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चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा : स्मारक घोटाले का बहाना, बसपा के दो पूर्व मंत्रियों पर भी निशाना - बसपा के दो पूर्व मंत्रियों पर भी निशाना

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव से पहले जांच में तेजी दिखाना और बसपा के दो पूर्व वरिष्ठ मंत्री रहे नेताओं को पूछताछ के लिए नोटिस जारी करना यह बताता है कि मायावती और उनके भाई आनंद कुमार पर भी शिकंजा कसा जा सकता है.

चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा
चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा
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Published : Jul 8, 2021, 4:59 PM IST

Updated : Jul 8, 2021, 6:33 PM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले मायावती सरकार में हुए पंद्रह सौ करोड़ के स्मारक घोटाले का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आया है. मामले की जांच कर रहे विजिलेंस विभाग ने बहुजन समाज पार्टी की सरकार में दो पूर्व वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा को पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव से पहले जांच में तेजी दिखाना और बसपा के दो वरिष्ठ मंत्री रहे नेताओं को पूछताछ के लिए नोटिस जारी करना यह बताता है कि मायावती और उनके भाई आनंद कुमार पर भी शिकंजा कसा जा सकता है. चुनाव से पूर्व मामले की जांच में तेजी लाने को लेकर राजनीतिक विश्लेषक कई राजनीतिक मायने लगा रहे हैं.

चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा
लखनऊ-नोयडा में पार्क और स्मारक निर्माण में घोटाले का आरोप

बहुजन समाज पार्टी की सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ नोएडा में कई पार्क और स्मारक बनवाए थे. इनमें करीब 14 सौ करोड़ के भ्रष्टाचार की बात कही सामने आयी थी. इसकी जांच भी शुरू कराई गई. लोकायुक्त एन.के मेहरोत्रा ने भी मामले की जांच की. इसमें बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी सहित तमाम अभियंताओं और अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही की बात कही गई थी.

अब विधानसभा चुनाव 2022 से पहले विजिलेंस जांच में तेजी लाते हुए बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा को पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया गया है.

मायावती के खास थे नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा

मायावती सरकार में सबसे ताकतवर और खास मंत्रियों में नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा शामिल थे. बाद में मायावती से कुछ पैसे के लेनदेन के चलते इन दोनों नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. वर्तमान में नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस पार्टी में हैं तो बाबू सिंह कुशवाहा जन अधिकार मंच के नाम से एक राजनीतिक दल बना चुके हैं. ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाले संकल्प भागीदारी मोर्चे में शामिल हैं.

बताया जाता है कि मायावती की इच्छा से ही लखनऊ और नोएडा में तमाम पार्क और स्मारकों का निर्माण कराया गया था. इनमें पत्थरों की खरीद-फरोख्त से लेकर हाथियों की खरीद और उनके निर्माण व पार्कों के निर्माण में तमाम तरह की अनियमितताएं बरतीं गईं. इसमें न सिर्फ बहुजन समाज पार्टी के कई नेताओं पर मिलीभगत का आरोप लगा बल्कि पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी बाबू सिंह कुशवाहा व मायावती के भाई आनंद कुमार पर भी इस घोटाले में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं.

मायावती पर शिकंजा कसने से भाजपा को होगा राजनीतिक फायदा

विधानसभा चुनाव से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती और उनके भाई आनंद कुमार पर स्मारक घोटाले की जांच की आंच आने का मतलब यह है कि इसका राजनीतिक फायदा भारतीय जनता पार्टी को हो सकता है. राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. ऐसे में आरोप लगने लगे हैं कि भारतीय जनता पार्टी दबाव की राजनीति करते हुए जांच में तेजी दिखा रही है ताकि मायावती उत्तर प्रदेश में किसी महत्वपूर्ण दल से विधानसभा चुनाव को लेकर गठबंधन न कर पाएं. अलग-थलग पड़ी रहें, उनके अलग-थलग पड़े रहने से भारतीय जनता पार्टी को इसका लाभ होगा।

चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा
चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा

यह भी पढ़ें : मंत्रिमंडल विस्तार के बाद मायावती ने मोदी सरकार पर साधा निशाना, कहा- फेरबदल से गलतियों पर नहीं पड़ेगा पर्दा


इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक प्रद्युम्न तिवारी कहते हैं कि वर्तमान में बाबू सिंह कुशवाहा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी दोनों बहुजन समाज पार्टी में नहीं है. ऐसे में एक तीर से दो निशाना लगाने जैसी बात हो रही है. जब भी चुनाव आता है, इस तरह की जांच एकदम से तेज कर दी जाती है. इन जाचों के माध्यम से कहीं न कहीं विरोधी राजनीतिक दलों पर दबाव बनाया जाता है. जहां तक बाबू सिंह कुशवाहा नसीमुद्दीन सिद्दीकी की बात है तो बाबू सिंह कुशवाहा की अपनी एक अलग पार्टी बन गई है.

नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस पार्टी में हैं और इस समय वह मुखर हैं. तो एक तरह से देखा जाए तो कांग्रेस पर भी दबाव बनेगा. बाबू सिंह कुशवाहा के जरिए जो छोटे दल एकजुट हो रहे हैं और चुनाव को लेकर रणनीति बना रहे हैं, उन पर भी असर पड़ेगा. उधर, जनता में यह संदेश जाता है कि ये लोग दागी हैं, इसलिए इनको भी जांच के लिए बुलाया जा रहा है.

चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा
चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा

यही नहीं, विधानसभा चुनाव से पहले दलितों के वोट बैंक पर भारतीय जनता पार्टी की नजर है. उधर, बहुजन समाज पार्टी पिछले करीब एक दशक से लगातार कमजोर होती चली जा रही है. ऐसे में दलितों के वोट बैंक पर सेंधमारी को लेकर भारतीय जनता पार्टी पूरी रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है. अगर मायावती थोड़ा सा भी मजबूत होंगी और चुनाव में बेहतर परफॉर्मेंस बसपा का रहेगा, तो स्वाभाविक रूप से इसका पॉलिटिकल नुकसान भारतीय जनता पार्टी को ही होगा. ऐसे में विजिलेंस जांच के बहाने मायावती पर शिकंजा कसकर मनोवैज्ञानिक दबाव डाले जाने के भी आरोप लगने लगे हैं.

जांच से दबाव में आएंगी मायावती

यह राजनीतिक दलों का अपना हथकंडा है. जिसके ऊपर जांच का दबाव होता है, वह जाहिर सी बात है वह डिफेंसिव मोड में ही रहता है. चुनाव के लिए जब 6 महीने बचा है और राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं, ऐसे में इस तरह की जांच का आगे बढ़ना कहीं न कहीं दबाव बनाने के हथकंडे के रूप में ही देखा जा रहा है. इससे मायावती को दबाव में लेने की कोशिश की जा रही है.

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले मायावती सरकार में हुए पंद्रह सौ करोड़ के स्मारक घोटाले का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आया है. मामले की जांच कर रहे विजिलेंस विभाग ने बहुजन समाज पार्टी की सरकार में दो पूर्व वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा को पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव से पहले जांच में तेजी दिखाना और बसपा के दो वरिष्ठ मंत्री रहे नेताओं को पूछताछ के लिए नोटिस जारी करना यह बताता है कि मायावती और उनके भाई आनंद कुमार पर भी शिकंजा कसा जा सकता है. चुनाव से पूर्व मामले की जांच में तेजी लाने को लेकर राजनीतिक विश्लेषक कई राजनीतिक मायने लगा रहे हैं.

चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा
लखनऊ-नोयडा में पार्क और स्मारक निर्माण में घोटाले का आरोप

बहुजन समाज पार्टी की सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ नोएडा में कई पार्क और स्मारक बनवाए थे. इनमें करीब 14 सौ करोड़ के भ्रष्टाचार की बात कही सामने आयी थी. इसकी जांच भी शुरू कराई गई. लोकायुक्त एन.के मेहरोत्रा ने भी मामले की जांच की. इसमें बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी सहित तमाम अभियंताओं और अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही की बात कही गई थी.

अब विधानसभा चुनाव 2022 से पहले विजिलेंस जांच में तेजी लाते हुए बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा को पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया गया है.

मायावती के खास थे नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा

मायावती सरकार में सबसे ताकतवर और खास मंत्रियों में नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा शामिल थे. बाद में मायावती से कुछ पैसे के लेनदेन के चलते इन दोनों नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. वर्तमान में नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस पार्टी में हैं तो बाबू सिंह कुशवाहा जन अधिकार मंच के नाम से एक राजनीतिक दल बना चुके हैं. ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाले संकल्प भागीदारी मोर्चे में शामिल हैं.

बताया जाता है कि मायावती की इच्छा से ही लखनऊ और नोएडा में तमाम पार्क और स्मारकों का निर्माण कराया गया था. इनमें पत्थरों की खरीद-फरोख्त से लेकर हाथियों की खरीद और उनके निर्माण व पार्कों के निर्माण में तमाम तरह की अनियमितताएं बरतीं गईं. इसमें न सिर्फ बहुजन समाज पार्टी के कई नेताओं पर मिलीभगत का आरोप लगा बल्कि पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी बाबू सिंह कुशवाहा व मायावती के भाई आनंद कुमार पर भी इस घोटाले में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं.

मायावती पर शिकंजा कसने से भाजपा को होगा राजनीतिक फायदा

विधानसभा चुनाव से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती और उनके भाई आनंद कुमार पर स्मारक घोटाले की जांच की आंच आने का मतलब यह है कि इसका राजनीतिक फायदा भारतीय जनता पार्टी को हो सकता है. राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. ऐसे में आरोप लगने लगे हैं कि भारतीय जनता पार्टी दबाव की राजनीति करते हुए जांच में तेजी दिखा रही है ताकि मायावती उत्तर प्रदेश में किसी महत्वपूर्ण दल से विधानसभा चुनाव को लेकर गठबंधन न कर पाएं. अलग-थलग पड़ी रहें, उनके अलग-थलग पड़े रहने से भारतीय जनता पार्टी को इसका लाभ होगा।

चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा
चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा

यह भी पढ़ें : मंत्रिमंडल विस्तार के बाद मायावती ने मोदी सरकार पर साधा निशाना, कहा- फेरबदल से गलतियों पर नहीं पड़ेगा पर्दा


इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक प्रद्युम्न तिवारी कहते हैं कि वर्तमान में बाबू सिंह कुशवाहा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी दोनों बहुजन समाज पार्टी में नहीं है. ऐसे में एक तीर से दो निशाना लगाने जैसी बात हो रही है. जब भी चुनाव आता है, इस तरह की जांच एकदम से तेज कर दी जाती है. इन जाचों के माध्यम से कहीं न कहीं विरोधी राजनीतिक दलों पर दबाव बनाया जाता है. जहां तक बाबू सिंह कुशवाहा नसीमुद्दीन सिद्दीकी की बात है तो बाबू सिंह कुशवाहा की अपनी एक अलग पार्टी बन गई है.

नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस पार्टी में हैं और इस समय वह मुखर हैं. तो एक तरह से देखा जाए तो कांग्रेस पर भी दबाव बनेगा. बाबू सिंह कुशवाहा के जरिए जो छोटे दल एकजुट हो रहे हैं और चुनाव को लेकर रणनीति बना रहे हैं, उन पर भी असर पड़ेगा. उधर, जनता में यह संदेश जाता है कि ये लोग दागी हैं, इसलिए इनको भी जांच के लिए बुलाया जा रहा है.

चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा
चुनाव से पहले मायावती पर कस सकता है शिकंजा

यही नहीं, विधानसभा चुनाव से पहले दलितों के वोट बैंक पर भारतीय जनता पार्टी की नजर है. उधर, बहुजन समाज पार्टी पिछले करीब एक दशक से लगातार कमजोर होती चली जा रही है. ऐसे में दलितों के वोट बैंक पर सेंधमारी को लेकर भारतीय जनता पार्टी पूरी रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है. अगर मायावती थोड़ा सा भी मजबूत होंगी और चुनाव में बेहतर परफॉर्मेंस बसपा का रहेगा, तो स्वाभाविक रूप से इसका पॉलिटिकल नुकसान भारतीय जनता पार्टी को ही होगा. ऐसे में विजिलेंस जांच के बहाने मायावती पर शिकंजा कसकर मनोवैज्ञानिक दबाव डाले जाने के भी आरोप लगने लगे हैं.

जांच से दबाव में आएंगी मायावती

यह राजनीतिक दलों का अपना हथकंडा है. जिसके ऊपर जांच का दबाव होता है, वह जाहिर सी बात है वह डिफेंसिव मोड में ही रहता है. चुनाव के लिए जब 6 महीने बचा है और राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं, ऐसे में इस तरह की जांच का आगे बढ़ना कहीं न कहीं दबाव बनाने के हथकंडे के रूप में ही देखा जा रहा है. इससे मायावती को दबाव में लेने की कोशिश की जा रही है.

Last Updated : Jul 8, 2021, 6:33 PM IST
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