लखनऊ: प्राचीन भारत का प्रारंभिक इतिहास ऐसी महिलाओं से भरा पड़ा है. जिन्होंने अपने दौर में न केवल शासन सत्ता की बागडोर संभाली बल्कि देश समाज को समय-समय पर एक दिशा भी दी है. इतिहासकारों की मानें तो एक ओर वैदिक काल में जहां महिलाएं विदुषी के रूप में शास्त्रार्थ कर रही हैं तो दूसरी ओर गुप्त काल के सिक्कों पर भी इनके नाम मिलना इनके रसूख को दिखाता है.
लखनऊ विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ. अनिल कुमार बताते हैं कि हड़प्पा सभ्यता में ऐसी तमाम मूर्तियां मिली हैं. जिसमें महिलाओं को दिखाया गया है. जो विशेष मूर्तियां हैं उन्हें मातृ देवी कहा गया. इतिहासकार यह मानते हैं कि वह मातृ प्रधान समाज था. यहां स्त्रियों को काफी महत्व दिया गया.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद ऐसा माना जाता है कि वैदिक संस्कृति की शुरुआत हुई. इस दौर में कई महिलाओं के नाम आते हैं जैसे अपाला, घोषा, जो विदुषी हैं.
वैदिक काल में विदुषी महिलाएं-
वमाता अदितिः ये दक्ष प्रजापति की कन्या एवं महर्षि कश्यप की पत्नी थीं. इन्होंने अपने पुत्र इन्द्र को वेदों एवं शास्त्रों की इतनी अच्छी शिक्षा दी कि उस ज्ञान की तुलना किसी से सम्भव नहीं थी. यही कारण है कि इन्द्र अपने ज्ञान के बल पर तीनों लोकों का अधिपति बना. अदिति को अजर-अमर माना जाता है. साथ ही चारों वेदों की प्रकाण्ड विदुषि थी.
देवसम्राज्ञी शचीः ये इन्द्र की पत्नी थीं. वे वेदों की प्रकांड विद्वान थी. ऐसी मान्यता है कि ऋग्वेद के कई सूक्तों पर शची ने अनुसन्धान किया. शचीदेवी पतिव्रता स्त्रियों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं. शची को इंद्राणी भी कहा जाता है. विद्वानोंं का कहना है कि ये विदुषी के साथ-साथ महान नीतिवान भी थी. इन्होंने अपने पति द्वारा खोया गया सम्राज्य एवं पद प्रतिष्ठा ज्ञान के बल पर ही दोबारा प्राप्त किया था.
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ब्रह्मवादिनी अपालाः यह अत्रि मुनि के वंश में ही उत्पन्न हुई थीं. ऐसा कहा जाता है कि अपाला को कुष्ठ रोग हो गया था. इसके चलते इनके पति ने इन्हें घर से निकाल दिया था. ये पिता के घर चली गई और आयुर्वेद पर अनुसंधान करने लगीं. मान्यता है कि सोमरस की खोज इन्होंने ही की थी. इन्द्र देव ने सोमरस इनसे प्राप्त कर इनके ठीक होने में चिकित्सीय सहायता की. आयुर्वेद चिकित्सा से ये विश्वसुंदरी बन गईं और वेदों के अनुसंधान में संलग्न हो गईं. ऋग्वेद के अष्टम मंडल के 91वें सूक्त की 1 से 7 तक ऋचाएं इन्होंने संकलित कीं.
ब्रह्मवादिनी गार्गीः इनके के पिता का नाम वचक्नु था. इस कारण इन्हें वाचक्नवी भी कहते हैं. गर्ग गोत्र में उत्पन्न होने के कारण इन्हें गार्गी कहा जाता है. ये वेद शास्त्रों की महान विद्वान थीं. विद्वानों की मान्यता है कि इन्होंने शास्त्रार्थ में अपने युग में महान विद्वान महिर्ष याज्ञवल्क्य तक को हरा दिया था.
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विदुषी मैत्रेयीः ये महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी थीं. इन्होंने पति के श्रीचरणों में बैठकर वेदों का गहन अध्ययन किया. कहा जाता है कि पति परमेश्वर की उपाधि इन्हीं के कारण जग में प्रसिद्ध हुई. क्योंकि इन्होंने पति से ज्ञान प्राप्त किया था. इन्होंने ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए कन्या गुरुकुल स्थापित किए थे. ऐसी ही कई इस काल में 21 विदुषी महिलाओं का वर्णन इतिहास में मिलता है.
गुप्त काल में भी महिला ने स्थापित किया था अपना वर्चस्व
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. पीयूष भार्गव बताते हैं कि महिलाओं की यह स्थितियां काफी बाद तक ऐसे ही देखने को मिलती हैं. मौर्य काल से लेकर गुप्त काल तक कई ऐसी महिलाएं भी दिखी हैं, जिनकी भूमिका प्रशासन में भी बहुत ज्यादा है. जैसे गुप्त काल में प्रभावती गुप्ता का नाम आता है. यह चंद्रगुप्त द्वितीय की बेटी हैं, लेकिन वाकाटक वंश की एक तरह से पूर्ण शासिका भी है. अपने बच्चों की संरक्षिका के रूप में शासन-प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
प्रोफेसर भार्गव कहते हैं कि उतार-चढ़ाव जरूर आए, लेकिन यह स्थितियां आगे भी चलती रही हैं. जैसे हर्षवर्धन की बहन है राजश्री. उसके पति का वध कर दिया जाता है तो राज सिंहासन खाली हो जाता है. ऐसी स्थिति में राजश्री को उत्तराधिकारी के तौर पर घोषित किया जाता है.
सिक्कों पर भी मिलता है उल्लेख
प्रोफेसर डॉ. पीयूष ने बताया कि गुप्त काल में कुछ स्त्रियां जैसे ध्रुवस्वामिनी, कुबेर नागा इनके नाम सिक्कों पर भी मिले हैं, लेकिन मध्यकाल के शुरुआती दौर में जैसे-जैसे सामाजिक स्थितियां बदल रही हैं. बाहर से आक्रमणकारियों का प्रवेश शुरू हुआ तो स्त्रियों को ज्यादातर घरों में अंदर रखा जाने लगा. पर्दा प्रथा आई. इसका उदाहरण रजिया सुल्तान के शासन काल को दिया जाता है. उन्होंने 15 साल तक शासन किया, उसके बाद उनके दरबारी ही उसके खिलाफ चले गए थे.