिया की बीमारी हो जाती है. गठिया सिर्फ ढलती उम्र में ही नहीं बल्कि कम उम्र के लोगों को भी होती है. जिसमें युवा और बच्चे भी शामिल हैं.
केजीएमयू के गठिया रोग विशेषज्ञ डॉ पुनीत कुमार ने बताया कि 'गठिया किसी को भी हो सकती है, फिर चाहे वह युवा हो, बुजुर्ग हो या फिर बच्चा हो. युवाओं और बच्चों में जो गठिया होती है, दोनों में फर्क होता है. उन्होंने कहा कि यह आजकल बच्चों में भी देखी जा रही है. बच्चे भी इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं. इसे हम जुवेनाइल इडियोपैथिक अर्थराइटिस के नाम से जानते हैं. ये 16 या उससे कम उम्र के बच्चों में होने वाला एक तरह का रोग है. इस समस्या में मरीज को रोजमर्रा के कामों में दिक्कत हो जाती है. यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें इम्यून सिस्टम शरीर के अंगों को ही नुकसान पहुंचाने लगता है. वहीं अस्पताल की ओपीडी में रोजाना इससे पीड़ित काफी संख्या में बच्चे आते हैं कुछ बच्चे ऐसे आते हैं जो चलने की स्थिति में नहीं होते हैं. इसका इलाज संभव है, अगर समय पर किसी विशेषज्ञ की सलाह से इलाज चले. 10 से 15 गठिया से पीड़ित बच्चे आ जाते हैं. इसके अलावा युवाओं में होने वाले गठिया अलग होती है.'
उन्होंने कहा कि 'बच्चों में भी होने वाली गठिया अलग-अलग प्रकार की होती है. जिसे ओलिगो आर्टिकुलर, जुवेनाइल अर्थराइटिस, एंथोसाइटिस जुवेनाइल अर्थराइटिस व सिस्टमिक अर्थराइटिस कहते हैं. इस प्रकार से युवाओं में होने वाली गठिया रूमेटाइड आर्थराइटिस, सोरिअटिक गठिया, गाउट और सिस्टेमेटिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस है. उन्होंने कहा कि दोनों में ज्यादा कुछ अंतर नहीं है लेकिन हां दोनों का इलाज में फर्क आता है.'
उन्होंने कहा कि 'जोड़ों में सूजन और जकड़न की समस्या को मेडिकल भाषा में गठिया कहा जाता है. गठिया की बीमारी में उम्र के साथ दर्द, सूजन और अकड़न की परेशानी बढ़ती जाती है. आमतौर पर यह समस्या 65 से अधिक उम्र के लोगों में देखने को मिलती है, लेकिन आजकल बच्चे और युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. हालांकि युवाओं में सबसे आम रूमेटोइड आर्थराइटिस की बीमारी है. उन्होंने कहा कि अगर परिवार में पहले से ही आर्थराइटिस की बीमारी चली आ रही है, यानी अगर आपके माता-पिता में यह विकार है तो आपको आर्थराइटिस होने की संभावना अधिक हो सकती है.'
उन्होंने कहा कि 'मौजूदा समय में युवाओं में गठिया के लक्षण गंभीर साबित हो सकते हैं. उन्हें हाथों और पैरों के जोड़ों में सूजन की अधिक समस्या हो सकती है. इसके साथ ही युवाओं में रूमेटोइड नोड्यूल होने का खतरा भी बढ़ जाता है. बता दें कि रूमेटोइड नोड्यूल एक तरह की सख्त गांठ होती है, जो त्वचा के नीचे, आमतौर पर उंगलियों पर हो सकती हैं. इस स्थिति के बाद आखिर में युवाओं को सेरोपोसिटिव आर्थराइटिस हो सकता है, वहीं इसके अलावा हर उम्र के मरीजों में चाहे वह युवा हों या फिर बुजुर्ग, गठिया के समान लक्षण देखने को मिलते हैं.'
गठिया के लक्षण : उन्होंने कहा कि 'इस बीमारी में लोगों को जोड़ों में जकड़न, सूजन, लालिमा, दर्द, जलन, हाथों-पैरों की उंगलियों और गांठों में दर्द, दैनिक कार्य करने में परेशानी, चलने-फिरने और उठने-बैठने में तकलीफ जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. इसके अलावा आर्थराइटिस के गंभीर मामलों में बुखार, वजन घटना, लिम्फ नोड्स में सूजन और थकान के अलावा फेफड़े, हार्ट और किडनी से संबंधित बीमारी जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं.'
बच्चों की गठिया का इलाज
- मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए पौष्टिक आहार.
- जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव.
- नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स, कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स या एंटी-रूमेटिक ड्रग्स का इस्तेमाल.
- बच्चों के जोड़ों को लचीला बनाने के लिए नियमित व्यायाम.
युवाओं की गठिया का इलाज
- गठिया मरीजों को खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
- ठंडी चीजों से परहेज करें.
- बच्चे हों या बुजुर्ग सभी को अपनी डाइट में दूध व फल जरूर शामिल करना चाहिए.
- दिनचर्या में व्यायाम को शामिल करें.
- सीढ़ी चढ़ने से बचें.