हैदराबाद: भले ही भाजपा के नेता खुलकर यह न स्वीकार करें कि यूपी में समाजवादी पार्टी उनके राह तले रोड़ा बनकर खड़ी है. लेकिन हकीकत यह कि अब सपा की जमीनी चुनौती का असर भाजपा की रणनीतियों पर भी पड़ने लगा है. यही कारण है कि पार्टी के रणनीतिकारों ने अवध, पूर्वांचल, बुंदेलखंड, मध्य उत्तर प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को छोड़ अब हर एक सीट के लिए नए सिरे से स्ट्रैटजी बनानी शुरू की है. ताकि विरोधी उनके ईर्द-गिर्द भी न आ सके. वहीं, भाजपा के लिए यह चुनाव कई मायनों में अहम है. क्योंकि लाख प्रयासों के बाद भी पार्टी को पश्चिम बंगाल में सफलता नहीं मिल सकी थी. पर बंगाल की पराजय ने देश की सियासत में जहां ममता बनर्जी के कद को बढ़ाने का काम किया तो वहीं भाजपा के लिए लगातार चुनौतियां बढ़ती चली जा रही हैं. शायद इसी वजह से अब भाजपा येन केन प्रकारेण यूपी में जीत दर्ज करने को व्याकुल नजर आ रही है.
खैर, चलिए अब आपको भाजपा के हर सीट मंथन और नेतृत्व के टॉप टू बॉटम फॉर्मूले से रूबरू कराते हैं. दरअसल, पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) के लिए एक-एक सीट पर मंथन कर रही है और इस रणनीति के तहत पार्टी अपने सांसदों, जिला अध्यक्षों, जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुखों तक को चुनाव में उतार हर एक को विधानसभावार सीटों की जिम्मेदारी सौंप रही है.
इसे भी पढ़ें -'मुताह' है यूपी का सियासी गठबंधन, प्रियंका हैं भारत का भविष्य: आचार्य प्रमोद कृष्णम
इतना ही नहीं पार्टी ने उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए मिशन 300 प्लस निर्धारित किया है. जिसे हासिल करने के लिए अभी से ही पार्टी ने एड़ी चोटी का दम लगा रखा है. वहीं, पार्टी के करीबियों की मानें तो भाजपा के रणनीतिकार निगम, आयोग और बोर्डों के प्रभावशाली पदाधिकारियों और अध्यक्षों को भी अबकी चुनावी मैदान में उतार सकते हैं.
बात अगर 2017 के विधानसभा चुनाव की करें तो पार्टी ने कुल 384 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसे 312 सीटों पर कामयाबी मिली थी. वहीं, विधानसभा चुनाव-2022 में भी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सूबे में 300 से अधिक सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है. लेकिन तब और अब के सियासी हालात में आई तब्दीलियों के बीच इस लक्ष्य को हासिल करना फिलहाल आसान नहीं लग रहा है.
सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम का सीधा असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा. यही वजह है कि भाजपा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक-एक सीट पर प्रत्याशी चयन में गहन मंथन कर रही है. भाजपा के रणनीतिकार किसी भी सीट पर जोखिम उठाने की जगह सटीक रणनीति से जिताऊ प्रत्याशी को मैदान में उतारना चाह रहे हैं.
यूपी में भाजपा की ब्रांडिंग स्ट्रैटजी
यूपी में सत्तारूढ़ भाजपा अपनी हर उपलब्धी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए बड़े स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ ही जिला व मंडल स्तर के पदाधिकारियों तक को जनसंपर्क में लगा रखा है. इसके अलावा जिलों में सक्रिय सोशल मीडिया टीम को भी इलाकेवार डेटा मैसेजिंग में लगाया गया है. यही नहीं स्थानीय स्तर पर डाक्यूमेंटरी टीम को भी लगाया गया है, जो सरकार के कार्यों को छोटे-छोटे वीडियो क्लिप में प्रभावशाली तरीके से बना सोशल मीडिया टीम को प्रचार के लिए मुहैया करा रहे हैं.
अयोध्या और काशी को भुनाने की कोशिश
इन दिनों चुनावी सभाओं और मीडिया के कैमरे तले ज्यादातर भाजपा के नेता काशी विश्वनाथ धाम और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात कर रहे हैं. कुछ नेता तो एक बार फिर से पार्टी की हिन्दू पॉलिटिक्स लाइन को अपना बयानबाजी शुरू कर दिए हैं. यही नहीं सूबे के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने तो लगे हाथ मथुरा में कृष्ण जन्म स्थलीय मंदिर निर्माण की बात कह हिन्दू तुष्टिकरण की सियासत को हवा देने की कोशिश की है. ऐसे में इस बार के चुनाव में अयोध्या और काशी को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धी के रूप में भाजपा पेश करने की तैयारी में है.
यूपी में सांसदों को प्रत्याशी बना सकती है भाजपा
यूपी भाजपा के एक प्रवक्ता ने बताया कि जहां कहीं जातीय समीकरण बनाने और वर्तमान विधायक से कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए पार्टी अपने सांसदों को भी मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है. खास तौर पर ऐसे सांसद जिन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल और पार्टी की राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं मिली है, उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाकर सरकार बनने पर मंत्री पद दिया जा सकता है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप