लखनऊ: बिजली विभाग का निजीकरण होने से बचाया जा सके, इसके लिए लगातार विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है. राजधानी लखनऊ में उपभोक्ता परिषद ने कहा कि सरकार व कुछ नौकरशाहों को यह लगता है कि बिजली विभाग में सुधार का एक मात्र विकल्प निजीकरण है. प्रदेश में अब तक बिजली क्षेत्र में जिन परियोजनाओं का जिम्मा निजी घरानों और उनके कार्मिकों के भरोसे रहा, उसका विवरण और सफलता सरकार को यह सोचने पर विवश कर देगा कि निजीकरण जनहित में नहीं है.
उपभोक्ता परिषद ने कहा कि सबसे पहले 1993 में नोएडा पावर कंपनी का गठन किया गया. तब से लगातार निजी कंपनी लाभ कमा रही हैं, लेकिन कोई समीक्षा नहीं की गई. 2009 में टोरेंट पावर कंपनी का अनुबंध किया गया. वह पुराना बिजली का बकाया लगभग 2200 करोड़ हड़प के बैठ गई. इसके बाद एमओयू रूट से प्रदेश में उत्पादन इकाइयों को लगाने का निर्णय लिया गया. इसका खामियाजा महंगी बिजली खरीद और बिजली दरों में बढ़ोतरी की मार जनता झेल रही है.
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि सौभाग्य योजना में हजारों करोड़ खर्च किए गए. निजी घरानों ने जो काम किया वह बहुत ही घटिया क्वालिटी का था. आज भी अनेकों गांव में कहीं मीटर तो कहीं केबिल नहीं तो कही बिजली नहीं है. उसका खामियाजा जनता भुगत रही है. उन्होंने कहा कि लोक महत्व याचिका पर विद्युत नियामक आयोग ने पूर्वांचल के निजीकरण पर जो 7 दिन में बिजली दर की सुनवाई के पहले पावर कार्पोरेशन से जवाब मांगा था, अभी तक कार्पोरेशन जवाब आयोग को नहीं दाखिल कर पाया है. आगामी 24 सितंबर को बिजली दर की सुनवाई में सबकी पोल खोली जाएगी.
अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बिलिंग व उपभोक्ता सेवा में सुधार, बिजली चोरी सहित अनेक पैरामीटर की ऑनलाइन समीक्षा के नाम पर बिलिंग सॉफ्टवेयर और आईटी से सम्बंधित करोड़ों के एप खरीदे गए. आज भी लगभग 75 लाख से ऊपर उपभोक्ताओं को उनकी सिक्योरिटी पर ब्याज इसलिए कई सालों से नहीं मिल रहा, क्योंकि सिस्टम में सिक्योरिटी राशि फीड नहीं. सुधार के लिए करोड़ों के निजी कंसल्टेंट हैं, फिर भी घाटा लगातार बढ़ रहा. अब 90 हजार करोड़ के ऊपर पहुंच चुका है. स्मार्ट मीटर परियोजना का हाल सबके सामने है. बत्ती गुल, भार जंपिंग, बिलिंग व्यवस्था में आएदिन रुकावट हो रही है. सुधार के सारे दावे हवा-हवाई हैं.