लखनऊ : प्रदेश में कांग्रेस पार्टी इन दिनों मुस्लिम वोट बैंक पर नजरें गड़ाए है. पार्टी बड़े मुस्लिम चेहरों को जोड़कर इस समाज के वोट बैंक पर अपनी पकड़ बढ़ाना चाहती है. लंबे अरसे से मुस्लिमों की पहली पसंद समाजवादी पार्टी रही है, हालांकि कई ऐसे मौके आए हैं, जब समाजवादी पार्टी ने मुस्लिमों को निराश किया है. राम जन्मभूमि का मुद्दा हो अथवा मुस्लिमों से जुड़े अन्य विषय, समाजवादी पार्टी इन विषयों में कभी भी उतनी मुखर नहीं हुई, जिसकी अपेक्षा यह समाज कर रहा था. यह बात और है कि प्रदेश में मुस्लिमों के सामने कोई दूसरा राजनीतिक विकल्प अब तक नहीं है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों का बड़ा चेहरा माने जाने वाले इमरान मसूद विगत सात अक्टूबर को कांग्रेस में फिर लौट आए. यह उनकी तीसरी बार कांग्रेस में वापसी थी. इससे पहले वह 2007 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते थे और 2012 के विधानसभा चुनावों के वक्त कांग्रेस में शामिल हुए थे. लोकसभा चुनावों के वक्त वह 2014 में कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी में शामिल हुए, हालांकि वहां इमरान मसूद बहुत सहज नहीं रहे और 2017 के विधानसभा चुनावों के समय एक बार फिर कांग्रेस में लौट आए. 2022 के विधानसभा चुनावों के वक्त वह पहले सपा और फिर बसपा में शामिल हुए, हालांकि कुछ दिन पहले ही मायावती ने उन्हें अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया. ऐसे में उनके सामने कांग्रेस में जाने के सिवा कोई अन्य विकल्प शेष नहीं था.
इसी कड़ी में सोमवार को राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय सचिव नवाब अहमद हामिद ने प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय पर पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. राष्ट्रीय लोकदल के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है. अहमद हामिद का परिवार भी पहले कांग्रेस से जुड़ा रहा है. बागपत के नवाब परिवार से आने वाले अहमद हामिद की मुस्लिम समाज में अच्छी पैठ मानी जाती है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन दो बड़े चेहरों की कांग्रेस में वापसी से एक संदेश तो जा ही रहा है. गौरतलब है कि पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं. ऐसे में यदि माहौल बनता है, तो कांग्रेस को इसका लाभ भी जरूर मिलेगा.
2022 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया था. इस पार्टी का पश्चिमी यूपी में अच्छा वर्चस्व है. अब जब कि कांग्रेस वहां अपने पांव जमाने में लगी है, तो सपा-रालोद गठबंधन पर प्रभाव भी जरूर पड़ेगा. शायद कांग्रेस की रणनीति है कि राष्ट्रीय स्तर पर बन रहे गठबंधन के आधार पर जब लोकसभा के लिए सीटों का बंटवारा होगा, तो वह प्रदेश में अच्छी संख्या में सीटें मांगने के लिए इसी आधार पर दबाव बना पाएगी. हालांकि यदि पिछले दो लोकसभा चुनावों की बात करें, तो उसका प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दो और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई थी. ऐसे में कांग्रेस का अधिक सीटों पर दावा तो नहीं बनता, इसलिए पार्टी इस तरह के उपाय कर रही है. यही नहीं कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अजय राय लगातार सपा के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. स्वाभाविक है कि यह दबाव बनाने की राजनीति है. अब देखना होगा कि समाजवादी पार्टी कांग्रेस के इस दबाव में आएगी भी या नहीं.