लखनऊ : लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे सामने आ चुके हैं और सभी दल अपनी-अपनी हार-जीत का विश्लेषण करने में लगे हैं. राजनीतिक विश्लेषक भी सपा बसपा गठबंधन का विश्लेषण कर रहे हैं. वहीं चुनावी नतीजों को देखा जाए तो इस गठबंधन से समाजवादी पार्टी को फायदे से ज्यादा नुकसान ही हुआ है. वहीं बसपा के लिए यह गठबंधन संजीवनी साबित हो रहा है.
साल 2014 में शून्य सीटों के साथ अपना अस्तित्व खो चुकी मायावती की पार्टी ने इसबार के चुनाव में 10 सीटें हासिल की हैं. आंकड़ों की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में सपा ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी, तो बसपा अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी. वहीं भाजपा को यूपी में 73 सीटें पर परचम लहराया था. तब सपा और बसपा अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे. उस समय सपा की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथों में थी, लेकिन 2019 आते-आते परिस्थितियां बदल गईं और सपा की डोर अखिलेश यादव के हाथों में चली गई.
2019 में चुनावी आंकड़े
2019 के चुनावों की बात करें तो सपा और बसपा ने गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया था. दोनों पार्टियों ने आपस में सीटों का बंटवारा भी कर लिया था. सपा जहां 37 सीटों पर चुनाव लड़ी वहीं बसपा ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. विश्लेषकों का मानना था कि यह गठबंधन मोदी की लहर को रोकेगा या बड़ी टक्कर देगा, लेकिन मोदी की सुनामी के आगे यह गठबंधन पूरी तरह से फेल साबित हुआ और कमल ने एक बार फिर कमाल कर दिखाया. भाजपा ने कुल 62 सीटें हासिल की और अपना दल एस को साथ लेकर सीटों की संख्या 64 हो गई. सपा जहां एक बार फिर पांच सीटों पर सिमटकर रह गई, तो बसपा 10 सीटें लेकर एक बार फिर जी उठी.
अपनों ने ही नहीं दिया सपा का साथ
बसपा को यह कामयाबी गठबंधन के कारण ही मिली है. वहीं सपा को इस चुनाव में अपनी परंपरागत सीटों पर भी हार का मुंह देखना पड़ा. कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव अपनी-अपनी सीटें हार गए. बता दें कि कन्नौज में पिछले 20 सालों से सपा लगातार जीतती आ रही थी. जातिगत समीकरण की बात करें तो जिन सीटों पर मुस्लिम और पिछड़े वोटर हैं, केवल उन्हीं सीटों पर सपा को जीत मिली है. वहीं यादव बहूल क्षेत्रों में वे हार गए हैं. इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि खुद यादवों ने अपनी पार्टी को ही वोट नहीं दिया है. इसका कारण भी कहीं न कहीं सपा का बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को ही बताया जा रहा है.