लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव अब पूर्वी उत्तर प्रदेश की जमीन पर लड़ा जाएगा. 2014 के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार सपा-बसपा गठबंधन सामने होने से सीधी लड़ाई होगी. कांग्रेस का लक्ष्य जहां वोट बैंक में इजाफा है, वहीं कांग्रेसी उम्मीदवारों की जमानत बचाना भी बड़ी चुनौती है.
पूर्वांचल की लगभग एक दर्जन सीटें ऐसी हैं जिनपर भाजपा ने मोदी लहर में भी एक लाख से कम मतों से जीत हासिल की थी. ऐसे में जब गठबंधन उनके सामने है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा एक बार फिर दांव पर लगती दिखाई दे रही है.
कुछ बिन्दुओं से हम पूर्वांचल का समीकरण समझते हैं:
- पूर्वांचल की 27 लोकसभा सीटें प्रत्याशियों की छवि के जाल में उलझती दिखाई दे रही हैं.
- पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ की सीट छोड़ सभी पर अपना कब्जा जमा लिया था.
- इस बार बसपा और सपा का गठबंधन पूर्वांचल में भाजपा को कड़ी चुनौती देता दिखाई दे रहा है.
- 2014 की मोदी लहर में भाजपा ने जिन सीटों को एक लाख से कम अंतर से जीता है, वहां पर गठबंधन भारी पड़ सकता है.
- भाजपा अपनी दशकों पुरानी राजनीति में पिछड़ा और दलित वर्ग में अपना जनाधार मजबूत नहीं कर सकी है.
इन सीटों पर जीत का अंतर कम था:
- बस्ती सीट पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को 33562 मतों से ही जीत मिली थी.
- गाज़ीपुर सीट पर भाजपा की जीत 32452 अधिक मतों से हुई.
- इलाहाबाद में 62009 अधिक मत.
- लालगंज सीट पर 63000 अधिक मत.
- कुशीनगर सीट पर 85000 अधिक मत.
- संत कबीरनगर की सीट भाजपा ने 97000 मतों से जीती थी.
पूर्वांचल के सियासी गणित में गठबंधन का हौसला बढ़ा रखा है और यही वजह है कि समाजवादी पार्टी दावा कर रही है कि पूर्वांचल की सभी सीटें उसकी झोली में जाने वाली है. दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि पूर्वांचल में भाजपा को सीधी लड़ाई में नुकसान उठाना पड़ सकता है. वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि पूर्वांचल में मोदी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है. पिछले बार उन्होंने पूर्वांचल की सीटें दिलाई थीं.