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ओवैसी-राजभर गठबंधन में सियासी फायदा तलाश रहीं मायावती

उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव में अभी साल भर का वक्त है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां इस चुनावी समर की तैयारी में जुट गईं हैं. गठबंधन का दौर भी शुरू हो चुका है. हैदराबाद से निकलकर बिहार के रास्ते एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी यूपी पहुंचे तो सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने दोनों बाहें खोलकर उनका स्वागत किया. दोनों दल एक भागीदारी संकल्प मोर्चे के बैनर तले चुनाव लड़ने का एलान किया, जिसके बाद बसपा प्रमुख मायावती नए साथी की तालाश में मौर्चे में शामिल होने को लेकर नफा-नुकसान के आंकलन में जुट गई हैं.

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Published : Jan 31, 2021, 12:04 PM IST

नए सियासी समीकरण की तलाश में मायावती
नए सियासी समीकरण की तलाश में मायावती

लखनऊः उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों में गठबंधन के नए दौर की शुरूआत हो चुकी है. 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' के बैनर तले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बीच हुए गठबंधन ने प्रदेश की राजनीति को अलग हवा दी है. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में एक साथी की तालाश में जुटीं बसपा सुप्रीमो मायावती मोर्चे में संभावनाओं की तालाश में जुट गई हैं.

इस गठबंधन के साथ चुनाव में बसपा को फायदा होगा या नुकसान, उसको लेकर मायावती सभी तरह के समीकरणों पर नजर रखते हुए पार्टी नेताओं के साथ मंथन कर रही हैं. मायावती की कोशिश है कि इस 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' के साथ बसपा का गठबंधन होता है तो इससे बसपा को फायदा होगा. इसी के सहारे 2022 के चुनाव में सत्ता की कुर्सी पर काबिज भी हुआ जा सकता है.

नए सियासी समीकरण की तलाश में मायावती

बिहार की तर्ज पर यूपी में संभावनाओं की तालाश
बिहार विधानसभा चुनाव इस प्रकार के गठबंधन के सफल प्रयोग के बाद अब यूपी में सियासी गठजोड़ की संभावनाएं प्रबल है. गठबंधन के सहारे सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने की कोशिश में बसपा मायावती ने पिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र व बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर सहित कुछ अन्य प्रमुख नेताओं के साथ चर्चा की. सूत्र बताते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती का फोकस पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक अलग-अलग वर्ग के मतदाताओं को पार्टी के पक्ष में लामबंद करने के उद्देश्य के साथ संकल्प भागीदारी मोर्चा से गठबंधन पर है. मायावती का मानना है कि बहुजन समाज पार्टी का सियासी गठबंधन बिहार चुनाव में ओवैसी व राजभर के नेतृत्व में हुए गठबंधन के साथ था और वहां पर ओवैसी की पार्टी को जहां 5 सीटें मिली थी तो बसपा को 2 सीटों पर जीत मिली थी.


पश्चिम से लेकर पूर्वांचल में पकड़ और पैठ बनाने की कवायद
ऐसी स्थिति में उत्तर प्रदेश में बसपा का जनाधार भी है और अगर यह गठबंधन बसपा के साथ जुड़ता है तो स्वाभाविक रूप से बसपा को इसमें लाभ ही नजर आ रहा है. बसपा सूत्रों का मानना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों को इस गठबंधन के सहारे बसपा के पक्ष में लामबंद किया जा सकता है तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में ओपी राजभर के सहारे पिछड़ी जातियों के वोट में सेंध लगाई जा सकती है.


सीट बंटवारे सहित अन्य मुद्दों पर बन सकती है सहमति
बसपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले हर स्तर पर तैयारी और चुनाव में इस भागीदारी मोर्चे के साथ गठबंधन में बसपा को फायदा हो सकता है, उसको लेकर पार्टी सुप्रीमो मायावती हर स्तर पर मंथन कर रही हैं. जिससे 2022 में सरकार बनाने में बसपा को सफलता मिल सके. यही कारण है कि उन्होंने खुलकर पार्टी पदाधिकारियों के साथ पिछले दिनों इस 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' के साथ सियासी गठजोड़ को लेकर चर्चा की और फायदा नुकसान पर रणनीति बनाई.


आने वाले दिनों गठबंधन पर हो सकता है फैसला
सूत्र बताते हैं कि आगे ओमप्रकाश राजभर के माध्यम से इस सियासी गठजोड़ पर मुहर लगाए जाने की कोशिश की जाएगी. बसपा सबसे अधिक सीटें लेकर सियासी गठजोड़ करने के पक्ष में है, लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि ओवैसी-राजभर के नेतृत्व में बनाए गए सियासी मोर्चा के साथ कितनी सीटों पर सहमति बनती है. साथ ही इस सियासी गठजोड़ पर लगती है तो इसका चुनाव में किसको कितना फायदा होगा यह देखने वाली बात होगी.


क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती को इस गठबंधन के साथ जाने ना जाने को लेकर फैसला करना है. उन्हें लगता है कि इस गठबंधन के सहारे मायावती सत्ता की कुर्सी तक पहुंच सकती हैं, इसमें कुछ सच्चाई भी नजर आती है. ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी के साथ उनसे जुड़े वर्गों का वोट बैंक है और इस वोट बैंक के साथ अगर मायावती का भी वोट बैंक जुड़ता है तो स्वाभाविक रूप से इस गठबंधन को फायदा मिल सकता है. इसके साथ ही ऐसी जिस तरफ रहेंगे तो वहां पर ध्रुवीकरण भी होना स्वाभाविक है. ऐसी स्थिति में चुनाव में फायदा नुकसान होना ही है और चुनाव में किसे कितना फायदा होता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

लखनऊः उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों में गठबंधन के नए दौर की शुरूआत हो चुकी है. 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' के बैनर तले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बीच हुए गठबंधन ने प्रदेश की राजनीति को अलग हवा दी है. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में एक साथी की तालाश में जुटीं बसपा सुप्रीमो मायावती मोर्चे में संभावनाओं की तालाश में जुट गई हैं.

इस गठबंधन के साथ चुनाव में बसपा को फायदा होगा या नुकसान, उसको लेकर मायावती सभी तरह के समीकरणों पर नजर रखते हुए पार्टी नेताओं के साथ मंथन कर रही हैं. मायावती की कोशिश है कि इस 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' के साथ बसपा का गठबंधन होता है तो इससे बसपा को फायदा होगा. इसी के सहारे 2022 के चुनाव में सत्ता की कुर्सी पर काबिज भी हुआ जा सकता है.

नए सियासी समीकरण की तलाश में मायावती

बिहार की तर्ज पर यूपी में संभावनाओं की तालाश
बिहार विधानसभा चुनाव इस प्रकार के गठबंधन के सफल प्रयोग के बाद अब यूपी में सियासी गठजोड़ की संभावनाएं प्रबल है. गठबंधन के सहारे सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने की कोशिश में बसपा मायावती ने पिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र व बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर सहित कुछ अन्य प्रमुख नेताओं के साथ चर्चा की. सूत्र बताते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती का फोकस पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक अलग-अलग वर्ग के मतदाताओं को पार्टी के पक्ष में लामबंद करने के उद्देश्य के साथ संकल्प भागीदारी मोर्चा से गठबंधन पर है. मायावती का मानना है कि बहुजन समाज पार्टी का सियासी गठबंधन बिहार चुनाव में ओवैसी व राजभर के नेतृत्व में हुए गठबंधन के साथ था और वहां पर ओवैसी की पार्टी को जहां 5 सीटें मिली थी तो बसपा को 2 सीटों पर जीत मिली थी.


पश्चिम से लेकर पूर्वांचल में पकड़ और पैठ बनाने की कवायद
ऐसी स्थिति में उत्तर प्रदेश में बसपा का जनाधार भी है और अगर यह गठबंधन बसपा के साथ जुड़ता है तो स्वाभाविक रूप से बसपा को इसमें लाभ ही नजर आ रहा है. बसपा सूत्रों का मानना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों को इस गठबंधन के सहारे बसपा के पक्ष में लामबंद किया जा सकता है तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में ओपी राजभर के सहारे पिछड़ी जातियों के वोट में सेंध लगाई जा सकती है.


सीट बंटवारे सहित अन्य मुद्दों पर बन सकती है सहमति
बसपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले हर स्तर पर तैयारी और चुनाव में इस भागीदारी मोर्चे के साथ गठबंधन में बसपा को फायदा हो सकता है, उसको लेकर पार्टी सुप्रीमो मायावती हर स्तर पर मंथन कर रही हैं. जिससे 2022 में सरकार बनाने में बसपा को सफलता मिल सके. यही कारण है कि उन्होंने खुलकर पार्टी पदाधिकारियों के साथ पिछले दिनों इस 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' के साथ सियासी गठजोड़ को लेकर चर्चा की और फायदा नुकसान पर रणनीति बनाई.


आने वाले दिनों गठबंधन पर हो सकता है फैसला
सूत्र बताते हैं कि आगे ओमप्रकाश राजभर के माध्यम से इस सियासी गठजोड़ पर मुहर लगाए जाने की कोशिश की जाएगी. बसपा सबसे अधिक सीटें लेकर सियासी गठजोड़ करने के पक्ष में है, लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि ओवैसी-राजभर के नेतृत्व में बनाए गए सियासी मोर्चा के साथ कितनी सीटों पर सहमति बनती है. साथ ही इस सियासी गठजोड़ पर लगती है तो इसका चुनाव में किसको कितना फायदा होगा यह देखने वाली बात होगी.


क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती को इस गठबंधन के साथ जाने ना जाने को लेकर फैसला करना है. उन्हें लगता है कि इस गठबंधन के सहारे मायावती सत्ता की कुर्सी तक पहुंच सकती हैं, इसमें कुछ सच्चाई भी नजर आती है. ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी के साथ उनसे जुड़े वर्गों का वोट बैंक है और इस वोट बैंक के साथ अगर मायावती का भी वोट बैंक जुड़ता है तो स्वाभाविक रूप से इस गठबंधन को फायदा मिल सकता है. इसके साथ ही ऐसी जिस तरफ रहेंगे तो वहां पर ध्रुवीकरण भी होना स्वाभाविक है. ऐसी स्थिति में चुनाव में फायदा नुकसान होना ही है और चुनाव में किसे कितना फायदा होता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

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