लखनऊ: बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत द्वारा मामले के सभी आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में एक याचिका दायर की गई है. शुक्रवार को उक्त पुनरीक्षण याचिका अयोध्या निवासी 74 वर्षीय हाजी महबूब अहमद और 81 वर्षीय सैयद अखलाक अहमद की ओर से यह दाखिल की गई है. याचिका रोटेशन के अनुसार सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जाएगी.
याचिका में कहा गया है कि दोनों याची उक्त मामले में न सिर्फ गवाह थे, बल्कि घटना के पीड़ित भी हैं. उन्होंने विशेष अदालत के समक्ष प्रार्थना पत्र दाखिल कर खुद को सुने जाने की मांग भी की थी, लेकिन विशेष अदालत ने उनके प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया. याचियों का यह भी कहना है कि "केंद्र सरकार के दबाव में सीबीआई ने सत्र अदालत के फैसले के खिलाफ अपील नहीं दाखिल की, जबकि कई मुस्लिम संगठनों ने सीबीआई को अपील दाखिल करने के लिए अनुरोध किया था.
बाबरी विध्वंस मामले में लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, महंत गोपालदास, विनय कटियार और उमा भारती समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया था. जज एसके यादव ने कहा था कि विवादित ढांचा गिराने की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी और ये घटना अचानक हुई थी.
32 आरोपी, जो हुए बरी
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, महंत नृत्य गोपाल दास, साध्वी ऋतम्भरा, चम्पत राय, विनय कटियार, राम विलास वेदांती, महंत धरम दास, पवन पांडेय, ब्रज भूषण शरण सिंह, साक्षी महाराज, सतीश प्रधान, आरएन श्रीवास्तव, तत्कालीन डीएम, जय भगवान गोयल, रामचंद्र खत्री, सुधीर कक्कड़, अमरनाथ गोयल, संतोष दुबे, प्रकाश शर्मा, जयभान सिंह पवैया, धर्मेंद्र सिंह गुर्जर, लल्लू सिंह, वर्तमान सांसद, ओम प्रकाश पांडेय, विनय कुमार राय, कमलेश त्रिपाठी, गांधी यादव, विजय बहादुर सिंह, नवीन शुक्ला, आचार्य धर्मेंद्र, रामजी गुप्ता.
क्या कहा था कोर्ट ने
- बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा का गिराया जाना पूर्व नियोजित नहीं था. अचाक गिराई गई.
- अभियुक्तों के खिलाफ सूबत काफी नहीं हैं
- ऑडियो सबूत की सत्यता नहीं की जा सकती
- भाषण का ऑडियो क्लियर नहीं है
- सीबीआई ने जो वीडियो सबूत के तौर पर पेश की, उसमें जो लोग गुंबद पर चढ़े थे, अराजक तत्व थे
बाबरी प्रकरण पर एक नजर
6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद फैजाबाद में उसी दिन दो मुकदमे दर्ज किए गए. एक में लाखों कारसेवक, तो दूसरी एफआईआर में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, बाल ठाकरे, उमा भारती सहित 49 लोगों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का मुकदमा दर्ज किया गया था.
- साल 1993 में मामले की जांच सीबीआई को दी गई. भाजपा संघ से जुड़े 49 नेताओं के खिलाफ रायबरेली और कारसेवकों के खिलाफ लखनऊ अदालत में ट्रायल शुरू हुआ. इसके बाद अक्टूबर में सीबीआई ने दोनों रायबरेली व लखनऊ केस को मिलाकर आरोप पत्र दाखिल कर लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य सभी नेताओं को आपराधिक षड्यंत्र का आरोपी बताया.
- साल 1996 में यूपी सरकार ने दोनों केस को एक साथ चलाए जाने को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया. इसके बाद लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने दोनों मुकदमे में आपराधिक षड्यंत्र का मामला जोड़ा, जिसे आडवाणी सहित अन्य आरोपियों ने चुनौती दी.
- 4 मई, 2001 को सीबीआई की विशेष अदालत ने आडवाणी सहित अन्य के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का आरोप हटा दिया.
- साल 2003 में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की. रायबरेली अदालत ने कहा कि आडवाणी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं. हाईकोर्ट ने दखलअंदाजी की और आपराधिक षड्यंत्र के खिलाफ ही उनके सहित अन्य पर ट्रायल चलता रहा.
- 23 मई, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का चार्ज हटा लिया और सीबीआई 2012 में सुप्रीम कोर्ट गई. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक षड्यंत्र को एक बार फिर बहाल करके तेजी से ट्रायल करने का निर्देश दिया.
- अप्रैल 2017 को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दो साल के अंदर पूरे केस की सुनवाई पूरी करने के निर्देश सीबीआई की विशेष अदालत को दिए. इस मुकदमे में सुनवाई लखनऊ और रायबरेली की दो अदालतों में चल रही थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 को अपने आदेश में लखनऊ में ही रायबरेली केस को शामिल करके एक साथ सुनवाई पूरी करने के निर्देश दिए.
- 21 मई, 2017 से प्रतिदिन इस केस की सुनवाई शुरू हुई. उसके बाद कोर्ट में सभी आरोपियों के बयान दर्ज हुए. कोरोना महामारी के कारण लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सहित कई आरोपियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में अपने बयान दर्ज कराए.
- 8 मई, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त तक सुनवाई पूरी करने के आदेश दिए लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसकी तारीख आगे बढ़ाई गई.
अयोध्या में 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी के विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने फैसला सुनाया था. इस मामले में कुल 49 आरोपी थे, जिनमें 17 आरोपियों की मौत हो चुकी है. ऐसे में कोर्ट ने मामले में बाकी बचे सभी 32 मुख्य आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया था.