लखनऊः आम के साथ ही अब मलिहाबाद के बागवान लीची की खेती में भी अपनी पहचान बना रहे हैं. आम के के साथ लीची के पेड़ो में भी बौर आ गए हैं. लीची के बौर में फल लगने की प्रक्रिया भी तेजी से शुरू हो गई है. आम के साथ ही लीची के पेड़ों में बौर आता है, लेकिन लीची की फसल पहले तैयार हो जाती है. लीची की इतनी मांग होती है कि व्यापारी बागों से ही माल खरीद लेते हैं.
पोषक तत्वों से भरपूर होती है लीची
लीची अपनी गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. लीची के फल पोषक तत्वों से भरपूर एवं स्फूर्तिदायक होते हैं. इसके फल में शर्करा (11%), प्रोटीन (0.7%), वसा (0.3%), एवं अनेक विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. लीची का फल मरीजों एवं वृद्धों के लिए भी उपयोगी माना गया है.
कम समय और कम लागत में तैयार होती है लीची
जागरूक बागवान पन्नालाल ने बताया कि आम के साथ ही लीची के पेड़ों में भी बौर निकलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. आम की अपेक्षा लीची में कम लागत आती है और यह कम समय में तौयार भी हो जाती है. लीची को एक या दो बार कीटनाशक दवाओं से धोने के बाद आप पानी से ही धुल सकते हैं और लीची की फसल आम की फसल से पहले तैयार हो जाती है.
पहचान बना रही मलिहाबादी लीची
मलिहाबाद की लीची मंसूरी और मुजफ्फरपुर की लीची को भी स्वाद और रंग में पीछे छोड़ रही है. मलिहाबाद और काकोरी में बहुत ज्यादा लीची के बागान तो नही हैं लेकिन जो हैं उनमें बौर आ चुके हैं. यहां की लीची अपनी विशेषताओं के कारण अपनी अलग ही पहचान बना रही है.
लीची की बागवानी की ओर आकर्षित हो रहे बागवान
जागरूक बागवानों की मानें तो इस क्षेत्र में लीची की अच्छी बागवानी की जा सकती है और आम के साथ ही लीची की खेती कर अच्छी कमाई की जा सकती है. जिन बागवानों ने लीची के कुछ पेड़ तैयार कर लिए हैं वह इससे अच्छी आमदनी भी कर रहे हैं. क्षेत्र में तैयार लीची को देख क्षेत्रीय बागवान भी लीची की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. क्षेत्रीय बागवान पन्ना लाल, श्याम सिंह, अनिल सिंह, कृष्ण मोहन पाण्डेय, नरेश अवस्थी आदि ने बताया कि यहां कि जलवायु लीची के अनुकूल दिख रही है, जिससे अच्छी पैदावार की संभावनाएं हैं.
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तराई क्षेत्रों की अपेक्षा मलिहाबाद की लीची ज्यादा स्वादिष्ट
मुख्य उद्यान प्रभारी मलिहाबाद डॉ. राजीव कुमार वर्मा ने बताया कि क्षेत्र में लीची की सघन बागवानी की जा सकती है, जिससे किसानों को अच्छी आमदनी होगी. उन्होंने बताया कि वैसे तो लीची की पैदावार तराई इलाको में होती है. तराई क्षेत्र की और मलिहाबादी लीची में काफी फर्क पाया गया. उस लीची की अपेक्षा यहां की लीची काफी स्वादिष्ट है. यह कम समय और कम लागत में तैयार होने वाली फसल है.
छिड़काव करने से फल फटने का नहीं रहता डर
अक्सर देखा गया है कि उत्तर भारत की लीची पकने के बाद फट जाती है. मुख्य उद्यान प्रभारी ने उसका भी उपाय बताया है. उन्होंने कहा कि जब फल दाने के आकार का हो तो उस समय बोरान या पानी से छिड़काव कर दें तो फटने की समस्या दूर हो जाती है.