लखनऊ: अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्पष्ट किया है कि, विवाहित पुत्री को भी अनुकम्पा नियुक्ति पाने का अधिकार है. न्यायालय ने कहा कि, परिवार की परिभाषा में सिर्फ अविवाहित पुत्रियां ही नहीं बल्कि विवाहित पुत्रियां भी आती हैं.
यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल सदस्यीय पीठ ने माला देवी की याचिका पर दिया है. याची का कहना था कि, उसके पिता जिला पुलिस लाइन हॉस्पिटल, बिजनौर में स्वीपर के पद पर तैनात थे. नौकरी में रहते हुए ही उनकी मृत्यु 7 मार्च 2019 को हो गई. याची ने अपने पिता के आश्रित के तौर पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए स्वास्थ्य विभाग से लिखित अनुरोध किया. लेकिन उसके अनुरोध को 9 से 10 अक्टूबर 2019 को यह कहते हुए ठुकरा दिया गया कि, याची विवाहिता है और विवाहित पुत्री को अनुकम्पा नियुक्ति देने का प्रावधान नहीं है.
न्यायालय ने याची की अनुकम्पा नियुक्ति पर पुनर्विचार करने के दिए आदेश
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि, उत्तर प्रदेश डाइंग इन हार्नेस रूल्स के नियम 2(ग) में परिवार की परिभाषा दी गई है. इसकी उपधारा 3 में अविवाहित और विधवा पुत्रियों को शामिल किया गया है. हालांकि इस हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट उपधारा 3 को असंवैधनिक घोषित कर चुकी है. लिहाजा याची को अनुकम्पा नियुक्ति से सिर्फ इस आधार पर इनकार करना कि, वह विवाहित है, विधिपूर्ण नहीं है. न्यायालय ने 9 और 10 अक्टूबर 2019 के आदेश को रद्द करते हुए, याची की अनुकम्पा नियुक्ति पर पुनर्विचार करने के आदेश दिये. न्यायालय ने इसके लिए प्रतिवादियों को चार सप्ताह का समय दिया है.