लखनऊ : स्वास्थ्य व्यवस्था को प्रदेश भर में बेहतर बनाने की दिशा में स्वास्थ्य निदेशालय ने एक बड़ा कदम उठाया है. अब वह दिन दूर नहीं हैं, जब प्रदेश के कोने कोने में कुछ दूरी के दायरे में स्थित सरकारी अस्पतालों में बेहतर व स्पेशियलिटी युक्त चिकित्सकीय सेवाएं मिलेंगी. प्रदेश में डिस्ट्रिक रेजीडेंसी प्रोग्राम (डीआरपी) के तहत परास्नातक (पीजी) पूरी करने वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों को 100 बेडेड हॉस्पिटल्स में तीन महीने के लिए तैनात किया जाएगा. पहले चरण, जुलाई में 840 डॉक्टरों को 59 अस्पतालों में नियुक्ति दी जा चुकी है.
प्रैक्टिस का है बेहतर तरीका : हजरतगंज स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल में इंटर्नशिप कर रहीं डॉ. नीलमा अंसारी ने कहा कि वह इंट्रीग्रल यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट्स हैं. नीलमा ने कहा कि प्रदेश सरकार के द्वारा पहली बार यह कार्यक्रम आयोजित हो रहा है. इसके तहत पीजी डिप्लोमा के स्टूडेंट्स को तीन महीने की सेवा सरकारी अस्पताल में देनी होगी. जिसके बाद ही वह डिग्री हासिल करने के बाद कहीं अपनी सेवा दे पाएंगे. यह एक अच्छा फैसला है. इस फैसले के आने से निजी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं को सरकारी अस्पताल में सेवा देने का अवसर प्राप्त हो रहा है और बहुत सारी चीजें यहां पर सीखने को मिल रही हैं. हम जहां पढ़ाई करते हैं और प्रैक्टिस करते हैं, वहां पर इतनी ज्यादा मरीजों की भीड़ नहीं होती है. सिविल अस्पताल में बहुत ज्यादा भीड़ होती है और अलग-अलग तरह के मरीज यहां पर आते हैं, जिन्हें हम देखते हैं. एक नया एक्सपीरियंस मिल रहा है. यकीनन यह एक्सपीरियंस भविष्य में मददगार साबित होगा.
सीमित दायरे में होते हुए करना है इलाज : एरा मेडिकल कॉलेज से सिविल अस्पताल में इंटर्न करने आए डॉ. शिवम श्रीवास्तव ने बताया कि जाहिर तौर पर इंटर्नशिप हमारे लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी है. स्वास्थ्य निदेशालय की ओर से पहली बार इस तरह का कोई कार्यक्रम शुरू हुआ है. इसके तहत 90 दिन की ट्रेनिंग करना अनिवार्य की गई है. इसके दो फायदे हैं, पहला स्टूडेंट्स के बेसिक चीजें प्रैक्टिकल तरीके से समझेंगे, मरीजों को देखेंगे उनसे बातें करेंगे तो रियल एक्सपीरियंस हासिल होगा और दूसरा फायदा अस्पताल प्रशासन को होगा. जहां जिला अस्पतालों में लगातार चिकित्सकों की कमी है. वहां डॉक्टरों की कमी पीजी के स्टूडेंट्स दूर कर रहे हैं. प्राइवेट अस्पतालों में हम बाहर की दवाइयां लिखते हैं, कोई बाउंड्री नहीं होती है कि सिर्फ अस्पताल की दवा लिखें, ऐसे में फ्री होकर हम इलाज करते हैं, लेकिन सरकारी अस्पताल में एक तौर पर हमें नियम कायदे कानून के तहत काम करना है. बाहर की दवाइयों को नहीं लिखना है.
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