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फ्लोरीकल्चर मिशन से महकी स्कूलों की बगिया, जानें कैसे

सीएसआईआर के फ्लोरीकल्चर मिशन से शहर के कई स्कूलों की बगिया महकने लगी है. प्रॉजेक्ट हेड प्रो. एसके तिवारी ने बताया कि स्कूलों में बने गार्डन में ऐसे पौधों का चयन किया गया है जो सालभर तक चल सकें.

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काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च
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Published : Mar 7, 2022, 1:37 PM IST

लखनऊ. सीएसआईआर के फ्लोरीकल्चर मिशन से शहर के कई स्कूलों की बगिया महकने लगी है. संस्थान ने लखनऊ के केंद्रीय विद्यालय अलीगंज, केंद्रीय विद्यालय गोमतीनगर और केंद्रीय विद्यालय मथुरा में फ्लोरीकल्चर गार्डन विकसित किया है. इसी तरह बक्शी का तालाब के चंद्रभानु गुप्ता कृषि महाविद्यालय में भी काम चल रहा है. प्रॉजेक्ट हेड प्रो. एसके तिवारी ने बताया कि स्कूलों में बने गार्डन में ऐसे पौधों का चयन किया गया है जो साल भर तक चल सकें. इसके साथ स्कूल के माली और मैनेजमेंट को इसकी ट्रेनिंग भी दी जाएगी.

फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत बीकेटी में एक डिसेंट्रालाइज्ड नर्सरी भी बनाई जा रही है. यहां गुलदाऊदी, मैरीगोल्ड जैसे पौधों की गुणवत्तापूर्ण प्लांटिंग मटीरियल तैयार कर पौधों को मल्टीप्लाई किया जाएगा. संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. केजे सिंह ने बताया कि ये प्लांटिंग मटीरियल किसान भी उगाएंगे. इसके बाद वे अपने स्तर से एक दूसरे को प्लांटिंग मटीरियल दे पाएंगे. नर्सरी की शुरुआत बीकेटी में होनी हैं. वहीं, इस मिशन के तहत मोहनलालगंज, निगोहां, मलिहाबाद, काकोरी के अलावा बनारस, चित्रकूट और अयोध्या में भी किसानों को भी प्लांटिग मटीरियल दिए गए हैं.

इसे भी पढ़ेंः गोरखपुर: लीची की मिठास पर कोरोना की नजर, दवा न मिलने से बागवानी पर असर

संस्थान के निदेशक प्रो. एसके बारिक ने बताया कि मार्च में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएस आईआर) ने फ्लोरिकल्चर मिशन देश के 21 राज्यों में लागू किया था. इसमें एनबीआरआई समेत सीएसआईआर की दूसरी लैब भी शामिल हैं. इस मिशन के तहत फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा. एनबीआरआई को ग्लैडियोलस, गुलदाउदी, लिलियम, ऐलेस्ट्रोमेनिया, जरबेरा, गुलाब, बर्ड ऑफ पैराडाइज को किसानों के खेतों तक पहुंचाना है. कोशिश है कि फूलों के जरिए किसानों की आय बढ़ाने के साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए.

क्या है फ्लोरीकल्चर मिशन

फ्लोरीकल्चर, बागवानी (Horticulture) विज्ञान की एक शाखा है जो छोटे या बड़े क्षेत्रों में सजावटी पौधों की खेती, प्रसंस्करण और विपणन से संबंधित है. यह आस-पास के वातावरण को सुहावना बनाने और बगीचों और उद्यानों के रखरखाव में सहायक है. इस मिशन में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के संस्थानों में उपलब्ध जानकारियों का उपयोग किया जा रहा है. जो देश के किसानों और उद्योगों की निर्यात जरूरतों को पूरा करने में सहायक होती है.

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लखनऊ. सीएसआईआर के फ्लोरीकल्चर मिशन से शहर के कई स्कूलों की बगिया महकने लगी है. संस्थान ने लखनऊ के केंद्रीय विद्यालय अलीगंज, केंद्रीय विद्यालय गोमतीनगर और केंद्रीय विद्यालय मथुरा में फ्लोरीकल्चर गार्डन विकसित किया है. इसी तरह बक्शी का तालाब के चंद्रभानु गुप्ता कृषि महाविद्यालय में भी काम चल रहा है. प्रॉजेक्ट हेड प्रो. एसके तिवारी ने बताया कि स्कूलों में बने गार्डन में ऐसे पौधों का चयन किया गया है जो साल भर तक चल सकें. इसके साथ स्कूल के माली और मैनेजमेंट को इसकी ट्रेनिंग भी दी जाएगी.

फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत बीकेटी में एक डिसेंट्रालाइज्ड नर्सरी भी बनाई जा रही है. यहां गुलदाऊदी, मैरीगोल्ड जैसे पौधों की गुणवत्तापूर्ण प्लांटिंग मटीरियल तैयार कर पौधों को मल्टीप्लाई किया जाएगा. संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. केजे सिंह ने बताया कि ये प्लांटिंग मटीरियल किसान भी उगाएंगे. इसके बाद वे अपने स्तर से एक दूसरे को प्लांटिंग मटीरियल दे पाएंगे. नर्सरी की शुरुआत बीकेटी में होनी हैं. वहीं, इस मिशन के तहत मोहनलालगंज, निगोहां, मलिहाबाद, काकोरी के अलावा बनारस, चित्रकूट और अयोध्या में भी किसानों को भी प्लांटिग मटीरियल दिए गए हैं.

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संस्थान के निदेशक प्रो. एसके बारिक ने बताया कि मार्च में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएस आईआर) ने फ्लोरिकल्चर मिशन देश के 21 राज्यों में लागू किया था. इसमें एनबीआरआई समेत सीएसआईआर की दूसरी लैब भी शामिल हैं. इस मिशन के तहत फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा. एनबीआरआई को ग्लैडियोलस, गुलदाउदी, लिलियम, ऐलेस्ट्रोमेनिया, जरबेरा, गुलाब, बर्ड ऑफ पैराडाइज को किसानों के खेतों तक पहुंचाना है. कोशिश है कि फूलों के जरिए किसानों की आय बढ़ाने के साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए.

क्या है फ्लोरीकल्चर मिशन

फ्लोरीकल्चर, बागवानी (Horticulture) विज्ञान की एक शाखा है जो छोटे या बड़े क्षेत्रों में सजावटी पौधों की खेती, प्रसंस्करण और विपणन से संबंधित है. यह आस-पास के वातावरण को सुहावना बनाने और बगीचों और उद्यानों के रखरखाव में सहायक है. इस मिशन में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के संस्थानों में उपलब्ध जानकारियों का उपयोग किया जा रहा है. जो देश के किसानों और उद्योगों की निर्यात जरूरतों को पूरा करने में सहायक होती है.

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