लखनऊ : लाख कोशिशों के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार निराश्रित पशुओं के प्रबंधन को लेकर विफल रही है. ऐसा नहीं है कि सरकारी स्तर पर कोई प्रयास ही नहीं किया गया. सरकार बेसहारा पशुओं को लेकर कई योजनाएं लेकर आई है. इसके बावजूद समस्या जस की तस बनी हुई है. गांवों में प्रधानों के स्तर पर पशु बाड़े बनाए गए हैं. जिनमें निराश्रित पशुओं को रखे जाने के निर्देश हैं. हालांकि यह पशु बाड़े सिर्फ दिखावे भर के हैं. प्रधान अपनी जेब से निराश्रित पशुओं के लिए कब तक चारा-पानी का प्रबंध कर पाएंगे. सरकार ने पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए भी योजना शुरू की है. जिसमें हर गोपालक को ₹900 प्रति माह देने की घोषणा की है. शर्त यह है कि वह निराश्रित गोवंश का पालन पोषण करे. इस योजना का भी कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है. शायद इसलिए कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेना कोई आसान काम नहीं है. दूसरी ओर किसानों की समस्या जस की तस है. खेतों में तैयार फसल निराश्रित पशुओं का रेला कुछ ही देर में तहस-नहस कर देता है. किसान की दिन-रात की मेहनत मिनटों में बर्बाद हो जाती है. कई किसानों ने इसी कारण अपने खेत परती छोड़ दिए हैं.
सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद नहीं सुलझ रही निराश्रित पशुओं की समस्या. सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद नहीं सुलझ रही निराश्रित पशुओं की समस्या. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई बार कह चुके हैं कि कोई भी गोवंश निराश्रित न रहने पाए. उन्होंने अधिकारियों को इसके लिए उचित प्रबंध करने के निर्देश भी दिए हैं. इस को ध्यान में रखते हुए प्रदेश भर में लगभग सात हजार गोवंश संरक्षण स्थल बनाए गए हैं. इन संरक्षण स्थलों में साढ़े ग्यारह लाख गोवंश रखे जाने का दावा भी किया जाता है. यही नहीं इसी वर्ष एक जनवरी से तीन माह के लिए चलाए गए विशेष अभियान में सवा लाख से ज्यादा गोवंश की पशुओं को संरक्षित किए जाने का दावा भी किया जा रहा है. सरकारी स्तर पर निराश्रित गोवंश संरक्षण स्थलों पर चारे के प्रबंध करने के लिए भी जरूरी निर्देश दिए गए हैं. सरकार ने निराश्रित गोवंशीय पशु को आने वाले परिवार को ₹900 प्रति माह देने की योजना भी शुरू की है. एक अन्य सरकारी आदेश में कहा गया है कि अंत्येष्टि स्थलों पर लकड़ी का उपयोग कम कर बेसहारा पशु संरक्षण स्थलों से उपले लिए जाएं और दाह संस्कार में 50 फीसद उपलों का उपयोग का उपयोग किया जाए. सरकार दे निराश्रित पशु संरक्षण स्थलों से ₹2 प्रति किलो के हिसाब से गोबर खरीदने की योजना भी शुरू की. बावजूद इन सब प्रयासों के समस्या का समाधान नहीं निकल पाया है.
सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद नहीं सुलझ रही निराश्रित पशुओं की समस्या. सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद नहीं सुलझ रही निराश्रित पशुओं की समस्या. दरअसल निराश्रित पशुओं की संख्या इतनी ज्यादा है कि इन सब उपायों के बावजूद समस्या यथावत है. गांव में चारागाह की जमीनों पर कब से हो गए हैं या चारागाह बचे ही नहीं हैं. साल दर साल बारिश कम होने से मैदानों में उतनी घास भी नहीं मिलती कि यह निराश्रित पशु अपना पेट भर सकें. पशुओं का चारा भी इतना महंगा हो गया है कि लोग पशुपालन करना ही नहीं चाहते. यही कारण है कि गांवों और नगरों से आवारा पशुओं का रेला कम होने का नाम ही नहीं लेता. बुंदेलखंड में राष्ट्रीय राजमार्ग और एक्सप्रेस वे और भी सैकड़ों निराश्रित पशु घूमा करते हैं. इस कारण कई बार गंभीर हादसे भी होते हैं. सबसे विकट समस्या किसानों के लिए है. अब कृषि कार्य में बैलों का उपयोग नहीं होता और लोग आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करते हैं. पहले जब लोग बैलों से खेती करते थे तो गायों को भी संरक्षण मिलता था और उनके बछड़ों को भी. आज की तारीख में यह उपयोगिता पूरी तरह खत्म हो चुकी है. स्वाभाविक रूप से सरकार को इसका कोई स्थाई समाधान निकालना पड़ेगा. छिटपुट प्रयासों से बात बनने वाली नहीं है.
सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद नहीं सुलझ रही निराश्रित पशुओं की समस्या. इस संबंध में पशुपालक और प्रगतिशील किसान अतुल गुप्ता कहते हैं जब तक गांवों में चारागाहों को अतिक्रमण मुक्त नहीं कराया जाएगा, समस्या यथावत बनी रहेगी. पहले गांवों पशुओं को एकत्र कर चरने के लिए सामूहिक व्यवस्था थी. अब यह व्यवस्था समाप्त हो गई है. दूसरी बात अब कोई भी किसान पशुपालन नहीं करना चाहता. सरकार को पशुपालन को प्रोत्साहित करने वाली योजनाओं पर काम करना होगा. किसानों को भी ऐसी फसलों पर काम करना चाहिए. जिनमें पशुओं के लिए सालभर के चारे का प्रबंध हो. यदि इन सभी पहलुओं पर विचार किया जाए तो समस्या का समाधान निकल सकता है.
यह भी पढ़ें : ...जब मायावती सरकार में राजा पर लगा था पोटा, तब भानवी बनी थीं ढाल