लखनऊ: भले ही उत्तर प्रदेश की मौजूदा सियासी घमासान में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Congress National General Secretary Priyanka Gandhi Vadra) प्रभावित तरीके से पार्टी के खोते जनाधार को बढ़ाने की कोशिश कर रही हों, लेकिन यह भी सच है कि एक प्रियंका के बल पर मैदान फतह दूर की कौड़ी से ज्यादा और कुछ नहीं है. सूबे में पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने अब पंजे से किनारा कर लिया है. यही कारण है कि प्रियंका उन नेताओं को यह दिखाने व जताने को पूरी आक्रमकता के साथ मैदान में कूद पड़ी हैं कि उनके न रहने से पार्टी को कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है.
लेकिन असल हकीकत तो यह है कि कांग्रेस सूबे में ही नहीं, बल्कि देश की सियासत में भी लगातार पिछड़ते जा रही है. वहीं, यूपी में बदले देश-काल-परिस्थिति के बीच अपने सियासी क्लाइंट के लिए जमीन तैयार करने में जुटे सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Political Strategist Prashant Kishor) ने अब अपने 2017 के अधूरे प्लान को पूरा करने का मन बना लिया है.
दरअसल, 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रशांत कांग्रेस की जमीन मजबूर करने की कोशिश किए थे, लेकिन सूबे की जनता को अखिलेश संग राहुल गांधी की गलबहियां पसंद नहीं आई और अंततः पार्टी को शर्मनाक पराजय का मुंह देखना पड़ा. इधर, जितिन प्रसाद और ललितेशपति त्रिपाठी के पंजे से अलग सियासी राह चुनने से जहां सूबे में कांग्रेस कमजोर हुई है तो वहीं, दूसरी ओर जिलेवार कार्यकर्ताओं की कमी भी पार्टी को खल रही है. शायद यही वजह है कि अब पार्टी जिलेवार प्रवक्ता नियुक्ति के लिए आवेदन मांगने को मजबूर दिखी.
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सूत्रों की मानें तो कांग्रेस से अलग हुए ललितेशपति त्रिपाठी अब तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. बताया जा रहा है कि ललितेश आगामी 20 अक्टूबर को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. चर्चा यह भी है कि ममता उन्हें उत्तर प्रदेश की कमान सौंप सकती हैं. खैर, उनके कांग्रेस छोड़ने और तृणमूल कांग्रेस में उनकी मजबूत एंट्री की स्क्रिप्टिंग उनके मित्र व सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने की थी.
उक्त विषय पर नाम न जाहिर करने की शर्त पर सूबे के एक कांग्रेस नेता ने बताया- "2017 में पार्टी ने यूपी की रणनीति बनाने को प्रशांत किशोर को यहां लगाया था, तभी ललितेश और प्रशांत एक-दूसरे के करीब आए और दोनों के बीच मित्रवत संबंध बने. हालांकि, उस चुनाव में प्रशांत यहां कुछ खास नहीं कर पाए, लेकिन अब सूबे में कांग्रेस के लिए घातक बन गए हैं.
हाल ही में तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अपने मुखपत्र "जागो बांग्ला" में कांग्रेस पर जोरदार प्रहार करते हुए उसे कमजोर और विफल पार्टी करार दिया था. साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि अब देश की जनता तृणमूल कांग्रेस की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही है. ऐसे में अब तृणमूल, भाजपा को सत्ता से हटाने को वचनबद्ध हो मैदान में उतरने को तैयार है.
इधर, ललितेश सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलापथि त्रिपाठी के प्रपौत्र हैं. गांधी-नेहरू परिवार से ललितेशपति का चार पीढ़यों से नाता रहा है. मिर्जापुर के मड़िहान विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर वे विधायक भी रह चुके हैं और प्रियंका गांधी के करीबी माने जाते थे. कांग्रेस सूत्रों की मानें तो पीके के प्रभाव में आकर ही उन्होंने पहले पार्टी छोड़ी और अब तृणमूल में शामिल होने जा रहे हैं.
तृणमूल सूत्रों की मानें तो ललितेश आगामी 20 अक्टूबर को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. वहीं, कहा यह भी जा रहा है कि वे कोलकाता में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हाथों पार्टी का झंडा थामेंगे. साथ ही सूबे में तृणमूल उन्हें संगठन खड़ा करने की जिम्मेदारी सौंप सकती है. लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि ललितेश भला कैसे सूबे में दीदी को मजबूत करते हैं?
हालांकि, खबर यह भी है कि ललितेश 20 अक्टूबर को या फिर इस महीने के किसी तारीख को तृणमूल में शामिल हो सकते हैं. इस बीच उनकी ममता बनर्जी से दो बार मुलाकात भी हो चुकी है.
बता दें कि कांग्रेस छोड़ने से पहले ललितेश ममता बनर्जी से मिले थे और दूसरी मुलाकात हाल ही में हुई थी. इधर, ललितेश के समर्थक चाहते हैं कि वे तृणमूल में न शामिल होकर समाजवादी पार्टी से जुड़े. लेकिन ललितेश खुद को सपा में फीट नहीं पा रहे हैं. हालांकि, उनके कांग्रेस छोड़ने के बाद से ही सपा में जाने की चर्चाएं तेज थी, लेकिन खुद उन्होंने कहा था भविष्य की सियासत का फैसला अपने समर्थकों के साथ चर्चा करने के बाद ही लेंगे.
दरअसल, ललितेश के समाजवादी पार्टी के बजाय तृणमूल में जाने के फैसले के पीछे वैचारिक कारण माने जा रहे हैं. वहीं, पश्चिम बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद दीदी अब देश की सियासत में सक्रिय भूमिका निभाने को अग्रसर हैं और इसके लिए जरूरी है कि तृणमूल का तेजी से विस्तार हो. यही नहीं अब दीदी तृणमूल को कांग्रेस का विकल्प बनाने की कवायद में जुटी है. खैर, ममता भी कांग्रेस से ही आई हैं.
इधर, अखिलेश यादव और ममता बनर्जी के बीच तालमेल बेहतर होने का लाभ भी मिल सकता है. सपा ने बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को बिना शर्त समर्थन किया था तो ऐसे में तृणमूल या तो यूपी के 2022 विधानसभा चुनाव में सपा को अपना समर्थन दे सकती है या फिर गठबंधन कर मैदान में प्रत्याशी उतारेगी. कुछ लोगों की मानें तो तृणमूल गठबंधन पर अधिक जोर दे रही है.
सूत्रों की मानें तो ललितेशपति त्रिपाठी की तृणमूल में एंट्री के पीछे चुनावी रणनीतिकार पीके की अहम भूमिका मानी जा रही है. पीके 2017 में यूपी चुनाव में कांग्रेस के लिए काम कर रहे थे, उसी दौरान ललितेश के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ी थी. ऐसे में ललितेश को ममता से मिलाने से लेकर तृणमूल में शामिल कराने और उनकी भूमिका को तय कराने की पूरी पठकथा पीके ने ही लिखी है.