लखनऊ: भारत में एचआईवी या एड्स एक प्रमुख समस्या है. देश में करीब 3.69 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं. हालांकि, चिकित्सकों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में नए संक्रमण में 20 प्रतिशत की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन 2030 तक बीमारी से पूरी तरह से निपटने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है. एड्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रत्येक एक दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है.
हालांकि, यूएन एड्स की एक स्टेटस रिपोर्ट बताती है कि एचआईवी या एड्स वाले लोगों तक पहुंचने के मामले में अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है.
हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल का कहना है कि एचआईवी प्रतिरक्षा कोशिकाओं के कार्य को नष्ट कर देता है और कमजोर कर देता है. धीरे-धीरे संक्रमित व्यक्ति इम्यूनोडेफिशिएंट बन जाता है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में नए संक्रमण में 20 प्रतिशत की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन 2030 तक बीमारी से पूरी तरह से निपटने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है.
उन्होंने आगे बताया कि विश्व एड्स दिवस पर, इस तथ्य के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है कि एड्स पीड़ित हर व्यक्ति का समय पर इलाज हो, ताकि वे भी अच्छे स्वास्थ्य के साथ जी सके. विभिन्न जन जागरूकता अभियानों, विभिन्न अत्याधुनिक चिकित्सा हस्तक्षेपों और प्रौद्योगिकी विकसित करने के बावजूद एचआईवी व एड्स भारतीय आबादी को प्रभावित कर रहा है.
एचआईवी और एड्स अलग-अलग शब्द हैं. एचआईवी या 'ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस' प्रतिरक्षा प्रणाली में सफेद रक्त कोशिकाओं या टी लिम्फोसाइट्स पर हमला करता है और शरीर को सभी प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त कर देता है. दूसरी ओर, एड्स एक ऐसी स्थिति है, जो एक कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण एचआईवी संक्रमण के उन्नत चरणों में विकसित होती है.
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि गर्भावस्था और प्रसव के दौरान एक संक्रमित महिला अपने बच्चे तक एचआईवी को फैला सकती है. यह स्तनपान के माध्यम से भी, मां से बच्चे तक पहुंच सकता है. सभी गर्भवती माताओं को एचआईवी परीक्षण कराना चाहिए. एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान मां से शिशु तक और यौन संबंधों के माध्यम से एचआईवी संचरण को रोकने के लिए जल्द से जल्द शुरू की जानी चाहिए.
डॉ. अग्रवाल ने एड्स से बचाव के लिए कुछ सुझाव देते हुए कहा कि सुरक्षित यौन संबंध के लिए एबीसी : दूर रहें, अपने साथी के प्रति वफादार रहें और यदि ऐसा नहीं कर सकते, तो कंडोम का उपयोग करें. अल्कोहल के सेवन या नशा करने से एड्स की जांच में बाधा पड़ती है. यहां तक कि जो लोग एड्स के जोखिम को समझते हैं और सुरक्षित यौन संबंधों का महत्व जानते हैं, वे भी नशे की हालत में लापरवाही बरत सकते हैं.
उन्होंने कहा कि एसटीआई वाले लोगों को तुरंत इलाज कराना चाहिए और यौन क्रिया से बचना चाहिए या फिर सुरक्षित यौन संबंध रखने चाहिए. संक्रमित रेजर, ब्लेड, चाकू या त्वचा को काटने या छीलने वाले अन्य उपकरणों से एचआईवी फैलने का जोखिम रहता है. एचआईवी पॉजिटिव लोग अपनी इस स्थिति से अनभिज्ञ रह सकते हैं और वायरस को दूसरों तक फैला सकते हैं.
1990 से 2017 के दौरान भारत में वयस्क एचआईवी प्रसार
2017 में राज्यवार वयस्क एचआईवी प्रसार
वैश्विक एचआईवी आंकड़े
- साल 2019 के जून के अंत तक 24.5 मिलियन लोगों ने एनट्रीट्रोवाइरल थेरेपी ली है.
- साल 2018 के अंत तक वैश्विक स्तर पर 37.9 मिलियन लोग में एचआईवी संक्रमण पाया गया.
- साल 2018 के अंत तक 1.7 मिलियन लोग, कुछ ही दिनों पहले एचआईवी का शिकार हुए हैं.
- साल 2018 के अंत तक एचआईवी से 770000 लोगों की जान गई.
- एचआईवी का पहला मामला सामने आने के बाद से अब तक 74.9 मिलियन लोग संक्रमित हुए हैं.
- एचआईवी का पहला मामला सामने आने के बाद से अब तक 32 मिलियन लोगों की मौत हुई है.
एचआईवी से पीड़ित लोग
- साल 2018 में 37.9 मिलियन लोग एचआईवी संक्रमण पाया गया.
- ऊपर दिए गए आंकड़े में 36.2 मिलियन लोग 18 साल से अधिक आयु के हैं.
- इस सूची में 15 उम्र से कम आयु के 1.7 मिलियन बच्चे भी शामिल हैं.
- 79% फीसदी एचआईवी पीड़ित लोगों को इस बात की जानकारी है कि वे इस बीमारी से पीड़ित हैं.
- वहीं, 8.1 मिलियन लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें एचआईवी होने का पता नहीं.
नए एचआईवी संक्रमण
साल 1997 की शुरुआत से एचआईवी संक्रमण 40% कम हुआ है. साल 2018 में 1.7 मिलियन लोगों में पहली बार संक्रमण देखने को मिला. वहीं 1997 में ये आंकड़ा 2.9 मिलियन था.
साल 2010 से नए एचआईवी संक्रमण में 16% कमी आई है. साल 2010 में आंकड़ा 2.1 मिलियन था, जो कि 2018 में घट कर 1.7 मिलियन हो गया है. बच्चों में एचआईवी संक्रमण 41% घटा है, जहां 2010 में आंकड़ा 28000 था तो 2018 में यह घट कर 160000 हो गया.
एड्स के कारण मौत
साल 2004 की शुरुआत से ही एड्स से जुड़ी मौतें 56% कम हो गई हैं. साल 2018 में वैश्विक स्तर पर 770000 लोग की इस बीमारी से मौतें हुई हैं. वहीं साल 2004 में 1.7 मिलियन और 2010 में 1.2 मिलियन लोगों की जान गई थी.
महिलाओं में एचआईवी
हर हफ्ते करीब 15-24 आयुवर्ग की 6000 युवा महिला एचआईवी का शिकार होती हैं. विश्व में एक तिहाई महिलाओं ने किसी न किसी मोड़ पर अपने जीवनकाल में शारीरिक और यौन उत्पीड़न झेला है.