लखनऊ : 2014 के लोकसभा चुनाव से अब तक उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरणों में बड़े राजनीतिक दलों ने लगातार अपने साथी बदले. भारतीय जनता पार्टी हो या समाजवादी पार्टी लगातार अपनी सहयोगी बदलते रहे हैं. 2014 में भारतीय जनता पार्टी के साथ अपना दल एस था, जबकि समाजवादी पार्टी के साथ में राष्ट्रीय लोक दल. 2019 में भाजपा के सहयोगी बढ़े और अपना दल एस के साथ ही राजभर की सुहेलदेव समाज पार्टी भी आ गई है. समाजवादी पार्टी बसपा के साथ चली गई, लेकिन 2024 में परिस्थितियां बदल रही हैं. दोनों दल अपने सहयोगियों की ओर देख रहे हैं.
गठबंधन की यह राजनीति सबसे पहले 1975 की इमरजेंसी के बाद शुरू हुई. जब कई विपक्षी दलों को मिलाकर एक जनता पार्टी बनाई गई थी. इसके बाद 1989 में संयुक्त मोर्चा कांग्रेस के खिलाफ बनाया गया. मगर राम मंदिर आंदोलन के दौरान भारतीय जनता पार्टी लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को किए जाने से नाराज होकर इस मोर्चा से अलग हो गई थी. इसके बाद लगातार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी कि यूपीए लगातार लोकसभा चुनाव में आमने-सामने रहे. 1989 से 99 तक लगातार मध्यावधि चुनाव होते रहे. उसके बाद में 2004 से तक एनडीए की सरकार अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में चलती रही. अगले 10 साल यानी 2014 तक यूपीए की सरकार बनी रही. इसके बाद फिर से एनडीए ने मोर्चा संभाला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अब तक एनडीए की सरकार ही चल रही है.
दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव से गठबंधन का एक नया दौर शुरू हुआ. 2017 के चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और राष्ट्रीय लोक दल भी इसी गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा, वहीं भारतीय जनता पार्टी ने अपना दल और सुहेलदेव समाज पार्टी को अपना सहयोगी बनाया. भारतीय जनता पार्टी को जोरदार जीत मिली. जबरदस्त हार के बाद सपा और कांग्रेस का गठबंधन टूट गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का जबरदस्त गठबंधन हुआ. माना गया कि उत्तर प्रदेश में इससे बेहतर गठबंधन नहीं हो सकता. राष्ट्रीय लोक दल भी इसमें शामिल था. दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने अपना दल और निषाद पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. इस चुनाव में 80 में से 64 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन को जीत मिली. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने केवल 15 सीटें जीतीं. बहुजन समाज पार्टी को 10 और समाजवादी पार्टी को 15 सीटों पर जीत मिली. रायबरेली की एक सीट पर कांग्रेस की सोनिया गांधी जीत गईं. 2022 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन ओमप्रकाश राजभर से टूट चुका था. राजभर अपनी सुहेलदेव समाज पार्टी का साथ साइकिल से निभा रहे थे, जबकि नए दल के तौर पर महान दल भी समाजवादी पार्टी के साथ था. भाजपा ने निषाद पार्टी और अपना दल के साथ चुनाव लड़ा. नए गठबंधन होने के बावजूद समाजवादी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. इस तरह से सहयोगियों के बदलने के बावजूद सपा लगातार हार का सामना करती रही.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषण विजय उपाध्याय का कहना है कि 'क्षेत्रीय दलों की स्थिति मजबूत हुई है. ऐसे में गठबंधन के साथ सरकार बनाना भी राष्ट्रीय दलों की मजबूरी हो चुकी है. जाति के आधार पर बनाए गए क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन हर राज्य में अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं. इसी की वजह से पार्टियों के सहयोगी लगातार बदलते रहते हैं.'
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समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने बताया कि 'हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव चाहते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर समान विचारधारा के राजनीतिक दल एक साथ आ जाएं. जिसको लेकर पटना में एक सफल बैठक हुई है. निश्चित तौर पर हम बेहतर राजनीतिक संगठन बनाएंगे.'
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भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेयी का इस बारे में कहना है कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी में आस्था रखने वाले दलों की संख्या बढ़ रही है. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए का कुनबा और बड़ा हो जाएगा.'