लखनऊ: सांस्कृतिक धरोहर में कठपुतली कला का अपना एक अलग महत्व है. यह कला राजस्थान और पश्चिम बंगाल में उपजी एवं फली फूली वर्तमान समय में यह कला लुप्त होती जा रही हैं. लखनऊ के संगीत नाटक अकादमी में बुधवार को राष्ट्रीय कठपुतली महोत्सव के दौरान कार्यक्रम आयोजित हुआ. ईटीवी भारत ने कठपुतली कला के कलाकारों से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बताया कि बीते 15 से 20 साल हो गए उन्हें इस तरह के कार्यक्रम करते हुए.
इस कला को सरक्षण एवं संवर्धन प्रदान करने के उद्देश्य से और जनमानस से परिचित कराने एवं इसके प्रति आकर्षण व सम्मान पैदा करने के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन स्वायत्तशासी संस्था उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, प्रयागराज द्वारा विगत कई वर्षों से प्रयास किया जा रहा है. वर्ष 2017 में राष्ट्रीय कठपुतली महोत्सव का आयोजन किया गया था. इसी क्रम में वर्ष 2021 के नवम्बर में 8 से 10 नवम्बर तक केन्द्र द्वारा उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय "राष्ट्रीय कठपुतली महोत्सव" हुआ.
पहले दिन में टेमिंग ऑफ द वाइल्ड कटेंपरेरी पपेट के माध्यम से सुदीप गुप्ता, पश्चिम बंगाल के निर्देशन में हुआ. द्वितीय प्रस्तुति में पंचतंत्र, रॉड पपेट, मपेट के माध्यम से पूरन भाट, दिल्ली के निर्देशन में की गई. दूसरे दिन 'रामायण', शैडो पपेट माध्यम से श्री खगेश्वर साहू, उड़ीसा के निर्देशन में की गई.
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द्वितीय प्रस्तुति अलादीन व गुलाबों सिताबों रॉड और ग्लफ्स पपेट के माध्यम से प्रदीप त्रिपाठी, उत्तर प्रदेश के निर्देशन में की गई. तीसरी प्रस्तुति में राधा कृष्ण स्ट्रिंग पपेट के माध्यम से बसंत वर्मा मणिपुर के निर्देशन में एवं द्वितीय प्रस्तुति 'बटवारा' रॉड पपेट के माध्यम से शिव कुमार श्रीवास्तव, उत्तर प्रदेश द्वारा की गई.
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