लखनऊ: एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव 'आली' संस्था की ओर से तीन दिवसीय नेटवर्क मीटिंग का आयोजन किया गया. इस मीटिंग में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड के विभिन्न संस्थाओं से जुड़े सदस्य वकील और केस वर्कर्स समेत 98 प्रतिभागियों ने भाग लिया.
साझा किए अनुभव:
मुजफ्फरनगर से आई रेहाना अदीब ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि अल्पसंख्यकों को समाज में अपनी पहचान को साबित करना पड़ रहा है. उन्हें समाज के एक अलग हिस्से की तरह देखा जाता है. जिसकी वजह से वह कभी समाज का हिस्सा नहीं बन पाते इसके अलावा उन्होंने बताया कि मुस्लिम औरतें भी मानवाधिकार मुद्दों के बारे में जानें और सामने आएं.
377 में अभी कानूनी अधिकार पाना बाकी:
लखनऊ में मानव अधिकार पर काम करने वाले दरवेश ने बताया कि ट्रांसजेंडर, लेस्बियन और गे समुदाय के लोगों को भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. भले ही उनको धारा 377 के तहत थोड़ा आराम मिला हो, लेकिन अभी भी कानूनी अधिकार पाने की जंग बाकी है जो उन्हें अब तक नहीं मिली है.
इस तीन दिवसीय मीटिंग के दौरान हमने प्रतिभागियों और संस्थाओं के साथ बातचीत कर इस नेटवर्क टीम का नाम 'सजग' रखने का निर्णय लिया है. सजग का पूरा अर्थ 'स्ट्रैंथनिंग एक्सेस टू जस्टिस एट ग्रासरूट्स' है जिससे जमीनी स्तर पर न्याय तक पहुंचने के लिए और मजबूती मिलेगी.
शुभांगी, वकील