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कितनी कारगर साबित हुई है अवैध बूचड़खानों पर लगी पाबंदी ? - अवैध बूचड़खाना

प्रदेश सरकार ने दो साल पहले अवैध बूचड़खानों पर पांबदी लगाई थी. जिसका मीट करोबारी लगातार विरोध करते रहे हैं. वहीं आम आदमी को सरकार की इस कार्रवाई का ना तो असर दिख रहा है और ना ही वैध मीट कारोबारियों को इसका कोई लाभ मिलता दिख रहा है.

illegal slaughterhouses
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Published : Mar 18, 2019, 12:57 PM IST

लखनऊ : दो साल पहले उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खाने पर लगाई गई पाबंदी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का नतीजा था, जो साल 2012 में दिया गया था. मार्च 2017 में अवैध बूचड़खानों पर पाबंदी हुई तो प्रदेश में मीट कारोबारी हड़ताल पर चले गए. अब इस पाबंदी को दो साल हो चुके हैं. अवैध बूचड़खानों पर सरकार की पाबंदी कितनी हुई कारगर साबित हुई है. आइए जानते हैं...

अवैध बूचड़खानों पर लगी पाबंदी के बारे में बताते मीट कारोबारी.


यूपी में सत्ता परिवर्तन होते ही जिन दो फैसलों को सरकार ने सबसे पहले लागू किया और जिन फैसलों के लागू होने पर हंगामा खड़ा हुआ. उसमें सबसे बड़ा फैसला अवैध बूचड़खाना पर पाबंदी का था. अप्रैल 2017 में अवैध बूचड़खाने पर पाबंदी लगाई गई. प्रदेश सरकार ने 2012 में बूचड़खानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की दी गई हिदायतों का पालन शुरू किया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ लिखा अवैध बूचड़खाने बंद किया जाए. जहां लाइसेंसी तौर पर जानवरों के कटान का काम हो वहां प्रदूषण और फूड सेफ्टी के मानकों का पालन हो. काटने से पहले और बाद में जानवर की डॉक्टरी जांच हो. ड्रेनेज की व्यवस्था हो, खुले में मांस दिखाई ना पड़े.


वहीं प्रदेश सरकार के इस फैसले ने मांस के कारोबार पर बड़ा असर डाला. दरअसल उत्तर प्रदेश में देश के 50 फीसदी मांस कारोबार का उत्पादन होता है. भारत में मांस का उद्योग कुल 15 हजार करोड़ का है और 25 लाख लोग इस कारोबार से जुड़े हैं. देश में कुल 72 लाइसेंसी बूचड़खाने हैं जिनमें से 38 सिर्फ उत्तर प्रदेश में हैं. अवैध बूचड़खाने पर पाबंदी ने तमाम कारोबारियों को बेहाल कर दिया. जो पुश्तों से इस कारोबार से ही अपने परिवार की रोजी रोटी चला रहे थे. सरकार ने पाबंदी तो लगा दी लेकिन उनके लिए कोई इंतजाम नहीं किया.


ऐसे हजारों मीट कारोबारियों की नुमाइंदगी करने वाले बड़े कारोबारी कहते हैं कि सरकार ने फैसला जल्दबाजी में लिया. दो साल बाद भी जिन दो बूचड़खानों को आगरा और सहारनपुर में बनाने का फैसला लिया था वह आज तक नहीं बन पाए. वहीं दूसरी ओर अवैध बूचड़खाना चलाने वालों पर सरकार ने कार्रवाई नहीं की जिसके चलते वैध मीट कारोबारी आज भी बेहाल हैं.


किसी भी सरकार के लिए समाज के हर तबके का ख्याल रखना. हर व्यापार की तरक्की करना पहली जरूरत और जिम्मेदारी होती है. अवैध पशु कटान को रोकने के लिए अवैध बूचड़खानों पर पाबंदी का फरमान जारी किया, कार्रवाई भी की गई, लेकिन यह कार्रवाई सरकारी दस्तावेजों में ही दर्ज की गई.

लखनऊ : दो साल पहले उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खाने पर लगाई गई पाबंदी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का नतीजा था, जो साल 2012 में दिया गया था. मार्च 2017 में अवैध बूचड़खानों पर पाबंदी हुई तो प्रदेश में मीट कारोबारी हड़ताल पर चले गए. अब इस पाबंदी को दो साल हो चुके हैं. अवैध बूचड़खानों पर सरकार की पाबंदी कितनी हुई कारगर साबित हुई है. आइए जानते हैं...

अवैध बूचड़खानों पर लगी पाबंदी के बारे में बताते मीट कारोबारी.


यूपी में सत्ता परिवर्तन होते ही जिन दो फैसलों को सरकार ने सबसे पहले लागू किया और जिन फैसलों के लागू होने पर हंगामा खड़ा हुआ. उसमें सबसे बड़ा फैसला अवैध बूचड़खाना पर पाबंदी का था. अप्रैल 2017 में अवैध बूचड़खाने पर पाबंदी लगाई गई. प्रदेश सरकार ने 2012 में बूचड़खानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की दी गई हिदायतों का पालन शुरू किया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ लिखा अवैध बूचड़खाने बंद किया जाए. जहां लाइसेंसी तौर पर जानवरों के कटान का काम हो वहां प्रदूषण और फूड सेफ्टी के मानकों का पालन हो. काटने से पहले और बाद में जानवर की डॉक्टरी जांच हो. ड्रेनेज की व्यवस्था हो, खुले में मांस दिखाई ना पड़े.


वहीं प्रदेश सरकार के इस फैसले ने मांस के कारोबार पर बड़ा असर डाला. दरअसल उत्तर प्रदेश में देश के 50 फीसदी मांस कारोबार का उत्पादन होता है. भारत में मांस का उद्योग कुल 15 हजार करोड़ का है और 25 लाख लोग इस कारोबार से जुड़े हैं. देश में कुल 72 लाइसेंसी बूचड़खाने हैं जिनमें से 38 सिर्फ उत्तर प्रदेश में हैं. अवैध बूचड़खाने पर पाबंदी ने तमाम कारोबारियों को बेहाल कर दिया. जो पुश्तों से इस कारोबार से ही अपने परिवार की रोजी रोटी चला रहे थे. सरकार ने पाबंदी तो लगा दी लेकिन उनके लिए कोई इंतजाम नहीं किया.


ऐसे हजारों मीट कारोबारियों की नुमाइंदगी करने वाले बड़े कारोबारी कहते हैं कि सरकार ने फैसला जल्दबाजी में लिया. दो साल बाद भी जिन दो बूचड़खानों को आगरा और सहारनपुर में बनाने का फैसला लिया था वह आज तक नहीं बन पाए. वहीं दूसरी ओर अवैध बूचड़खाना चलाने वालों पर सरकार ने कार्रवाई नहीं की जिसके चलते वैध मीट कारोबारी आज भी बेहाल हैं.


किसी भी सरकार के लिए समाज के हर तबके का ख्याल रखना. हर व्यापार की तरक्की करना पहली जरूरत और जिम्मेदारी होती है. अवैध पशु कटान को रोकने के लिए अवैध बूचड़खानों पर पाबंदी का फरमान जारी किया, कार्रवाई भी की गई, लेकिन यह कार्रवाई सरकारी दस्तावेजों में ही दर्ज की गई.

Intro:नोट...सरकार के 2 साल पर स्पेशल खबर।

2 साल पहले उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खाने पर लगाई गई पाबंदी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का नतीजा था जो साल 2012 में दिया गया था।मार्च 2017 में अवैध बूचड़खानो पर पाबंदी हुई तो प्रदेश में मीट कारोबारी हड़ताल पर चले गए। अब इस।पाबंदी को 2 साल हो चुके हैं। अवैध बूचड़खानो पर सरकार की पाबंदी कितनी हुई कारगर?क्या हुआ इसका असर?


Body: नोएडा के दादरी में गौ मांस के नाम पर हुई हिंसा और अखलाक की हत्या।
2018 में बुलंदशहर में अवैध पशु कटान पर हुई हिंसा और पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या।

यह घटनाएं बानगी है कैसे सूबे गौ हत्या और अवैध बूचड़खाने के नाम पर माहौल बिगड़ा हिंसा हुई।

यूपी में सत्ता परिवर्तन होते हैं जिन दो फैसलों को सरकार ने सबसे पहले लागू किया और जिन फैसलों के लागू होने पर हंगामा खड़ा हुआ उसमें सबसे बड़ा फैसला अवैध बूचड़खाना पर पाबंदी का था। अप्रैल 2017 में अवैध बूचड़खाने पर पाबंदी लगाई गई।प्रदेश सरकार ने 2012 में बूचड़खाना को लेकर सुप्रीम कोर्ट की दी गई है हिदायतों का पालन शुरू किया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ लिखा अवैध बूचड़खाने बंद करा जाए। जहां लाइसेंसी तौर पर जानवरों के कटान का काम हो वहां प्रदूषण और फूड सेफ्टी के मानकों का पालन हो, काटने से पहले और बाद में जानवर की डॉक्टरी जांच हो, ड्रेनेज की व्यवस्था हो,खुले में मांस दिखाई ना पड़े।
उत्तर प्रदेश सरकार के अवैध बूचड़खानो पर पाबंदी के फैसले ने मांस के कारोबार पर बड़ा असर डाला। दरअसल उत्तर प्रदेश में देश के 50 फ़ीसदी मांस कारोबार का उत्पादन होता है। भारत में मांस का उद्योग कुल 15 हजार करोड़ का है। 25 लाख लोग इस कारोबार से जुड़े हैं। देश में कुल 72 लाइसेंसी बूचड़खाने हैं जिनमें से 38 सिर्फ उत्तर प्रदेश में है। अवैध बूचड़खाने पर पाबंदी के फैसले को 2 साल का वक्त बीत चुका है। सरकार ने फैसला लागू किया लेकिन इसमें उन तमाम बीच कारोबारियों को बेहाल कर दिया जो पुश्तो से इस कारोबार से ही अपने परिवार की रोजी रोटी चला रहे थे। सरकार ने पाबंदी तो लगा दी लेकिन कोई इंतजाम नहीं किया।

बाइट...हारून कुरेशी... मीट कारोबारी

ऐसे हजारों मीट कारोबारियों की नुमाइंदगी करने वाले बड़े कारोबारी कहते हैं कि सरकार ने फैसला जल्दबाजी में लिया। 2 साल बाद भी जिन दो बूचड़खानो को आगरा और सहारनपुर में बनाने का फैसला लिया था वह आज तक नहीं बन पाए। वहीं दूसरी ओर अवैध बूचड़खाना चलाने वालों पर सरकार ने कार्रवाई नहीं की जिसके चलते वैध मीट कारोबारी आज भी बेहाल है।

बाइट... जफर कुरेशी... अध्यक्ष, कुरैशी समाज



Conclusion:किसी भी सरकार के लिए समाज के हर तबके का ख्याल रखना हर व्यापार की तरक्की करना पहली जरूरत और जिम्मेदारी होती है। अवैध पशु कटान को रोकने के लिए अवैध बूचड़खानो पर पाबंदी का फरमान जारी किया, कार्रवाई भी की गई। लेकिन यह कार्रवाई सरकारी दस्तावेजों में ही दर्ज की गई, आम आदमी को सरकार की कार्रवाई का ना तो असर दिख रहा है और ना ही वैध मीट कारोबारियों को इसका कोई लाभ ही मिला है।

संतोष कुमार 9305275733
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