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लोकसभा चुनाव: पूर्वी उत्तर प्रदेश की सियासत तय करेगी कौन है कितना मजबूत

उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव में खासा महत्व रखता है. 80 लोकसभा सीटों के साथ उत्तर प्रदेश भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव लाता है. 2014 में भाजपा ने 'मोदी लहर' में बहुमत लाकर सरकार बना ली थी. इस बार विपक्षी पार्टियों ने गठबंधन कर लिया है, जिससे इस बार का चुनाव कड़ी टक्कर का हो गया है.

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Published : May 8, 2019, 12:19 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव अब पूर्वी उत्तर प्रदेश की जमीन पर लड़ा जाएगा. 2014 के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार सपा-बसपा गठबंधन सामने होने से सीधी लड़ाई होगी. कांग्रेस का लक्ष्य जहां वोट बैंक में इजाफा है, वहीं कांग्रेसी उम्मीदवारों की जमानत बचाना भी बड़ी चुनौती है.

पूर्वांचल की लगभग एक दर्जन सीटें ऐसी हैं जिनपर भाजपा ने मोदी लहर में भी एक लाख से कम मतों से जीत हासिल की थी. ऐसे में जब गठबंधन उनके सामने है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा एक बार फिर दांव पर लगती दिखाई दे रही है.

कुछ बिन्दुओं से हम पूर्वांचल का समीकरण समझते हैं:

  • पूर्वांचल की 27 लोकसभा सीटें प्रत्याशियों की छवि के जाल में उलझती दिखाई दे रही हैं.
  • पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ की सीट छोड़ सभी पर अपना कब्जा जमा लिया था.
  • इस बार बसपा और सपा का गठबंधन पूर्वांचल में भाजपा को कड़ी चुनौती देता दिखाई दे रहा है.
  • 2014 की मोदी लहर में भाजपा ने जिन सीटों को एक लाख से कम अंतर से जीता है, वहां पर गठबंधन भारी पड़ सकता है.
  • भाजपा अपनी दशकों पुरानी राजनीति में पिछड़ा और दलित वर्ग में अपना जनाधार मजबूत नहीं कर सकी है.
    इस बार लोकसभा चुनाव में गठबंधन सीधा टक्कर दे रहा है.


इन सीटों पर जीत का अंतर कम था:

  • बस्ती सीट पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को 33562 मतों से ही जीत मिली थी.
  • गाज़ीपुर सीट पर भाजपा की जीत 32452 अधिक मतों से हुई.
  • इलाहाबाद में 62009 अधिक मत.
  • लालगंज सीट पर 63000 अधिक मत.
  • कुशीनगर सीट पर 85000 अधिक मत.
  • संत कबीरनगर की सीट भाजपा ने 97000 मतों से जीती थी.

पूर्वांचल के सियासी गणित में गठबंधन का हौसला बढ़ा रखा है और यही वजह है कि समाजवादी पार्टी दावा कर रही है कि पूर्वांचल की सभी सीटें उसकी झोली में जाने वाली है. दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि पूर्वांचल में भाजपा को सीधी लड़ाई में नुकसान उठाना पड़ सकता है. वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि पूर्वांचल में मोदी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है. पिछले बार उन्होंने पूर्वांचल की सीटें दिलाई थीं.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव अब पूर्वी उत्तर प्रदेश की जमीन पर लड़ा जाएगा. 2014 के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार सपा-बसपा गठबंधन सामने होने से सीधी लड़ाई होगी. कांग्रेस का लक्ष्य जहां वोट बैंक में इजाफा है, वहीं कांग्रेसी उम्मीदवारों की जमानत बचाना भी बड़ी चुनौती है.

पूर्वांचल की लगभग एक दर्जन सीटें ऐसी हैं जिनपर भाजपा ने मोदी लहर में भी एक लाख से कम मतों से जीत हासिल की थी. ऐसे में जब गठबंधन उनके सामने है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा एक बार फिर दांव पर लगती दिखाई दे रही है.

कुछ बिन्दुओं से हम पूर्वांचल का समीकरण समझते हैं:

  • पूर्वांचल की 27 लोकसभा सीटें प्रत्याशियों की छवि के जाल में उलझती दिखाई दे रही हैं.
  • पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ की सीट छोड़ सभी पर अपना कब्जा जमा लिया था.
  • इस बार बसपा और सपा का गठबंधन पूर्वांचल में भाजपा को कड़ी चुनौती देता दिखाई दे रहा है.
  • 2014 की मोदी लहर में भाजपा ने जिन सीटों को एक लाख से कम अंतर से जीता है, वहां पर गठबंधन भारी पड़ सकता है.
  • भाजपा अपनी दशकों पुरानी राजनीति में पिछड़ा और दलित वर्ग में अपना जनाधार मजबूत नहीं कर सकी है.
    इस बार लोकसभा चुनाव में गठबंधन सीधा टक्कर दे रहा है.


इन सीटों पर जीत का अंतर कम था:

  • बस्ती सीट पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को 33562 मतों से ही जीत मिली थी.
  • गाज़ीपुर सीट पर भाजपा की जीत 32452 अधिक मतों से हुई.
  • इलाहाबाद में 62009 अधिक मत.
  • लालगंज सीट पर 63000 अधिक मत.
  • कुशीनगर सीट पर 85000 अधिक मत.
  • संत कबीरनगर की सीट भाजपा ने 97000 मतों से जीती थी.

पूर्वांचल के सियासी गणित में गठबंधन का हौसला बढ़ा रखा है और यही वजह है कि समाजवादी पार्टी दावा कर रही है कि पूर्वांचल की सभी सीटें उसकी झोली में जाने वाली है. दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि पूर्वांचल में भाजपा को सीधी लड़ाई में नुकसान उठाना पड़ सकता है. वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि पूर्वांचल में मोदी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है. पिछले बार उन्होंने पूर्वांचल की सीटें दिलाई थीं.

Intro:लखनऊ ।उत्तर प्रदेश में लोक सभा चुनाव अब पूर्वी उत्तर प्रदेश की जमीन पर लड़ा जाएगा जहां 2014 के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन इस बार सपा बसपा गठबंधन सामने होने से सीधी लड़ाई के आसार ज्यादा है .कांग्रेस का लक्ष्य जहां वोट बैंक में इजाफा है वही कांग्रेसी उम्मीदवारों की जमानत बचाना भी बड़ी चुनौती है। पूर्वांचल की लगभग एक दर्जन सीट ऐसी हैं जिन पर भाजपा ने मोदी लहर में भी एक लाख से कम मतों से जीत हासिल की थी ऐसे में जब गठबंधन उनके सामने है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा एक बार फिर दांव पर लगती दिखाई दे रही है


Body:पूर्वांचल की 27 लोकसभा सीटें राजनीतिक समीकरणों और प्रत्याशियों की छवि के जाल में उड़ती दिखाई दे रही हैं छठवें और सातवें चरण के लिए होने वाले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का दावा इस आधार पर बड़ा है कि उसने पिछले लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था और आजमगढ़ की सीट को छोड़ कर सभी पर अपना कब्जा जमा लिया था लेकिन इस बार सीन बदला हुआ है बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन पूर्वांचल में भाजपा को कड़ी चुनौती देता दिखाई दे रहा है। इसकी वजह दोनों राजनीतिक दलों का वह जाती है जन आधार है जो भाजपा के लिए हमेशा समुद्र लांघना जैसा ही रहा है। भारतीय जनता पार्टी अपनी दशकों पुरानी राजनीति में पिछड़ा और दलित वर्ग में अपना जनाधार मजबूत नहीं कर सकी है ऐसे में 2014 की मोदी लहर में भाजपा ने जिन सीटों को एक लाख से कम अंतर से जीता है वहां भाजपा समर्थकों की धड़कन बढ़ी हुई है क्योंकि इन सीटों पर सपा बसपा का कुल वोट भाजपा को पिछली बार मिले वोट से भी ज्यादा है। बस्ती सीट पर तो भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को 33562 मतों से ही जीत मिली थी इसी तरह गाज़ीपुर सीट पर भाजपा की जीत 32452 इलाहाबाद में 62009 लालगंज सीट पर 63000 और कुशीनगर सीट पर पचासी हजार रही है। संत कबीर नगर की सीट भाजपा ने 97000 से जीती थी इस सीट पर सांसद और विधायक की जूतम पैजार के बाद भाजपा ने प्रत्याशी बदल दिया है ऐसे में उसे भीतरघात का भी डर सता रहा है। पूर्वांचल के सियासी गणित में गठबंधन का हौसला बढ़ा रखा है और यही वजह है कि समाजवादी पार्टी दावा कर रही है कि पूर्वांचल की सभी सीटें उसकी झोली में जाने वाली है । तो दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि पूर्वांचल में भाजपा को सीधी लड़ाई में नुकसान उठाना पड़ सकता है वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि पूर्वांचल में मोदी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है पिछले बार उन्होंने पूर्वांचल की सीटें दिलाई थी यहां तक कि विधानसभा चुनाव में भी उनका जादू चला था अब पूर्वांचल में भाजपा का प्रदर्शन भी उन्हीं के करिश्मे पर टिका है।

बाइट/ अब्दुल हफीज गांधी प्रवक्ता समाजवादी पार्टी

बाइट/ योगेश मिश्रा राजनीतिक विश्लेषक


Conclusion:पीटीसी अखिलेश तिवारी

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