लखनऊ . उत्तर प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र (Winter Session of Uttar Pradesh Legislative Assembly) अपने निर्धारित 3 दिन की अवधि से पहले ही 2 दिन में अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया. लगातार सदन की कार्यवाही कम होती जा रही है जो संसदीय परंपराओं और लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं माना जाता. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब ज्यादा से ज्यादा सदन की कार्यवाही संचालित होगी तो जनहित से जुड़े मुद्दों पर चर्चा पर चर्चा होगी. इसके बाद ही सरकार भी उन मुद्दों पर काम करेगी और विपक्ष और जनता के प्रति जवाबदेह होगी. इसके बावजूद जब सदन ही कम समय के लिए चल रहे हैं तो ऐसे में सरकार जनता के प्रति जवाबदेह हो रही है और ना ही विपक्ष को सवाल उठाने का मौका मिल रहा है.
दरअसल सदन की कार्यवाही जितना अधिक चलेगी, जनहित से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा चर्चा होगी और बहस होगी तो उतना ही अच्छा होगा. विधायक अपने क्षेत्र की समस्याओं को लेकर विकास के कार्यों को लेकर सदन में याचिका लगाते हैं और उस पर बहस और कार्यवाही होती है, लेकिन पिछले करीब दो दशक से सदन की कार्यवाही लगातार कम होती जा रही है. सरकार का मानन है कि सदन के अंदर शोर-शराबा और नकारात्मक भूमिका के कारण सदन कम चल रहे हैं. विपक्ष के साथ-साथ सरकार की भी कोशिश रहती है कि सदन की कार्यवाही ज्यादा दिन चलने पाए. ऐसे में सदन की संख्या लगातार कम होती चली जा रही है. लोकतंत्र और संवैधानिक परंपराओं के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं माना जाता है. संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सदन की कार्यवाही पूरे साल में 90 दिन के लिए संचालित होनी चाहिए, लेकिन अब पूरे साल में अधिकतम 20 दिन 25 दिन में सदन की कार्यवाही संचालित होती है और जनहित से जुड़े मुद्दे या विकास से जुड़े याचिकाओं पर चर्चा परिचर्चा नहीं हो पाती है.
समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व विधान परिषद सदस्य नरेश उत्तम पटेल (Samajwadi Party State President and Legislative Council member Naresh Uttam Patel) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार लोकतंत्र पर विश्वास नहीं करती संसदीय परंपराओं को बर्बाद करने पर तुली हुई है. कैबिनेट की बैठक और कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में यह तय हुआ था कि सदन की कार्यवाही 3 दिन के लिए चलाई जाएगी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने 2 दिन में ही शीतकालीन सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया. भारतीय जनता पार्टी जनहित के मुद्दों से भाग रही है. इसीलिए सदन में चर्चा नहीं कराने को लेकर सदन की कार्यवाही 2 दिन में समाप्त कर दी, जबकि अनुपूरक बजट पेश हुआ था और उस पर चर्चा होनी थी. भारतीय जनता पार्टी लोकतंत्र की हत्या करने पर आमादा है.
राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन (political analyst manmohan) कहते हैं कि सदन के सत्र चलाने की जिम्मेदारी सरकार की जिम्मेदारी के साथ-साथ विपक्ष की भी जिम्मेदारी है. सरकार अब अपने हिसाब से सहूलियत से सत्र चलाती है. बजट सत्र पहले विभागवार आता था, बजट सत्र 20 दिन 25 दिन चलता था, मगर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. अब निर्धारित सत्र भी आधे दिनों में निपट जाता है. सदन के अंदर विपक्ष की जो भूमिका है सकारात्मक ना रहकर शोर शराबा हल्ला गुल्ला और नकारात्मक भूमिका के रूप में ज्यादा है. ऐसे में सरकार के लिए सुविधाजनक हो जाता है जब शोरगुल होता है सदन अव्यवस्थित हो जाता है सरकार अपने एजेंडे उसमें पास करा लेती है. सरकार के लिए यह बाध्यता है कि कोई भी वैधानिक निर्णय लेना है तो उसे सदन में जाना होगा. कोई भी अध्यादेश सरकार लाती है इसे विधिक और कानूनी मान्यता देनी है तो 6 महीने के बाद उसे सदन में लाना ही है. सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए सदन की संख्या लगातार कम हो रही है जो बिल्कुल भी लोकतंत्र और स्वस्थ परंपराओं के लिए ठीक नहीं है.
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