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जांच में खुलासा, विनय पाठक ने करीबी के नौकरों की कंपनियों को दिया था टेंडर

कमीशनखोरी के मामले में एसटीएफ की जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. सूत्रों के मुताबिक, कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति विनय पाठक (Vice Chancellor of Kanpur University Vinay Pathak) ने अपने करीबी अजय मिश्रा के दो नौकरों की कंपनी को भी टेंडर दिया था.

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Published : Nov 18, 2022, 9:35 AM IST

लखनऊ : कमीशनखोरी के मामले में एसटीएफ की जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. सूत्रों के मुताबिक, कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति विनय पाठक (Vice Chancellor of Kanpur University Vinay Pathak) ने अपने करीबी अजय मिश्रा के दो नौकरों की कंपनी को भी टेंडर दिया था. एसटीएफ की आगरा यूनिट को ऐसे ही कई गड़बड़झाले डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में दिखे हैं, जो विनय पाठक के वहां के कुलपति रहते हुए थे.

एसटीएफ को मिले एक दस्तावेज की जांच की गई तो उसमें पता चला कि कैसे विनय पाठक ने एक एजेंसी को काम देने के लिए सभी प्रक्रिया एक ही दिन में पूरी कर दी और वर्कआर्डर थमा दिया. यह एजेंसियां सबसे ज्यादा अजय मिश्रा के नौकरों व करीबियों की थीं. जांच में पता चला है कि अजय ने विनय पाठक से साठगांठ कर अपने दो नौकरों के नाम से खोली गई कंपनियों के पेपर लगाए और खुद की कंपनी को एल-1 श्रेणी की बताकर काम ले लिया. जांच में यह भी सामने आया है कि शासन के निर्देशों के अनुसार दो लाख से अधिक के काम टेंडर या जेम पोर्टल के जरिए दिए जाने थे, लेकिन पाठक ने एक करोड़ तक के काम अपने चहेते को बिना टेंडर ही दे दिए और बिना वित्त नियंत्रक की अनुमति के ही भुगतान कर दिया. अब आगरा एसटीएफ की टीम विनय पाठक के कार्यकाल के दस्तावेज लेकर लखनऊ पहुंच गई है.

लखनऊ : कमीशनखोरी के मामले में एसटीएफ की जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. सूत्रों के मुताबिक, कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति विनय पाठक (Vice Chancellor of Kanpur University Vinay Pathak) ने अपने करीबी अजय मिश्रा के दो नौकरों की कंपनी को भी टेंडर दिया था. एसटीएफ की आगरा यूनिट को ऐसे ही कई गड़बड़झाले डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में दिखे हैं, जो विनय पाठक के वहां के कुलपति रहते हुए थे.

एसटीएफ को मिले एक दस्तावेज की जांच की गई तो उसमें पता चला कि कैसे विनय पाठक ने एक एजेंसी को काम देने के लिए सभी प्रक्रिया एक ही दिन में पूरी कर दी और वर्कआर्डर थमा दिया. यह एजेंसियां सबसे ज्यादा अजय मिश्रा के नौकरों व करीबियों की थीं. जांच में पता चला है कि अजय ने विनय पाठक से साठगांठ कर अपने दो नौकरों के नाम से खोली गई कंपनियों के पेपर लगाए और खुद की कंपनी को एल-1 श्रेणी की बताकर काम ले लिया. जांच में यह भी सामने आया है कि शासन के निर्देशों के अनुसार दो लाख से अधिक के काम टेंडर या जेम पोर्टल के जरिए दिए जाने थे, लेकिन पाठक ने एक करोड़ तक के काम अपने चहेते को बिना टेंडर ही दे दिए और बिना वित्त नियंत्रक की अनुमति के ही भुगतान कर दिया. अब आगरा एसटीएफ की टीम विनय पाठक के कार्यकाल के दस्तावेज लेकर लखनऊ पहुंच गई है.

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