लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने निकाय चुनाव के लिए 9 अप्रैल को जारी की गई अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार व चुनाव आयोग से चार सप्ताह में जवाब मांगा है. इसी के साथ कोर्ट ने यूपी स्टेट लोकल बॉडीज डेडीकेटेड बैकवर्ड क्लास कमीशन व प्रदेश के महाधिवक्ता को भी मामले में नोटिस जारी करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 29 मई को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ ने विकास अग्रवाल की याचिका पर पारित किया है.
याचिका में अधिसूचना के साथ-साथ निकाय चुनाव के लिए गठित डेडीकेटेड बैकवर्ड क्लास कमीशन की रिपोर्ट और यूपी म्यूनिसिपालिटीज एक्ट की धारा 2(1) को भी चुनौती दी गई है. उक्त धारा के तहत पिछड़ा वर्ग की परिभाषा दी गई है. याची की ओर से अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा कृष्ण मूर्ति मामले में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि निकाय चुनावों के परिप्रेक्ष्य में पिछड़े वर्ग को मिलने वाला आरक्षण सरकारी नौकरियों अथवा उच्च शिक्षण संस्थानों में दिए जाने वाले आरक्षण से भिन्न है.
कहा गया कि यह एक सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण नहीं है बल्कि एक राजनीतिक आरक्षण है. जिसे पिछड़े वर्ग के राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अध्ययन किए बगैर नहीं जारी किया जा सकता. दलील दी गई कि इसके विपरीत धारा 2(1) में पिछड़ा वर्ग की परिभाषा के लिए यूपी लोक सेवा (अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण) अधिनियम की अनुसूची एक में दी गई परिभाषा को अपनाया गया है. कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में उक्त परिभाषा असंवैधानिक है.
उल्लेखनीय है कि पूर्व में दाखिल एक अन्य याचिका में भी अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा गया है कि नगर पालिका अधिनियम में पुराने नियम के तहत राज्य स्तर पर आरक्षण लागू करने का प्रावधान था. लेकिन अब अध्यादेश द्वारा संशोधन कर कमिश्नरी व जनपद स्तर पर आरक्षण लागू कर दिया गया है, जो असंवैधानिक है.
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