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गुनाहों का 'मुख्तारनामा', जानिए...हिस्ट्रीशीट नंबर-16 बी में दर्ज जुर्म की दास्तां...

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Published : Apr 6, 2021, 3:54 PM IST

Updated : Apr 7, 2021, 8:25 PM IST

पूर्वांचल के बाहुबली विधायक और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी एक बार फिर सुर्खियों में हैं. मुख्तार अंसारी के खिलाफ यूपी कुल 53 मुदकमें दर्ज हैं. हमारी इस रिपोर्ट में पढ़िए मुख्तार के हिस्ट्रीशीटर नंबर 16-बी से बाहुबली बनने तक की कहानी.

कॉन्सेप्ट इमेज.
कॉन्सेप्ट इमेज.

लखनऊ: माफिया डॉन और पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को पंजाब की रोपड़ जेल से यूपी लाया जा रहा है. ऐसे में उसके गुनाहों को लेकर चर्चाओं का बाजार एक फिर से गर्म है. आइये हम आपको बताते हैं कि गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने का हिस्ट्रीशीटर नंबर 16-बी कैसे जरायम के दुनिया का बेताज बादशाह बन गया.

मुख्तार पर दर्ज मुकदमों की जानकारी देते एडीजी लॉ एंड ऑर्डर.

1988 में मुख्तार पर दर्ज हुआ था हत्या का पहला मुकदमा
माफिया डॉन और पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी पर हत्या का पहला मुकदमा गाजीपुर जिले में वर्ष 1988 में दर्ज हुआ था, लेकिन वर्ष 2005 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार ने जरायम की दुनिया में अपना कदम जमा लिया. 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय हत्याकांड से पूर्वांचल दहल उठा था, जिसके बाद पूर्वांचल समेत पूरे उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी का सिक्का चलने लगा.

मुख्तार पर दर्ज हैं हत्या के 18 मुकदमें
बीते 32 साल में मुख्तार पर हत्या के 18 केस समेत कुल 53 मुकदमें दर्ज हुए. इनमें एम्बुलेंस के नाम पर फर्जीवाड़ा करने का मामला भी शामिल है. गाजीपुर के मोहम्दाबाद थाने में हिस्ट्रीशीट नंबर-16बी में मुख्तार के गुनाहों की खौफनाक दास्तां दर्ज है.

इसे भी पढ़ें:- मुख्तार अंसारी को जेल से लेकर निकली यूपी पुलिस

उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल इलाका अपराध और राजनीति के गठजोड़ के लिए कुख्यात इलाकों में गिना जाता है. 'अपराध का राजनीतिकरण' या 'राजनीति का अपराधीकरण' जैसे चर्चित मुहावरों की इसी कड़ी में गाजीपुर के मुख्तार अंसारी का भी नाम आता है. 1996 से मुख्तार का मऊ विधानसभा सीट पर कब्जा है. मुख्तार लगातार चार बार से विधायक हैं. एक बार बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर, दो बार निर्दलीय और एक बार खुद की बनाई पार्टी कौमी एकता दल से चुनाव लड़ उन्होंने जीत हासिल की. उनके एक और भाई सिबगतुल्ला अंसारी भी उसी पार्टी से विधायक रह चुके हैं, जबकि एक अन्य भाई अफजाल अंसारी इस समय गाजीपुर लोकसभा सीट से बसपा सांसद हैं.

मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).
मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).

परिवार से विरासत में मिली राजनीति
मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर के युसूफपुर गांव में हुआ था. मुख्तार को राजनीति परिवार से विरासत में मिली. मुख्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं. मुख्तार के नाना भारतीय सेना में ब्रिगेडियर थे और कई लड़ाइयों में इनका योगदान रहा है. 1948 में पाकिस्तानी कबालियों के खिलाफ में युद्ध में शहादत देने वाले मुख्तार के नाना को उनकी वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. मुख्तार के पिता मऊ जिले के चर्चित कम्युनिस्ट नेता थे. कहते हैं कि मुख्तार के पिता के सम्मान में उनके खिलाफ चुनाव में कोई भी खड़ा नहीं होता था. खुद मुख्तार ने अपनी पढ़ाई राजकीय सिटी इंटर कॉलेज और पीजी कॉलेज गाजीपुर से की थी. मुख्तार ने पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर मऊ से विधानसभा का चुनाव लड़ा और विधायक चुनकर लखनऊ पहुंच गए.

कृष्णानंद राय बनाम अंसारी परिवार
मुहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र पर सालों से चले आ रहे अंसारी बंधुओं के वर्चस्व को एक भूमिहार लड़के ने चुनौती दी. यह भूमिहार लड़का था कृष्णानंद राय, जिसने एक दिन पूरे गाजीपुर जिले पर वर्चस्व कायम कर लिया. भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर कृष्णानंद राय ने मुख्तार अंसारी के भाई को चुनाव में शिकस्त दी. वो भी उस मुहम्मदाबाद सीट पर, जहां अंसारी परिवार का एकछत्र राज था. कहते हैं कि इस चुनौती को मुख्तार अंसारी पचा न सके और फिर वो हो गया, जिसके बाद मुख्तार की फजीहत भी बढ़ गई.

इसे भी पढ़ें:- बांदा आते ही बढ़ेंगी मुख्तार की मुश्किलें, आजमगढ़ पुलिस तामील कराएगी बी-वारंट

मुख्तार को रास नहीं आई कृष्णानंद राय और बृजेश सिंह की दोस्ती
वर्ष 1988 में पहली बार मुख्तार अंसारी का नाम एक हत्या के मामले में आता है. गाजीपुर जिले में एक जमीन के सिलसिले में सच्चिदानंद राय की हत्या कर दी जाती है. इस हत्या में आरोप मुख्तार अंसारी पर लगाए जाते हैं. यह पहली बार था जब मुख्तार अंसारी का नाम किसी संगीन अपराध के साथ जुड़ा था. हालांकि पुलिस इस मामले में कोई सबूत न जुटा सकी और मुख्तार अंसारी पर दोष साबित न हो सका.

मुख्तार की बृजेश सिंह से ठेके-पट्टे को लेकर ठनी और मुख्तार साल 1996 में बसपा के टिकट पर मऊ से चुनाव जीत गए. फिर वह अपने रसूख का इस्तेमाल कर पुलिस को बृजेश सिंह के पीछे लगा दिया. भागते फिरते बृजेश सिंह को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय का साथ मिला. कृष्णानंद राय और बृजेश सिंह की दोस्ती मुख्तार को रास नहीं आई. 29 नवंबर 2005 में मुख्तार ने जेल में रहते हुए कृष्णानंद राय की हत्या करा दी. एके-47, पिस्टल और कई अन्य हथियारों से 400 राउंड गोलियां कृष्णानंद राय की गाड़ी पर दागी गईं थी. इस घटना में कृष्णानंद राय की गाड़ी में सवार सात लोगों की मौत हो गई थी. यह मामला अभी कोर्ट में चल रहा है.

कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).
कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).

कृष्णानंद राय की हत्या कर काटी गई थी 'चोटी'
कहा जाता है कि मुख्तार के निर्देश पर इस हमले को दुर्दांत प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी, राकेश पांडेय उर्फ हनुमान पांडेय और संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा ने अंजाम दिया था. पोस्टमॉर्टम में राय के शव से 21 गोलियां निकली थीं. पूर्वांचल के जानकार बताते हैं उस दौर में कृष्णानंद राय की चोटी का काफी क्रेज हो गया था. हनुमान पांडेय ने ही हत्या के बाद कृष्णानंद की चोटी काटी थी. इस बात का जिक्र एक कथित ऑडियो में भी है. इसमें मुख्तार और अभय सिंह की बातचीत है, जिसमें वह भोजपुरी में चोटी काट लीन्हीं (चोटी काट ली) का जिक्र कर रहा है.

मऊ दंगे में भी 'मुख्तार'
साल 2005 का समय था, कृष्णानंद राय की हत्या पहले ही कर दी गई थी. वहीं अब बृजेश सिंह की मौत की खबरों से पूरे पूर्वांचल के समाचार पत्र और पत्रिकाएं पटी पड़ी थीं. ऐसे में साल 2005 में मऊ में दंगा होता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दंगे में नौ लोगों की मौत होती है, लेकिन स्थानीय अखबारों के मुताबिक 14-17 लोगों की इस दंगे में मौत हुई थी. इस बारे में मऊ के मुसलमानों की तरफ से कोई बयान नहीं दिया गया, लेकिन हिंदुओं ने बताया कि पूरे दंगे में मुख्तार अंसारी का हाथ था. यह आखिरी बार था जब मुख्तार अंसारी आजाद घूमते दिखाई दिये. इस दौरान मुख्तार खुली जीप में निडर होकर घूमते दिखे थे. कहते हैं कि मुख्तार की मौजूदगी मात्र से दंगाइयों को हिम्मत मिली और उन्होंने दंगे शुरू कर दिए. इस दंगे के बाद से राज्य की राजनीति गर्म हो चुकी थी.

कृष्णानंद राय की हत्या के बाद अटल और आडवाणी बैठे थे धरने पर
साल 2005 में इतनी वारदातों के बाद एक तरफ जहां कृष्णानंद राय की हत्या को लेकर भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता धरने पर बैठ गए. वहीं मऊ दंगों के आरोप में राज्य की तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार की खूब किरकिरी होती है और मुख्तार के खिलाफ एक्शन लिया जाना तय हो जाता है. कहते हैं कि मुख्तार पर कुछ एक्शन लिया जाता, इससे पहले लखनऊ में समाजवादी पार्टी के एक दिग्गज नेता के साथ मुख्तार एक गुप्त मीटिंग करते हैं और अगले ही दिन गाजीपुर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर देते हैं. इसके बाद मुख्तार अंसारी को गाजीपुर जेल भेज दिया जाता है.

मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).
मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).

हेड कांस्टेबल राजेन्द्र सिंह की हत्या
इसके बाद वाराणसी के कैंट थाने में हत्या का दूसरा केस मुख्तार पर दर्ज हुआ. इस मर्डर केस को कोयले के ठेके में वर्चस्व की जंग के रूप में देखा गया था. यह पहला मौका था, जब पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह का आमना-सामना हुआ. इस मर्डर केस की पृष्ठभूमि आपको बताते हैं. हत्या के मामले में जेल में बंद बृजेश सिंह की मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव के त्रिभुवन सिंह से हुई. दोनों के बीच दोस्ती हो गई. त्रिभुवन सिंह का भाई हेड कॉन्स्टेबल राजेंद्र सिंह वाराणसी पुलिस लाइन में तैनात था. अक्टूबर 1988 में साधू सिंह ने राजेंद्र सिंह की हत्या कर दी. कैंट थाने में साधू सिंह के अलावा मुख्तार अंसारी और गाजीपुर निवासी भीम सिंह को भी 302 केस में नामजद आरोपी बनाया गया था.

हत्याओं का सिलसिला शुरू हुआ तो चलता रहा
फिर मुख्तार की हिस्ट्रीशीट मुकदमों का पुलिंदा बन गई. 1991 में मुख्तार के खिलाफ गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने और कोतवाली गाजीपुर में हत्या के दो केस दर्ज हुए. पहला मामला कोर्ट में विचाराधीन है, जबकि दूसरे मामले में गवाहों और सबूतों के अभाव में वह बरी हो चुका है. 1991 में ही चंदौली जिले के मुगलसराय में मुख्तार के खिलाफ 302 का एक और मुकदमा दर्ज हुआ. इसके बाद 1996 में गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने में उसके खिलाफ हत्या का केस मुकदमा दर्ज हुआ. यह मामला भी अंडरट्रायल है. वाराणसी के भेलूपुर और चेतगंज थाने में 1990 और 1991 में उसके खिलाफ 302 का केस दर्ज हुआ. भेलूपुर वाले मामले में फाइनल रिपोर्ट लग चुकी है.

हत्या के 18 मुकदमे दर्ज, हिस्ट्रीशीट नम्बर 16बी में दर्ज काला चिट्ठा
मुख्तार की हिस्ट्रीशीट 16-बी को खंगालें तो उसके खिलाफ 32 साल के आपराधिक जीवन में कुल 53 मुकदमे हैं, जिनमें 302 यानी हत्या के 18 केस दर्ज हैं. वहीं हत्या के प्रयास (307) के 10 मुकदमे दर्ज हैं. इसके अलावा टाडा, गैंगस्टर एक्ट, एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) और आर्म्स एक्ट के अलावा मकोका एक्ट के तहत भी उसके खिलाफ केस दर्ज हैं. मुख्तार ने अपराध की दुनिया में दबदबा बनाने के लिए डी-5 के नाम से अपना गैंग बनाया था. पूर्वांचल के अपराध जगत के जानकार बताते हैं कि कृष्णानंद राय हत्याकांड के बाद यह गैंग बनाया गया था. इसी गैंग के सदस्य राकेश पांडेय उर्फ हनुमान पांडेय को पिछले साल अगस्त में लखनऊ के सरोजिनीनगर इलाके में मुठभेड़ के दौरान मार गिराया गया था. उस पर एक लाख का इनाम था. इस डी-5 गैंग में मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी, अंगद राय, गोरा राय और राकेश पांडेय उर्फ हनुमान शामिल थे.

मुख्तार के डर से अदालत नहीं पहुंचते गवाह
मुख्तार ने जब जरायम की दुनिया में कदम रखा तो उसके बाद अपने खिलाफ गवाह ही खडे़ नहीं होने दिए. यदि उसे लगा कि उसके खिलाफ कोई अदालत में खड़ा होगा और गवाही देगा तो उसे हर तरह से डराया गया, जिससे वो अदालत में पहुंचे ही न. यदि वहां पहुंच भी जाए तो बयान से मुकर जाए. अधिकतर मामलों में ऐसा ही हुआ, जिसका नतीजा ये हुआ कि मुख्तार के अधिकतर मामलों में गवाहों के मुकर जाने के कारण व साक्ष्य के अभाव के कारण कई मुकदमों में बरी भी हो गया.

मसीहा या बाहुबली
पूर्वांचल में हर माफिया के दो रूप देखने को मिलते हैं. कुछ लोगों के मुख्तार मसीहा थे तो वहीं कुछ लोगों के एक लिए अपराधी से ज्यादा और कुछ नहीं. जानकारी के मुताबिक मुख्तार द्वारा बच्चों की पढ़ाई, इलाज, अस्पताल, शादी-ब्याह इत्यादि के लिए पैसे बिना शर्त के दिए जाते हैं. वहीं मुख्तार द्वारा कॉलेजों, स्कूलों और स्पोर्ट्स स्टेडियमों, अस्पतालों पर खूब पैसे खर्च किए जाते हैं. मुख्तार को अपराधी, बाहुबली व माफिया डॉन मानने वालों की संख्या काफी बड़ी है, लेकिन मसीहा मानने वालों की भी संख्या कोई कम नहीं है.

शिवपाल यादव के साथ मुख्तार के भाई अफजाल और सिबगतुल्ला अंसारी (फाइल फोटो).
शिवपाल यादव के साथ मुख्तार के भाई अफजाल और सिबगतुल्ला अंसारी (फाइल फोटो).

समाजवादी पार्टी में फूट
मुख्तार अंसारी वही शख्स हैं, जिनके कारण आज समाजवादी पार्टी टूट चुकी है, क्योंकि शिवपाल सिंह यादव मुख्तार अंसारी को सपा में लाना चाहते थे, लेकिन अखिलेश यादव इसके खिलाफ थे. फिर क्या था समाजवादी पार्टी में विभाजन हुआ और शिवपाल सिंह यादव को समाजवादी पार्टी को त्यागना पड़ा. वहीं मायावती सार्वजनिक रूप से कह चुकी हैं कि अंसारी बंधुओं पर दोष साबित नहीं हो सका है और दोनों को दोषी बताया जाता है. हम यह इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मुख्तार अंसारी को अपने पार्टी में रखने के लिए मुलायम सिंह यादव, मायावती और शिवपाल सिंह यादव जेसे दिग्गज नेता भी कतार में होते हैं.

वर्तमान स्थिति
बता दें कि पंजाब हाईकोर्ट में कई महीनों तक चली बहस के बाद अब मुख्तार अंसारी को यूपी जेल में शिफ्ट किया जा रहा है. इससे पहले मुख्तार अंसारी खुद की जान पर खतरा बता चुके हैं. वहीं बृजेश सिंह भी जेल में बंद हैं, लेकिन दोनों ही बाहुबलियों का अब भी यूपी के सरकारी शराब की दुकानों, कोयले, रेत, इत्यादि के ठेकों पर कब्जा है. कहते हैं कि सीधे तौर पर ये ठेके मुख्तार और बृजेश द्वारा नहीं लिए गए हैं. ये अनुबंध उनकी शर्तों के अनुसार ही मिलते हैं, क्योंकि यूपी और पूरे पूर्वांचल में अब भी उनके नाम का सिक्का चलता है और सभी सरकारी अनुबंध व अपराध आज भी उनके दिशा-निर्देशों पर ही घटित होते हैं. हाल ही में मऊ के अजीत सिंह की हत्या लखनऊ में कर दी गई थी. बता दें कि अजीत सिंह मुख्तार अंसारी के कारीबी माने जाते थे. अजीत की लखनऊ के विभूति खंड इलाके में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी.

लखनऊ: माफिया डॉन और पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को पंजाब की रोपड़ जेल से यूपी लाया जा रहा है. ऐसे में उसके गुनाहों को लेकर चर्चाओं का बाजार एक फिर से गर्म है. आइये हम आपको बताते हैं कि गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने का हिस्ट्रीशीटर नंबर 16-बी कैसे जरायम के दुनिया का बेताज बादशाह बन गया.

मुख्तार पर दर्ज मुकदमों की जानकारी देते एडीजी लॉ एंड ऑर्डर.

1988 में मुख्तार पर दर्ज हुआ था हत्या का पहला मुकदमा
माफिया डॉन और पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी पर हत्या का पहला मुकदमा गाजीपुर जिले में वर्ष 1988 में दर्ज हुआ था, लेकिन वर्ष 2005 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार ने जरायम की दुनिया में अपना कदम जमा लिया. 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय हत्याकांड से पूर्वांचल दहल उठा था, जिसके बाद पूर्वांचल समेत पूरे उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी का सिक्का चलने लगा.

मुख्तार पर दर्ज हैं हत्या के 18 मुकदमें
बीते 32 साल में मुख्तार पर हत्या के 18 केस समेत कुल 53 मुकदमें दर्ज हुए. इनमें एम्बुलेंस के नाम पर फर्जीवाड़ा करने का मामला भी शामिल है. गाजीपुर के मोहम्दाबाद थाने में हिस्ट्रीशीट नंबर-16बी में मुख्तार के गुनाहों की खौफनाक दास्तां दर्ज है.

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उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल इलाका अपराध और राजनीति के गठजोड़ के लिए कुख्यात इलाकों में गिना जाता है. 'अपराध का राजनीतिकरण' या 'राजनीति का अपराधीकरण' जैसे चर्चित मुहावरों की इसी कड़ी में गाजीपुर के मुख्तार अंसारी का भी नाम आता है. 1996 से मुख्तार का मऊ विधानसभा सीट पर कब्जा है. मुख्तार लगातार चार बार से विधायक हैं. एक बार बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर, दो बार निर्दलीय और एक बार खुद की बनाई पार्टी कौमी एकता दल से चुनाव लड़ उन्होंने जीत हासिल की. उनके एक और भाई सिबगतुल्ला अंसारी भी उसी पार्टी से विधायक रह चुके हैं, जबकि एक अन्य भाई अफजाल अंसारी इस समय गाजीपुर लोकसभा सीट से बसपा सांसद हैं.

मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).
मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).

परिवार से विरासत में मिली राजनीति
मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर के युसूफपुर गांव में हुआ था. मुख्तार को राजनीति परिवार से विरासत में मिली. मुख्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं. मुख्तार के नाना भारतीय सेना में ब्रिगेडियर थे और कई लड़ाइयों में इनका योगदान रहा है. 1948 में पाकिस्तानी कबालियों के खिलाफ में युद्ध में शहादत देने वाले मुख्तार के नाना को उनकी वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. मुख्तार के पिता मऊ जिले के चर्चित कम्युनिस्ट नेता थे. कहते हैं कि मुख्तार के पिता के सम्मान में उनके खिलाफ चुनाव में कोई भी खड़ा नहीं होता था. खुद मुख्तार ने अपनी पढ़ाई राजकीय सिटी इंटर कॉलेज और पीजी कॉलेज गाजीपुर से की थी. मुख्तार ने पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर मऊ से विधानसभा का चुनाव लड़ा और विधायक चुनकर लखनऊ पहुंच गए.

कृष्णानंद राय बनाम अंसारी परिवार
मुहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र पर सालों से चले आ रहे अंसारी बंधुओं के वर्चस्व को एक भूमिहार लड़के ने चुनौती दी. यह भूमिहार लड़का था कृष्णानंद राय, जिसने एक दिन पूरे गाजीपुर जिले पर वर्चस्व कायम कर लिया. भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर कृष्णानंद राय ने मुख्तार अंसारी के भाई को चुनाव में शिकस्त दी. वो भी उस मुहम्मदाबाद सीट पर, जहां अंसारी परिवार का एकछत्र राज था. कहते हैं कि इस चुनौती को मुख्तार अंसारी पचा न सके और फिर वो हो गया, जिसके बाद मुख्तार की फजीहत भी बढ़ गई.

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मुख्तार को रास नहीं आई कृष्णानंद राय और बृजेश सिंह की दोस्ती
वर्ष 1988 में पहली बार मुख्तार अंसारी का नाम एक हत्या के मामले में आता है. गाजीपुर जिले में एक जमीन के सिलसिले में सच्चिदानंद राय की हत्या कर दी जाती है. इस हत्या में आरोप मुख्तार अंसारी पर लगाए जाते हैं. यह पहली बार था जब मुख्तार अंसारी का नाम किसी संगीन अपराध के साथ जुड़ा था. हालांकि पुलिस इस मामले में कोई सबूत न जुटा सकी और मुख्तार अंसारी पर दोष साबित न हो सका.

मुख्तार की बृजेश सिंह से ठेके-पट्टे को लेकर ठनी और मुख्तार साल 1996 में बसपा के टिकट पर मऊ से चुनाव जीत गए. फिर वह अपने रसूख का इस्तेमाल कर पुलिस को बृजेश सिंह के पीछे लगा दिया. भागते फिरते बृजेश सिंह को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय का साथ मिला. कृष्णानंद राय और बृजेश सिंह की दोस्ती मुख्तार को रास नहीं आई. 29 नवंबर 2005 में मुख्तार ने जेल में रहते हुए कृष्णानंद राय की हत्या करा दी. एके-47, पिस्टल और कई अन्य हथियारों से 400 राउंड गोलियां कृष्णानंद राय की गाड़ी पर दागी गईं थी. इस घटना में कृष्णानंद राय की गाड़ी में सवार सात लोगों की मौत हो गई थी. यह मामला अभी कोर्ट में चल रहा है.

कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).
कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).

कृष्णानंद राय की हत्या कर काटी गई थी 'चोटी'
कहा जाता है कि मुख्तार के निर्देश पर इस हमले को दुर्दांत प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी, राकेश पांडेय उर्फ हनुमान पांडेय और संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा ने अंजाम दिया था. पोस्टमॉर्टम में राय के शव से 21 गोलियां निकली थीं. पूर्वांचल के जानकार बताते हैं उस दौर में कृष्णानंद राय की चोटी का काफी क्रेज हो गया था. हनुमान पांडेय ने ही हत्या के बाद कृष्णानंद की चोटी काटी थी. इस बात का जिक्र एक कथित ऑडियो में भी है. इसमें मुख्तार और अभय सिंह की बातचीत है, जिसमें वह भोजपुरी में चोटी काट लीन्हीं (चोटी काट ली) का जिक्र कर रहा है.

मऊ दंगे में भी 'मुख्तार'
साल 2005 का समय था, कृष्णानंद राय की हत्या पहले ही कर दी गई थी. वहीं अब बृजेश सिंह की मौत की खबरों से पूरे पूर्वांचल के समाचार पत्र और पत्रिकाएं पटी पड़ी थीं. ऐसे में साल 2005 में मऊ में दंगा होता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दंगे में नौ लोगों की मौत होती है, लेकिन स्थानीय अखबारों के मुताबिक 14-17 लोगों की इस दंगे में मौत हुई थी. इस बारे में मऊ के मुसलमानों की तरफ से कोई बयान नहीं दिया गया, लेकिन हिंदुओं ने बताया कि पूरे दंगे में मुख्तार अंसारी का हाथ था. यह आखिरी बार था जब मुख्तार अंसारी आजाद घूमते दिखाई दिये. इस दौरान मुख्तार खुली जीप में निडर होकर घूमते दिखे थे. कहते हैं कि मुख्तार की मौजूदगी मात्र से दंगाइयों को हिम्मत मिली और उन्होंने दंगे शुरू कर दिए. इस दंगे के बाद से राज्य की राजनीति गर्म हो चुकी थी.

कृष्णानंद राय की हत्या के बाद अटल और आडवाणी बैठे थे धरने पर
साल 2005 में इतनी वारदातों के बाद एक तरफ जहां कृष्णानंद राय की हत्या को लेकर भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता धरने पर बैठ गए. वहीं मऊ दंगों के आरोप में राज्य की तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार की खूब किरकिरी होती है और मुख्तार के खिलाफ एक्शन लिया जाना तय हो जाता है. कहते हैं कि मुख्तार पर कुछ एक्शन लिया जाता, इससे पहले लखनऊ में समाजवादी पार्टी के एक दिग्गज नेता के साथ मुख्तार एक गुप्त मीटिंग करते हैं और अगले ही दिन गाजीपुर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर देते हैं. इसके बाद मुख्तार अंसारी को गाजीपुर जेल भेज दिया जाता है.

मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).
मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो).

हेड कांस्टेबल राजेन्द्र सिंह की हत्या
इसके बाद वाराणसी के कैंट थाने में हत्या का दूसरा केस मुख्तार पर दर्ज हुआ. इस मर्डर केस को कोयले के ठेके में वर्चस्व की जंग के रूप में देखा गया था. यह पहला मौका था, जब पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह का आमना-सामना हुआ. इस मर्डर केस की पृष्ठभूमि आपको बताते हैं. हत्या के मामले में जेल में बंद बृजेश सिंह की मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव के त्रिभुवन सिंह से हुई. दोनों के बीच दोस्ती हो गई. त्रिभुवन सिंह का भाई हेड कॉन्स्टेबल राजेंद्र सिंह वाराणसी पुलिस लाइन में तैनात था. अक्टूबर 1988 में साधू सिंह ने राजेंद्र सिंह की हत्या कर दी. कैंट थाने में साधू सिंह के अलावा मुख्तार अंसारी और गाजीपुर निवासी भीम सिंह को भी 302 केस में नामजद आरोपी बनाया गया था.

हत्याओं का सिलसिला शुरू हुआ तो चलता रहा
फिर मुख्तार की हिस्ट्रीशीट मुकदमों का पुलिंदा बन गई. 1991 में मुख्तार के खिलाफ गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने और कोतवाली गाजीपुर में हत्या के दो केस दर्ज हुए. पहला मामला कोर्ट में विचाराधीन है, जबकि दूसरे मामले में गवाहों और सबूतों के अभाव में वह बरी हो चुका है. 1991 में ही चंदौली जिले के मुगलसराय में मुख्तार के खिलाफ 302 का एक और मुकदमा दर्ज हुआ. इसके बाद 1996 में गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने में उसके खिलाफ हत्या का केस मुकदमा दर्ज हुआ. यह मामला भी अंडरट्रायल है. वाराणसी के भेलूपुर और चेतगंज थाने में 1990 और 1991 में उसके खिलाफ 302 का केस दर्ज हुआ. भेलूपुर वाले मामले में फाइनल रिपोर्ट लग चुकी है.

हत्या के 18 मुकदमे दर्ज, हिस्ट्रीशीट नम्बर 16बी में दर्ज काला चिट्ठा
मुख्तार की हिस्ट्रीशीट 16-बी को खंगालें तो उसके खिलाफ 32 साल के आपराधिक जीवन में कुल 53 मुकदमे हैं, जिनमें 302 यानी हत्या के 18 केस दर्ज हैं. वहीं हत्या के प्रयास (307) के 10 मुकदमे दर्ज हैं. इसके अलावा टाडा, गैंगस्टर एक्ट, एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) और आर्म्स एक्ट के अलावा मकोका एक्ट के तहत भी उसके खिलाफ केस दर्ज हैं. मुख्तार ने अपराध की दुनिया में दबदबा बनाने के लिए डी-5 के नाम से अपना गैंग बनाया था. पूर्वांचल के अपराध जगत के जानकार बताते हैं कि कृष्णानंद राय हत्याकांड के बाद यह गैंग बनाया गया था. इसी गैंग के सदस्य राकेश पांडेय उर्फ हनुमान पांडेय को पिछले साल अगस्त में लखनऊ के सरोजिनीनगर इलाके में मुठभेड़ के दौरान मार गिराया गया था. उस पर एक लाख का इनाम था. इस डी-5 गैंग में मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी, अंगद राय, गोरा राय और राकेश पांडेय उर्फ हनुमान शामिल थे.

मुख्तार के डर से अदालत नहीं पहुंचते गवाह
मुख्तार ने जब जरायम की दुनिया में कदम रखा तो उसके बाद अपने खिलाफ गवाह ही खडे़ नहीं होने दिए. यदि उसे लगा कि उसके खिलाफ कोई अदालत में खड़ा होगा और गवाही देगा तो उसे हर तरह से डराया गया, जिससे वो अदालत में पहुंचे ही न. यदि वहां पहुंच भी जाए तो बयान से मुकर जाए. अधिकतर मामलों में ऐसा ही हुआ, जिसका नतीजा ये हुआ कि मुख्तार के अधिकतर मामलों में गवाहों के मुकर जाने के कारण व साक्ष्य के अभाव के कारण कई मुकदमों में बरी भी हो गया.

मसीहा या बाहुबली
पूर्वांचल में हर माफिया के दो रूप देखने को मिलते हैं. कुछ लोगों के मुख्तार मसीहा थे तो वहीं कुछ लोगों के एक लिए अपराधी से ज्यादा और कुछ नहीं. जानकारी के मुताबिक मुख्तार द्वारा बच्चों की पढ़ाई, इलाज, अस्पताल, शादी-ब्याह इत्यादि के लिए पैसे बिना शर्त के दिए जाते हैं. वहीं मुख्तार द्वारा कॉलेजों, स्कूलों और स्पोर्ट्स स्टेडियमों, अस्पतालों पर खूब पैसे खर्च किए जाते हैं. मुख्तार को अपराधी, बाहुबली व माफिया डॉन मानने वालों की संख्या काफी बड़ी है, लेकिन मसीहा मानने वालों की भी संख्या कोई कम नहीं है.

शिवपाल यादव के साथ मुख्तार के भाई अफजाल और सिबगतुल्ला अंसारी (फाइल फोटो).
शिवपाल यादव के साथ मुख्तार के भाई अफजाल और सिबगतुल्ला अंसारी (फाइल फोटो).

समाजवादी पार्टी में फूट
मुख्तार अंसारी वही शख्स हैं, जिनके कारण आज समाजवादी पार्टी टूट चुकी है, क्योंकि शिवपाल सिंह यादव मुख्तार अंसारी को सपा में लाना चाहते थे, लेकिन अखिलेश यादव इसके खिलाफ थे. फिर क्या था समाजवादी पार्टी में विभाजन हुआ और शिवपाल सिंह यादव को समाजवादी पार्टी को त्यागना पड़ा. वहीं मायावती सार्वजनिक रूप से कह चुकी हैं कि अंसारी बंधुओं पर दोष साबित नहीं हो सका है और दोनों को दोषी बताया जाता है. हम यह इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मुख्तार अंसारी को अपने पार्टी में रखने के लिए मुलायम सिंह यादव, मायावती और शिवपाल सिंह यादव जेसे दिग्गज नेता भी कतार में होते हैं.

वर्तमान स्थिति
बता दें कि पंजाब हाईकोर्ट में कई महीनों तक चली बहस के बाद अब मुख्तार अंसारी को यूपी जेल में शिफ्ट किया जा रहा है. इससे पहले मुख्तार अंसारी खुद की जान पर खतरा बता चुके हैं. वहीं बृजेश सिंह भी जेल में बंद हैं, लेकिन दोनों ही बाहुबलियों का अब भी यूपी के सरकारी शराब की दुकानों, कोयले, रेत, इत्यादि के ठेकों पर कब्जा है. कहते हैं कि सीधे तौर पर ये ठेके मुख्तार और बृजेश द्वारा नहीं लिए गए हैं. ये अनुबंध उनकी शर्तों के अनुसार ही मिलते हैं, क्योंकि यूपी और पूरे पूर्वांचल में अब भी उनके नाम का सिक्का चलता है और सभी सरकारी अनुबंध व अपराध आज भी उनके दिशा-निर्देशों पर ही घटित होते हैं. हाल ही में मऊ के अजीत सिंह की हत्या लखनऊ में कर दी गई थी. बता दें कि अजीत सिंह मुख्तार अंसारी के कारीबी माने जाते थे. अजीत की लखनऊ के विभूति खंड इलाके में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी.

Last Updated : Apr 7, 2021, 8:25 PM IST
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