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सियासत के कोल्हू में कौन जाएगा पेरा, राजनीतिक दल या गन्ना किसान ?

प्रदेश में सियासी दलों के बीच भले ही कड़वाहट बढ़ती दिखाई दे रही हो, लेकिन चुनावी समर की शुरुआत गन्ने की मिठास वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हो रही है. ऐसे में किसानों का प्रमुख चुनावी मुद्दा गन्ना भुगतान है. जिसको भुनाने में सभी पार्टियां लगी हुईं हैं.

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Published : Mar 29, 2019, 8:35 PM IST

लखनऊ : लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में सियासी सूरज पश्चिम से सफर शुरू कर रहा है. ऐसे में सबसे अहम चुनावी मुद्दा गन्ना किसानों का बकाया भुगतान है. कई सालों से चीनी मिल मालिक और सरकारी मशीनरी के शिकार गन्ना किसान इस बार जो फैसला सुनाएंगे उसका असर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अगले तीनसालों तक दिखाई देगा.

गन्ना किसानों के मुद्दे पर बोलते पार्टी नेता.


पीएम जहां 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान वह गन्ना किसानों को फुसलाने की कामयाब कोशिश कर चुके हैं. वहीं पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की समस्याएं एक बार फिर मुद्दा बनती दिखाई दे रही है. हालांकि समाजवादी पार्टी खुला आरोप लगा रही है कि प्रधानमंत्री ने गन्ना किसानों की उपेक्षा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है.


गन्ना किसानों की बदहाली किसी से छुपी नहीं है. सरकारी शोध संस्थान गन्ना उत्पादन की जो लागत बता रहे हैं, सरकारी गन्ना मूल्य की दर उससे भी कम है. इसके बावजूद गन्ना किसानों का मिलों पर बकाया हर साल बढ़ता जा रहा है.


गन्ना किसानों की इतने सालों में ना तो पर्ची की दिक्कत खत्म हुई और ना चीनी मिल प्रबंधन की मनमानी पर ही अंकुश लगा. हाईकोर्ट ने साफ आदेश दिया है कि गन्ना किसानों के बकाया पर चीनी मिल मालिक ब्याज चुकाएं, लेकिन सरकार इस आदेश को लागू कराने में हाथ खड़े कर रही है . ऐसे में गन्ना किसानों की समस्या कब तक अंतहीन बनी रहेगी इसका जवाब फिलहाल राजनीतिक दलों की ईमानदारी और इच्छाशक्ति पर निर्भर है.

लखनऊ : लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में सियासी सूरज पश्चिम से सफर शुरू कर रहा है. ऐसे में सबसे अहम चुनावी मुद्दा गन्ना किसानों का बकाया भुगतान है. कई सालों से चीनी मिल मालिक और सरकारी मशीनरी के शिकार गन्ना किसान इस बार जो फैसला सुनाएंगे उसका असर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अगले तीनसालों तक दिखाई देगा.

गन्ना किसानों के मुद्दे पर बोलते पार्टी नेता.


पीएम जहां 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान वह गन्ना किसानों को फुसलाने की कामयाब कोशिश कर चुके हैं. वहीं पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की समस्याएं एक बार फिर मुद्दा बनती दिखाई दे रही है. हालांकि समाजवादी पार्टी खुला आरोप लगा रही है कि प्रधानमंत्री ने गन्ना किसानों की उपेक्षा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है.


गन्ना किसानों की बदहाली किसी से छुपी नहीं है. सरकारी शोध संस्थान गन्ना उत्पादन की जो लागत बता रहे हैं, सरकारी गन्ना मूल्य की दर उससे भी कम है. इसके बावजूद गन्ना किसानों का मिलों पर बकाया हर साल बढ़ता जा रहा है.


गन्ना किसानों की इतने सालों में ना तो पर्ची की दिक्कत खत्म हुई और ना चीनी मिल प्रबंधन की मनमानी पर ही अंकुश लगा. हाईकोर्ट ने साफ आदेश दिया है कि गन्ना किसानों के बकाया पर चीनी मिल मालिक ब्याज चुकाएं, लेकिन सरकार इस आदेश को लागू कराने में हाथ खड़े कर रही है . ऐसे में गन्ना किसानों की समस्या कब तक अंतहीन बनी रहेगी इसका जवाब फिलहाल राजनीतिक दलों की ईमानदारी और इच्छाशक्ति पर निर्भर है.

Intro:लखनऊ ।लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में सियासी सूरज पश्चिम से सफर शुरू कर रहा है तो सबसे अहम चुनावी मुद्दा गन्ना किसानों का बकाया भुगतान बनने जा रहा है कई सालों से चीनी मिल मालिक और सरकारी मशीनरी की दुरभि संधि के शिकार गन्ना किसान इस बार जो फैसला सुनाएंगे उसका असर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अगले 3 सालों तक दिखाई देगा।


Body:उत्तर प्रदेश में सियासी दलों के बीच भले ही कड़वाहट बढ़ती दिखाई दे रही हो लेकिन चुनावी समर की शुरुआत गन्ने की मिठास वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हो रही है जो उत्तर प्रदेश में किसानों का एजेंडा तय करता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बृहस्पतिवार को जब मेरठ पहुंचे तो उम्मीद थी कि वह गन्ना किसानों के दुख पर मरहम रखेंगे। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान वह गन्ना किसानों को फुसलाने की कामयाब कोशिश कर चुके हैं पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की समस्याएं एक बार फिर मुद््दा बनती दिखाई दे रही है हालांकि समाजवादी पार्टी खुला आरोप लगा रही है कि प्रधानमंत्री ने गन्ना किसानों की उपेक्षा में कोई कोर कसर नहीं उठा रखी है।

बाइट /अमीक जामई प्रवक्ता समाजवादी पार्टी

गन्ना किसानों की बदहाली किसी से छुपी नहीं है सरकारी शोध संस्थान गन्ना उत्पादन की जो लागत बता रहे हैं सरकारी गन्ना मूल्य की दर उससे भी कम है इसके बावजूद गन्ना किसानों का मिलो पर बकाया हर साल बढ़ता जा रहा है आइए आपको बताते हैं किस तरह मिलो पर गन्ना किसानों का बकाया है।

मिले..... चीनी उत्पादन( लाख कुंटल में )....बकाया (करोड़ में)

निगम- एक.......4.26...........50.99

सहकारी-24.......66.24........884.29
निजी-92.......812.09.........9800.89

बाइट/संजय राय, प्रवक्ता भाजपा



Conclusion:गन्ना किसानों की इतने सालों में ना तो पर्ची की दिक्कत खत्म हुई और ना चीनी मिल प्रबंधन की मनमानी पर ही अंकुश लगा । हाई कोर्ट ने साफ आदेश दिया है कि गन्ना किसानों के बकाया पर चीनी मिल मालिक ब्याज चुकाएं लेकिन सरकार इस आदेश को लागू कराने में हाथ खड़े कर रही है । ऐसे में गन्ना किसानों की समस्या कब तक अंतहीन बनी रहेगी इसका जवाब फिलहाल राजनीतिक दलों की ईमानदारी और इच्छाशक्ति पर निर्भर है।

पीटीसी अखिलेश तिवारी

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