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परिवारवाद से दूर रहे अखिलेश का 'एकला चलो' प्लान, खेमे बंदी का असर या नयी सपा की हवा - यूपी विधानसभा चुनाव 2022

अखिलेश यादव इस नयी सपा में परिवारवाद के दंश को निकालने की कोशिश में दिख रहे हैं. इस चुनाव में वो परिवार की ओर से एकला चलो की भूमिका में हैं.  कभी यूपी के हर चुनावी मैदान में दिखने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का कुनबा 2022 के विधानसभा चुनाव से गायब दिख रहा है.

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव
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Published : Jan 24, 2022, 9:41 PM IST

Updated : Jan 24, 2022, 10:22 PM IST

लखनऊ: नई हवा है नई सपा है, ये नारा है समाजवादी पार्टी का और इसे जोर-शोर से पार्टी के नेता लोगों तक पहुंचा रहे हैं. पार्टी में क्या नया है, ये तो चुनाव के बाद ही साफ होगा. लेकिन चुनाव से पहले इस पार्टी में क्या बदला है आज इस पर बात करते हैं. अखिलेश यादव इस नयी सपा में परिवारवाद के दंश को निकालने की कोशिश में दिख रहे हैं. इस चुनाव में वो परिवार की ओर से एकला चलो की भूमिका में हैं.

कभी यूपी के हर चुनावी मैदान में दिखने वाले मुलायम सिंह यादव का कुनबा 2022 के विधानसभा चुनाव से गायब दिख रहा है. अखिलेश यादव के अलावा सिर्फ शिवपाल सिंह ही चुनावी मैदान में डटे हुए हैं. यहां तक राम गोपाल यादव भी न ही सियासी फैसलों में उतना मुखर है और न ही अन्य यादव परिवार के सदस्य अखिलेश के साथ किसी मंच पर दिख रहे हैं. इससे पहले लगभग हर चुनावों में मुलायम परिवार का कोई न कोई सदस्य विधानसभा क्षेत्र पर दावा ठोकते हुए और चुनावी रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाते दिखते रहे हैं, जिससे साबित हो रहा है कि अखिलेश यादव परिवारवाद को किनारे कर नयी सपा बनाने में जुटे हुए हैं. यही कारण है कि मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव और समधी हरिओम जिनकी इस चुनाव में चली नहीं तो वे बीजेपी का दामन थाम लिये.

परिवारवाद से दूर रह अखिलेश का 'एकला चलो' प्लान
मुलायम सिंह यादव के शुरुआती राजनीतिक यात्रा के समय से सपा पर बारीकी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र दुबे बताते है कि जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की नींव रखी थीं, तब उन्होंने खुद को यादवों का नेता बताने और उसे साबित करने के लिए अपने इर्द-गिर्द यादवों को रखना शुरु किया था, जिसमें अधिकतर उनके परिवार के सदस्य और रिश्तेदार थे. लेकिन अब अखिलेश यादव नयी सपा बना रहे हैं. अखिलेश के जो भाई धर्मेंद यादव और अक्षय यादव और चाचा राम गोपाल यादव कभी चुनाव के वक्त पार्टी कार्यालय में डेरा डाले रहते थे, वो आज गायब है. यही नहीं अपर्णा के जाने के बाद भी अखिलेश खुश ही दिखे क्योंकि वे खुद चाहते हैं कि परिवार के लोग बाहर जाएंगे. तब ही उन पर से परिवारवाद का दाग धुलेगा. सुरेंद्र दुबे बताते हैं कि अखिलेश ने नए संगठन में यादवों को भी कम जगह दी है. यही नहीं परिवार के लोगों को भी संगठन में न के बराबर जगह दी है. मुलायम सिंह यादव के परिवार में लगभग 30 से ज्यादा लोग समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं, जो सीधे तौर पर पार्टी की सियासी समीकरणों और टिकट बंटवारे पर हस्तक्षेप रखते हैं. साथ ही जिला पंचायत सदस्य से लेकर लोकसभा तक के सदस्य हैं.

इसे भी पढ़ेंः अखिलेश यादव मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से लड़ेंगे चुनाव

1: मुलायम सिंह यादव के सबसे बड़े भाई अभय राम यादव के बेटे धर्मेंद्र यादव 3 बार सांसद रहे हैं. अखिलेश यादव के साथ वे हर जगह दिखते थे. लेकिन इस चुनाव में अब तक एक बार भी धर्मेंद यादव को नहीं देखा गया है.

2: रतन सिंह यादव मुलायम के दूसरे भाई है. इनके पोते तेज प्रताप यादव भी सांसद रहे हैं. चुनाव के बीच समाजवादी पार्टी कार्यालय में हमेशा दिखने वाले तेज भी इस बार गायब हैं.

3: अक्षय यादव राम गोपाल यादव के बेटे हैं और फिरोजाबाद से सांसद रह चुके हैं, 2019 के लोक सभा चुनाव में हार मिली तो अब ज्यादा सक्रियता दिख नहीं रही है.

4: हरिओम यादव, मुलायम के समधी है और दो बार सपा सीट से विधायक रह चुके हैं, टिकट बंटवारे में हरिओम का वर्चस्व माना जा रहा है. लेकिन इस बार अखिलेश यादव की परिवार के प्रति बेरुखी देख वे बीजेपी के हो गये.

5: प्रमोद गुप्ता: मुलायम सिंह सिंह के साढू और उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बहनोई हैं. ये भी सपा की सीट से विधायकी लड़ कर जीत चुके हैं. इस चुनाव में परिवार का पार्टी में दखल न होते देख वो बगावत कर चुके हैं.

अखिलेश यादव द्वारा परिवारवाद का दाग साफ कर नयी सपा बनाने को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान शुक्ला का मानना है कि अखिलेश यादव परिवार के सदस्यों को दूर नहीं बल्कि सिर्फ अपने खेमे के सदस्यों को अपने पास रखे हुए हैं. अंशुमान कहते हैं कि समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के परिवार में जो आपसी रार बनी वो अब दो खेमों में बंट गयी है. अखिलेश यादव ने अपने खेमे के लोगों को चुना है, जिनकी संख्या कम है. इसलिए ज्यादा दिखते नहीं और दूसरे खेमे को हासिये पर ला दिया, जिनकी संख्या ज्यादा है. इसलिए रथ यात्रा में परिवार का कोई भी सदस्य नहीं दिखा और अब जब टिकटों के बंटवारे हो रहे हैं तो भी कोई दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है.

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लखनऊ: नई हवा है नई सपा है, ये नारा है समाजवादी पार्टी का और इसे जोर-शोर से पार्टी के नेता लोगों तक पहुंचा रहे हैं. पार्टी में क्या नया है, ये तो चुनाव के बाद ही साफ होगा. लेकिन चुनाव से पहले इस पार्टी में क्या बदला है आज इस पर बात करते हैं. अखिलेश यादव इस नयी सपा में परिवारवाद के दंश को निकालने की कोशिश में दिख रहे हैं. इस चुनाव में वो परिवार की ओर से एकला चलो की भूमिका में हैं.

कभी यूपी के हर चुनावी मैदान में दिखने वाले मुलायम सिंह यादव का कुनबा 2022 के विधानसभा चुनाव से गायब दिख रहा है. अखिलेश यादव के अलावा सिर्फ शिवपाल सिंह ही चुनावी मैदान में डटे हुए हैं. यहां तक राम गोपाल यादव भी न ही सियासी फैसलों में उतना मुखर है और न ही अन्य यादव परिवार के सदस्य अखिलेश के साथ किसी मंच पर दिख रहे हैं. इससे पहले लगभग हर चुनावों में मुलायम परिवार का कोई न कोई सदस्य विधानसभा क्षेत्र पर दावा ठोकते हुए और चुनावी रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाते दिखते रहे हैं, जिससे साबित हो रहा है कि अखिलेश यादव परिवारवाद को किनारे कर नयी सपा बनाने में जुटे हुए हैं. यही कारण है कि मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव और समधी हरिओम जिनकी इस चुनाव में चली नहीं तो वे बीजेपी का दामन थाम लिये.

परिवारवाद से दूर रह अखिलेश का 'एकला चलो' प्लान
मुलायम सिंह यादव के शुरुआती राजनीतिक यात्रा के समय से सपा पर बारीकी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र दुबे बताते है कि जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की नींव रखी थीं, तब उन्होंने खुद को यादवों का नेता बताने और उसे साबित करने के लिए अपने इर्द-गिर्द यादवों को रखना शुरु किया था, जिसमें अधिकतर उनके परिवार के सदस्य और रिश्तेदार थे. लेकिन अब अखिलेश यादव नयी सपा बना रहे हैं. अखिलेश के जो भाई धर्मेंद यादव और अक्षय यादव और चाचा राम गोपाल यादव कभी चुनाव के वक्त पार्टी कार्यालय में डेरा डाले रहते थे, वो आज गायब है. यही नहीं अपर्णा के जाने के बाद भी अखिलेश खुश ही दिखे क्योंकि वे खुद चाहते हैं कि परिवार के लोग बाहर जाएंगे. तब ही उन पर से परिवारवाद का दाग धुलेगा. सुरेंद्र दुबे बताते हैं कि अखिलेश ने नए संगठन में यादवों को भी कम जगह दी है. यही नहीं परिवार के लोगों को भी संगठन में न के बराबर जगह दी है. मुलायम सिंह यादव के परिवार में लगभग 30 से ज्यादा लोग समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं, जो सीधे तौर पर पार्टी की सियासी समीकरणों और टिकट बंटवारे पर हस्तक्षेप रखते हैं. साथ ही जिला पंचायत सदस्य से लेकर लोकसभा तक के सदस्य हैं.

इसे भी पढ़ेंः अखिलेश यादव मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से लड़ेंगे चुनाव

1: मुलायम सिंह यादव के सबसे बड़े भाई अभय राम यादव के बेटे धर्मेंद्र यादव 3 बार सांसद रहे हैं. अखिलेश यादव के साथ वे हर जगह दिखते थे. लेकिन इस चुनाव में अब तक एक बार भी धर्मेंद यादव को नहीं देखा गया है.

2: रतन सिंह यादव मुलायम के दूसरे भाई है. इनके पोते तेज प्रताप यादव भी सांसद रहे हैं. चुनाव के बीच समाजवादी पार्टी कार्यालय में हमेशा दिखने वाले तेज भी इस बार गायब हैं.

3: अक्षय यादव राम गोपाल यादव के बेटे हैं और फिरोजाबाद से सांसद रह चुके हैं, 2019 के लोक सभा चुनाव में हार मिली तो अब ज्यादा सक्रियता दिख नहीं रही है.

4: हरिओम यादव, मुलायम के समधी है और दो बार सपा सीट से विधायक रह चुके हैं, टिकट बंटवारे में हरिओम का वर्चस्व माना जा रहा है. लेकिन इस बार अखिलेश यादव की परिवार के प्रति बेरुखी देख वे बीजेपी के हो गये.

5: प्रमोद गुप्ता: मुलायम सिंह सिंह के साढू और उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बहनोई हैं. ये भी सपा की सीट से विधायकी लड़ कर जीत चुके हैं. इस चुनाव में परिवार का पार्टी में दखल न होते देख वो बगावत कर चुके हैं.

अखिलेश यादव द्वारा परिवारवाद का दाग साफ कर नयी सपा बनाने को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान शुक्ला का मानना है कि अखिलेश यादव परिवार के सदस्यों को दूर नहीं बल्कि सिर्फ अपने खेमे के सदस्यों को अपने पास रखे हुए हैं. अंशुमान कहते हैं कि समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के परिवार में जो आपसी रार बनी वो अब दो खेमों में बंट गयी है. अखिलेश यादव ने अपने खेमे के लोगों को चुना है, जिनकी संख्या कम है. इसलिए ज्यादा दिखते नहीं और दूसरे खेमे को हासिये पर ला दिया, जिनकी संख्या ज्यादा है. इसलिए रथ यात्रा में परिवार का कोई भी सदस्य नहीं दिखा और अब जब टिकटों के बंटवारे हो रहे हैं तो भी कोई दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है.

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Last Updated : Jan 24, 2022, 10:22 PM IST
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