लखनऊ: केंद्र सरकार के बिजली विभाग के निजीकरण की तरफ बढ़ते कदम को लेकर उत्तर प्रदेश के बिजली विभाग से जुड़े कर्मचारियों में नाराजगी पनपने लगी है. बिजली संगठन सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं. सरकार को आंदोलन की चेतावनी भी दे रहे हैं. यही नहीं, संगठन सरकार से पिछले अनुभवों को ध्यान में रखकर बिजली विभाग का निजीकरण न करने की अपील कर रहा है. संगठनों के पदाधिकारियों का कहना है कि निजीकरण का पहला प्रयोग नोएडा पावर कंपनी और टोरेंट पावर पूरी तरह फेल हुआ है. फिर भी निजीकरण पर चर्चा क्यों?
उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशनके पदाधिकारियों ने शनिवार को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये बैठक कर प्रदेश भर में एसोशिएसन के सदस्यों और पदाधिकारियों से बात की. साथ ही एलान किया कि हर स्तर पर निजीकरण का पुरजोर विरोध किया जाएगा. किसी भी हालत में निजीकरण स्वीकार नहीं है. प्रदेश में निजीकरण के दोनों प्रयोग नोएडा पावर कंपनी और टोरेंट पावर फेल हैं. इसके बावजूद कोरोना महामारी के बीच पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव पर चर्चा हो रही है, जिससे बिजलीकर्मियों को भारी निराशा हुई है. उनमें आक्रोश व्याप्त है.
बिजली विभाग के खिलाफ फैसला स्वीकार नहीं होगा
एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा निर्बाध बिजली आपूर्ति बनाये रखने की बार-बार प्रशंसा किये जाने के बाद भी अब निजीकरण के बारे में सोचना पूरी तरह गलत है. मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री को इस दिशा में पुनर्विचार कर केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे निजीकरण के प्रयास को एक सिरे से खारिज कर कड़ा सन्देश देना चाहिए. एसोशिएसन ने अपने सभी सदस्यों को कहा कि कोई भी फैसला बिजली विभाग के खिलाफ होगा, तो स्वीकार नहीं होगा. आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी.
पदाधिकारियों ने कहा कि नोएडा और टोरेंट पावर सरकार के लिए यह सोचने को काफी है कि इससे सरकार को कितना घाटा हो रहा है. कोरोना के दौर में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 मिनट के लिए पूरे देश में बिजली बंद करने की अपील की थी तो हमारे इंजीनियरों ने ही पावर ग्रिड संभाली थी. साथ ही एहसास दिलाया था कि हम प्राइवेट कंपनियों से कहीं ज्यादा अनुभवी हैं. ऐसे में सरकार को निजीकरण का नाम लेना ही नहीं चाहिए.