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सुरेंद्र नागर ने सपा से तोड़ा नाता, राज्यसभा सदस्यता से भी दिया इस्तीफा - breaking news

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक उठापठक जारी है, खासकर समाजवादी पार्टी के लिए यह दौर संकट भरा है. पार्टी से जुड़े कई दिग्गज नेता पार्टी का दामन छोड़ रहे हैं. नीरज शेखर के बाद सपा से राज्यसभा सांसद सुरेंद्र नागर ने भी पार्टी का दामन छोड़ दिया.

समाजवादी पार्टी से सुरेंद्र नागर ने दिया इस्तीफा.
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Published : Aug 2, 2019, 10:51 PM IST

लखनऊ: समाजवादी पार्टी को राज्यसभा में दूसरा झटका सुरेंद्र नागर ने दिया है. नीरज शेखर के बाद उन्होंने भी सदस्यता से इस्तीफा देते हुए भाजपा में जाने के संकेत दिए हैं. सुरेंद्र नागर को समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव का बेहद करीबी नेता माना जाता था. समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद भी बारी-बारी साथ छोड़ कर जा रहे हैं. नीरज शेखर के बाद अब उनके बेहद करीबी माने जाने वाले सुरेंद्र सिंह नागर ने भी शुक्रवार को समाजवादी पार्टी को अलविदा कह दिया.

जानकारी देते संवाददाता.

सुरेंद्र सिंह नागर का सपा से मोह भंग

  • नागर ने अपना इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को भेजा है और अखिलेश यादव ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है.
  • मामले में समाजवादी पार्टी अभी कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है.
  • सुरेंद्र सिंह नागर को गौतम बुद्ध नगर गाजियाबाद क्षेत्र में गुर्जर समाज के बड़े नेताओं में शामिल किया जाता है.
  • नागर 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बहुजन समाज पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथी बने थे.
  • अखिलेश यादव ने उन्हें राज्यसभा भेजा और पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया था.
  • नागर ने शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच चले सत्ता संघर्ष के दौरान शिवपाल के बजाय अखिलेश का दामन थामा.
  • सुरेंद्र सिंह का राजनीति में लंबा करियर है, उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस के साथ की थी.
  • पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधान परिषद के सदस्य बने थे.

इसे भी पढ़ें- लखनऊ: मॉब लिंचिंग ने ली एक और निर्दोष की जान

नागर राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर दोबारा विधान परिषद में पहुंचे. 2004 में सुरेंद्र सिंह नागर ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर गौतम बुद्ध नगर से लोकसभा सीट का चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी के डॉक्टर महेश शर्मा को पराजित किया. 2009 में उनका बसपा से मोहभंग हुआ और वह समाजवादी हो गए.

लखनऊ: समाजवादी पार्टी को राज्यसभा में दूसरा झटका सुरेंद्र नागर ने दिया है. नीरज शेखर के बाद उन्होंने भी सदस्यता से इस्तीफा देते हुए भाजपा में जाने के संकेत दिए हैं. सुरेंद्र नागर को समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव का बेहद करीबी नेता माना जाता था. समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद भी बारी-बारी साथ छोड़ कर जा रहे हैं. नीरज शेखर के बाद अब उनके बेहद करीबी माने जाने वाले सुरेंद्र सिंह नागर ने भी शुक्रवार को समाजवादी पार्टी को अलविदा कह दिया.

जानकारी देते संवाददाता.

सुरेंद्र सिंह नागर का सपा से मोह भंग

  • नागर ने अपना इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को भेजा है और अखिलेश यादव ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है.
  • मामले में समाजवादी पार्टी अभी कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है.
  • सुरेंद्र सिंह नागर को गौतम बुद्ध नगर गाजियाबाद क्षेत्र में गुर्जर समाज के बड़े नेताओं में शामिल किया जाता है.
  • नागर 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बहुजन समाज पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथी बने थे.
  • अखिलेश यादव ने उन्हें राज्यसभा भेजा और पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया था.
  • नागर ने शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच चले सत्ता संघर्ष के दौरान शिवपाल के बजाय अखिलेश का दामन थामा.
  • सुरेंद्र सिंह का राजनीति में लंबा करियर है, उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस के साथ की थी.
  • पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधान परिषद के सदस्य बने थे.

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नागर राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर दोबारा विधान परिषद में पहुंचे. 2004 में सुरेंद्र सिंह नागर ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर गौतम बुद्ध नगर से लोकसभा सीट का चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी के डॉक्टर महेश शर्मा को पराजित किया. 2009 में उनका बसपा से मोहभंग हुआ और वह समाजवादी हो गए.

Intro:लखनऊ .समाजवादी पार्टी को राज्यसभा में दूसरा झटका सुरेंद्र नागर ने दिया है. नीरज शेखर के बाद उन्होंने भी सदस्यता से इस्तीफा देते हुए भाजपा में जाने के संकेत दिए हैं. सुरेंद्र नागर को समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव का बेहद करीबी नेता माना जाता था.


Body:समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद भी बारी-बारी साथ छोड़ कर जा रहे हैं नीरज शेखर के बाद अब उनके बेहद करीबी माने जाने वाले सुरेंद्र सिंह नागर ने भी शुक्रवार को समाजवादी पार्टी को अलविदा कह दिया. उन्होंने पार्टी की सदस्यता से भी इस्तीफा दिया है. बताया जाता है कि उन्होंने अपना इस्तीफा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को भेजा है और अखिलेश यादव ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है हालांकि इस मामले में समाजवादी पार्टी अभी कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है लेकिन सुरेंद्र सिंह नागर के इस्तीफे को पार्टी के लिए करारा झटका माना जा रहा है सुरेंद्र सिंह नागर को गौतम बुद्ध नगर गाजियाबाद क्षेत्र में गुर्जर समाज के बड़े नेताओं में शामिल किया जाता है वह 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बहुजन समाज पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ ही बने थे अखिलेश यादव भी उन्हें अपना बेहद खास मानते थे अखिलेश यादव ने ही उन्हें राजसभा भेजा और पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया था इससे अंदाजा लगाया जा सकता है उनकी पार्टी में अहमियत इतनी ज्यादा थी सुरेंद्र सिंह नागर ने समाजवादी पार्टी में रहते हुए शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच चले सत्ता संघर्ष के दौरान शिवपाल के बजाय अखिलेश का दामन थामा और उनके साथ मजबूती से खड़े रहे. सुरेंद्र सिंह नागर का राजनीति में लंबा कैरियर है उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेश के साथ की और कांग्रेस के टिकट पर विधान परिषद के सदस्य बने थे उसके बाद वह राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर दोबारा विधान परिषद में पहुंचे 2004 में सुरेंद्र सिंह नागर ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर गौतम बुद्ध नगर से लोकसभा सीट का चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी के डॉक्टर महेश शर्मा को पराजित किया 2009 में उनका बसपा से मोहभंग हुआ और वह समाजवादी हो गए बाद में समाजवादी पार्टी ने उन्हें राज्य सभा सदस्यता का चुनाव जिताया.


उनके पार्टी छोड़ने की चर्चा उसी वक्त तेज हो गई थी जब नीरज शेखर ने भाजपा का दामन थामा था बताया जाता है कि सुरेंद्र सिंह नागर और नीरज शेखर के रिश्ते बेहद करीबी हैं और अब सुरेंद्र सिंह नागर भी एक-दो दिन में भाजपा का दामन थाम लेंगे हालांकि इस बारे में सुरेंद्र सिंह नगर से फोन पर बात करने की कोशिश की गई तो उनके मोबाइल फोन का स्विच ऑफ रहा लोकसभा चुनाव के दौरान भी सुरेंद्र सिंह नागर के समाजवादी पार्टी छोड़ने की चर्चा रही और कहा गया कि वह भाजपा की ओर से अमरोहा या कैराना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन बाद में चर्चा आई कि उन्हें भाजपा राजस्थान से टिकट देना चाहती थी इस वजह से उन्होंने ऑफर ठुकरा दिया. बताया जाता है कि गौतम बुध नगर लोकसभा सीट से वह चुनाव लड़ने के इच्छुक थे लेकिन सपा बसपा गठबंधन में जब यह सीट बसपा खेमे में चली गई तो उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर अपने परिवार के सदस्य को चुनाव लड़ाने की कोशिश की लेकिन मायावती इसके लिए तैयार नहीं हुई. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नोएडा और आसपास के जिलों में गुर्जर समाज की राजनीति के लिए भारतीय जनता पार्टी उनका इस्तेमाल करना चाहती है इसी वजह से उन पर दांव चला गया है.

वॉक थ्रू अखिलेश तिवारी


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