लखनऊ : बिकरु कांड (Bikru kand) में गठित जांच आयोग ने विकास दुबे एनकाउंटर (Vikas Dubey encounter) में पुलिस (up police) को क्लीनचिट दे दी है. रिटायर्ड जज बीएस चौहान की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय जांच आयोग ने 797 पेज की रिपोर्ट सौंपी है. जांच रिपोर्ट में विकास दुबे से मिलीभगत करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की सिफारिश की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि विकास और उसके गैंग में शामिल सभी अपराधियों को स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण मिला था. स्थानीय थाने और राजस्व के अधिकारी विकास दुबे के संपर्क में थे और कई सुविधाएं ले रहे थे. विकास दुबे का वर्चस्व अफसरों के संरक्षण में ही फल फूल रहा था.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि विकास दुबे पर कार्रवाई पुलिस और प्रशासन की अनदेखी का नतीजा था. विकास दुबे सर्किल के टॉप टेन अपराधियों में शामिल था लेकिन जिले के टॉप टेन अपराधियों की सूची में नहीं था. विकास दुबे और उसके गैंग पर 64 मुकदमे दर्ज थे, लेकिन विकास दुबे के लोग शांति समितियों के भी सदस्य थे. विकास दुबे के विरुद्ध दर्जनों मुकदमों में चार्जशीट से पहले ही कई गंभीर धाराएं हटा दी गईं. विकास दुबे की जमानत निरस्त कराने के लिए कभी उच्च अदालतों में अपील नहीं की गई. विकास दुबे की मुठभेड़ को फर्जी बताने वाली उसकी पत्नी रिचा दुबे ने भी जांच आयोग के सामने अपना पक्ष नहीं रखा.
विकास दुबे एनकांउटर के सभी पहलुओं की जांच के बाद आयोग ने कहा है कि पुलिस के पक्ष और घटना से संबंधित साक्ष्यों का खंडन करने के लिए जनता या मीडिया की तरफ से कोई भी आगे नहीं आया. मृतक विकास दुबे की पत्नी रिचा दुबे ने पुलिस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए एफिडेविट तो दिया था लेकिन वह आयोग के सामने उपस्थित नहीं हुईं. इस तरह घटना के संबंध में पुलिस के पक्ष पर संदेह नहीं किया जा सकता है. मजिस्ट्रेटी जांच में भी इसी तरह के निष्कर्ष सामने आए थे.