लखनऊ : लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में सियासी सूरज पश्चिम से सफर शुरू कर रहा है. ऐसे में सबसे अहम चुनावी मुद्दा गन्ना किसानों का बकाया भुगतान है. कई सालों से चीनी मिल मालिक और सरकारी मशीनरी के शिकार गन्ना किसान इस बार जो फैसला सुनाएंगे उसका असर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अगले तीनसालों तक दिखाई देगा.
पीएम जहां 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान वह गन्ना किसानों को फुसलाने की कामयाब कोशिश कर चुके हैं. वहीं पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की समस्याएं एक बार फिर मुद्दा बनती दिखाई दे रही है. हालांकि समाजवादी पार्टी खुला आरोप लगा रही है कि प्रधानमंत्री ने गन्ना किसानों की उपेक्षा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है.
गन्ना किसानों की बदहाली किसी से छुपी नहीं है. सरकारी शोध संस्थान गन्ना उत्पादन की जो लागत बता रहे हैं, सरकारी गन्ना मूल्य की दर उससे भी कम है. इसके बावजूद गन्ना किसानों का मिलों पर बकाया हर साल बढ़ता जा रहा है.
गन्ना किसानों की इतने सालों में ना तो पर्ची की दिक्कत खत्म हुई और ना चीनी मिल प्रबंधन की मनमानी पर ही अंकुश लगा. हाईकोर्ट ने साफ आदेश दिया है कि गन्ना किसानों के बकाया पर चीनी मिल मालिक ब्याज चुकाएं, लेकिन सरकार इस आदेश को लागू कराने में हाथ खड़े कर रही है . ऐसे में गन्ना किसानों की समस्या कब तक अंतहीन बनी रहेगी इसका जवाब फिलहाल राजनीतिक दलों की ईमानदारी और इच्छाशक्ति पर निर्भर है.