लखनऊ: आज विश्व डाक दिवस है. देशभर के डाकघरों के लिए आज का दिन काफी अहम है. आज से डाक सप्ताह की भी शुरुआत हुई है. भारतीय डाक सेवा की शुरुआत देश में 1854 से मानी जाती है. डाक विभाग ने समय की चुनौतियों के साथ लगातार अपने को बदलने का प्रयास किया है. इस कोरोना के दौर में जब सारे कोरियर और ट्रांसपोर्ट सेवाएं पूरी तरह से बंद थी, डाक सेवाएं चालू थीं. मुश्किल हालात में डाककर्मियों ने पूरी मेहनत से काम किया और बुजुर्ग व बीमार लोगों तक जरूरी दवाओं को पहुंचाने का काम भी किया.
अकेले लखनऊ के मुख्य डाकघर से 5,500 से ज्यादा दवाओं के पैकेट लोगों तक पहुंचाए गए. वहीं इस दौरान जीपीओ के ही 16 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे, लेकिन डाक कर्मी अपने मजबूत हौसलों से मुश्किल हालात में भी जरूरतमन्द लोगों के घरों तक पैसा पहुंचाने का काम किया.
कोरोना से भी नहीं डरे डाककर्मी
24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा कोरोनावायरस के चलते लॉकडाउन की घोषणा की गई. इस दौरान देश पूरी तरह से 'लॉक' हो गया, लेकिन डाक सेवाएं फिर भी जारी रहीं. इस मुश्किल दौर में भी पोस्टमैन के साइकिल के पहिए नहीं थमे और वह लोगों की जरूरत के अनुसार जरूरी दवाएं और पैसे पहुंचाते रहे. डाककर्मियों के इस हौसले के बलबूते ही बहुत से लोगों की जान भी बच पाई. वहीं अकेले लखनऊ में मुख्य डाकघर से 5,500 दवाओं के पैकेट लोगों तक पहुंचाए गए और करोड़ों रुपये की राशि जरूरतमंद लोगों के घरों तक भेजी गई थी.
समय के साथ डाक ने बदली सेवाएं
डाक विभाग की पहचान चिट्ठी बांटने वाले विभाग के रूप में स्थापित थी, लेकिन संचार की 21वीं सदी में डाक विभाग ने खुद को बहुत तेजी से बदला है. अब मनी ऑर्डर नहीं, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मनी ऑर्डर होते हैं तो वहीं अब डाक विभाग गंगोत्री का खुद गंगाजल ही लोगों तक पहुंचा रहा है. कोरोना के इस मुश्किल दौर में डाक विभाग अब गिलोय, सैनिटाइजर और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली औषधियों की बिक्री भी कर रहा है, जिससे लोगों का विश्वास अब काफी तेजी से डाक विभाग पर बढ़ा है.
कोरोना काल में बढ़ा डाकियों का सम्मान
कोरोनावायरस के दौर में जब सारे विभाग बड़े डर के काम कर रहे थे, वहीं भारतीय डाक विभाग के लोगों ने मुश्किल घड़ी में भी अपने काम को पहले की तरह बखूबी किया. लखनऊ के मुख्य डाकघर से लॉकडाउन में भी सेवाएं लगातार जारी रहीं. पोस्टमैन अनिल कुमार बताते हैं कि जब लॉकडाउन लगा हुआ था, तब भी वह लगातार दवाएं और पैसों को लोगों के घरों तक पहुंचाते रहे. डर तो जरूर लगता था, लेकिन जब लोगों के घरों तक वह अपनी सेवाएं देते थे तो लोगों से उन्हें सम्मान भी मिलता था, जिससे उन्हें खुशी मिलती थी.