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दबिश के दौरान प्रोटोकॉल और प्लानिंग में फेल हुई पुलिस, सूचना का था अभाव: पूर्व डीजीपी

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस दौरान कानपुर में हुई मुठभेड़ पर उन्होंने कहा कि दबिश के दौरान प्रोटोकॉल और प्लानिंग का पालन करने में पुलिस विफल रही है. पुलिस से ज्यादा सूचनाएं अपराधियों के पास थी, जिसका उन्होंने फायदा उठाते हुए वारदात को अंजाम दिया.

an exclusive interview of former dgp mahesh chandra dwivedi
पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी से ईटीवी भारत की खास बातचीत.
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Published : Jul 3, 2020, 6:27 PM IST

Updated : Jul 3, 2020, 6:38 PM IST

लखनऊ: कानपुर में शातिर अपराधी और हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के साथ हुई पुलिस मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मियों के शहीद होने को लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. अपराधियों के यहां दबिश के दौरान किस प्रकार के प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए, इसको लेकर पूर्व महानिदेशक द्विवेदी कहते हैं कि इस घटना में ऐसा प्रतीत होता है कि सूचना पुलिस के पास कम और अपराधियों के पास ज्यादा थी.

पूर्व डीजीपी से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

दबिश देने के पहले हासिल करनी होगी जानकारी
पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी ने बताया कि पुलिस के मूवमेंट के बारे में या पुलिस कहीं भी दबिश के लिए जाती है तो हमारी पुलिस पार्टी सुरक्षित रहे, इसकी चिंता जरूर करनी चाहिए. इसके लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि हमें मालूम होना चाहिए कि अपराधी कितने हैं? उनके पास कितने हथियार हैं? साथ ही यह भी पता होना चाहिए कि वे कहां से हमला कर सकते हैं?

सूचना का दिखा अभाव
पूर्व डीजीपी का कहना है कि सामान्यतया अपराधी पुलिस पर हमला नहीं करते हैं, लेकिन हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे पर 60 मुकदमे थे. राजनीतिक संरक्षण से वह ऊपर की सीढ़ियां चढ़ रहा था तो पुलिस को और अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए थी. पुलिस के पास फोर्स तो पर्याप्त थी, लेकिन यह सूचना प्राप्त करने की कोशिश नहीं की कि हम पर कहां से हमला हो सकता है.

पुलिस तंत्र फेल
पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी बताते हैं, 'पुलिस को सूचना प्राप्त करने में चूक हुई है. गांव में लगता है कि पुलिस का कोई मुखबिर नहीं था, चौकीदार नहीं था, ग्राम प्रधान नहीं था, जो पुलिस की मदद करता. पुलिस को सूचना प्राप्त करने में पूरी तरह से चूक हुई है. इसके साथ ही अपराधियों को पुलिस के सारे मूवमेंट की जानकारी मिल रही थी, जेसीबी भी उन्होंने लगाकर पुलिस को रोकने का काम किया. मुख्य जो कमी थी, वह अपराधियों के विषय में सूचना प्राप्त करने की रही है. पुलिस को उनके हथियार और उनकी संख्या के बारे में और क्या वह हमला कर सकते हैं, किस लोकेशन से हमला कर सकते हैं, यह सूचना प्राप्त करने में पुलिस पूरी तरह से फेल हुई है.'

बुलेटप्रूफ जैकेट्स का करना चाहिए था प्रयोग
पुलिस की दबिश के दौरान पुलिसकर्मियों के पास सुरक्षा के उपकरण जैकेट्स आदि न होने के सवाल पर पूर्व डीजीपी कहते हैं, 'पुलिस ने शायद ऐसा सोचा ही नहीं कि हमारे ऊपर हमला होगा, लेकिन पुलिस को इसका ख्याल करना चाहिए. इसके प्रोटोकॉल्स का पालन करना चाहिए. इतना बड़ा हमला पुलिस पर होगा, शायद यह पुलिसकर्मियों ने नहीं सोचा. अगर ऐसा सोचा होता तो उन्हें अपने जैकेट लेकर जाना चाहिए था. उनकी प्लानिंग में कमी रह गई थी. उनको लगा होगा कि पुलिस पर हमला नहीं होगा. पूरी तैयारी के साथ पुलिस नहीं गई और इसी कारण यह हमला हो गया. पुलिस की तरफ से यह प्लानिंग की भी कमी रही कि गांव को किस तरह से घेरें और उन्हें यह सावधानी भी बरतनी चाहिए थी कि अपराधियों को पुलिस की सूचना न मिलने पाए. इसमें भी चूक हुई है.'

पुलिस को बदलना होगा अपना माइंडसेट
आगे बेहतर पुलिसिंग की किस प्रकार से कार्य योजना बनानी चाहिए, सवाल पर पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी कहते हैं, 'पहले तो पुलिस को यह माइंडसेट बदलना होगा कि अपराधी पुलिस पर हमला नहीं करेगा. पहले हम लोगों का माइंडसेट यही था कि सामान्यतया अपराधी पुलिस पर हमला नहीं करेगा, लेकिन अब धीरे-धीरे पुलिस पर हमले बहुत होने लगे हैं. इस हालत में पहले सोचना चाहिए कि हमें अपने बचाव के क्या तरीके अपनाने हैं. पुलिस की दबिश के दौरान अब पब्लिक बहुत ही शातिर तरीके से हमले करने लगी है. इस मामले में पब्लिक ढीठ हो गई है और बड़ी जल्दी पुलिस पर हमला कर देती है.'

बेहतर तरीके से हो प्लानिंग
पूर्व डीजीपी बताते हैं, 'पहले से हमें सोचकर और प्लानिंग बनाकर दबिश जैसे मूवमेंट करने होंगे. पुलिस में भी परिवर्तन की आवश्यकता है कि जिस अपराधी पर 60 तरह के मुकदमे हो और वह लखनऊ में पकड़ा जा चुका हो, फिर वह कैसे जमानत पर आया. इसको लेकर भी कानून की प्रक्रिया में संशोधन की आवश्यकता है कि क्या ऐसे आदमी को जमानत पर होना चाहिए. इसके साथ ही राजनैतिक संरक्षण अपराधियों को नहीं दिया जाना चाहिए. दुर्भाग्य से बहुत सारे दल ऐसा करते रहे हैं. ऐसे अपराधियों को लगातार टिकट भी मिलता रहा है, जो बहुत बड़ा दुर्भाग्य है. इससे राजनीतिक दलों को बचना चाहिए. चुनाव आयोग के नियमों में बदलाव होना चाहिए ताकि अपराधी किस्म के व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोका जा सके.

राजनेताओं के संरक्षण से बिगड़ती है स्थिति
राजनेताओं के प्रभाव में पुलिस के न आने के सवाल पर पूर्व डीजीपी कहते हैं कि सिर्फ एक व्यक्ति की राजनीतिक इच्छा से काम नहीं होगा. सिर्फ मुख्यमंत्री की इच्छा से कुछ नहीं होगा. नीचे के लोगों में भी राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए और उसी अनुसार पुलिस को छूट देकर काम करने चाहिए.

ये भी पढ़ें: कानपुर मुठभेड़: लॉ एंड आर्डर के मुद्दे पर विपक्षियों के निशाने पर सरकार, पढ़ें किसने क्या कहा

पहले की सरकारों ने बिगाड़ी स्थिति, सुधरने में लगेगा समय
पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी कहते हैं कि पूर्व की सरकारों ने स्थिति को इतना खराब कर दिया है कि उसको सुधारने में अभी बहुत समय लगेगा. इतनी जल्दी यह नहीं बदला जा सकता है, लेकिन यह जरूर है कि कुछ चीजें जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुलिस आयोग के नियमों का पालन कीजिए तो जरूर कुछ न कुछ बेहतर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अगर उन नियमों का पालन किया जाए तो कुछ सुधार हो सकता है. फिलहाल अपने यहां राजनीतिक हस्तक्षेप न हो, यह रोक पाना बहुत मुश्किल है.

लखनऊ: कानपुर में शातिर अपराधी और हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के साथ हुई पुलिस मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मियों के शहीद होने को लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. अपराधियों के यहां दबिश के दौरान किस प्रकार के प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए, इसको लेकर पूर्व महानिदेशक द्विवेदी कहते हैं कि इस घटना में ऐसा प्रतीत होता है कि सूचना पुलिस के पास कम और अपराधियों के पास ज्यादा थी.

पूर्व डीजीपी से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

दबिश देने के पहले हासिल करनी होगी जानकारी
पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी ने बताया कि पुलिस के मूवमेंट के बारे में या पुलिस कहीं भी दबिश के लिए जाती है तो हमारी पुलिस पार्टी सुरक्षित रहे, इसकी चिंता जरूर करनी चाहिए. इसके लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि हमें मालूम होना चाहिए कि अपराधी कितने हैं? उनके पास कितने हथियार हैं? साथ ही यह भी पता होना चाहिए कि वे कहां से हमला कर सकते हैं?

सूचना का दिखा अभाव
पूर्व डीजीपी का कहना है कि सामान्यतया अपराधी पुलिस पर हमला नहीं करते हैं, लेकिन हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे पर 60 मुकदमे थे. राजनीतिक संरक्षण से वह ऊपर की सीढ़ियां चढ़ रहा था तो पुलिस को और अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए थी. पुलिस के पास फोर्स तो पर्याप्त थी, लेकिन यह सूचना प्राप्त करने की कोशिश नहीं की कि हम पर कहां से हमला हो सकता है.

पुलिस तंत्र फेल
पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी बताते हैं, 'पुलिस को सूचना प्राप्त करने में चूक हुई है. गांव में लगता है कि पुलिस का कोई मुखबिर नहीं था, चौकीदार नहीं था, ग्राम प्रधान नहीं था, जो पुलिस की मदद करता. पुलिस को सूचना प्राप्त करने में पूरी तरह से चूक हुई है. इसके साथ ही अपराधियों को पुलिस के सारे मूवमेंट की जानकारी मिल रही थी, जेसीबी भी उन्होंने लगाकर पुलिस को रोकने का काम किया. मुख्य जो कमी थी, वह अपराधियों के विषय में सूचना प्राप्त करने की रही है. पुलिस को उनके हथियार और उनकी संख्या के बारे में और क्या वह हमला कर सकते हैं, किस लोकेशन से हमला कर सकते हैं, यह सूचना प्राप्त करने में पुलिस पूरी तरह से फेल हुई है.'

बुलेटप्रूफ जैकेट्स का करना चाहिए था प्रयोग
पुलिस की दबिश के दौरान पुलिसकर्मियों के पास सुरक्षा के उपकरण जैकेट्स आदि न होने के सवाल पर पूर्व डीजीपी कहते हैं, 'पुलिस ने शायद ऐसा सोचा ही नहीं कि हमारे ऊपर हमला होगा, लेकिन पुलिस को इसका ख्याल करना चाहिए. इसके प्रोटोकॉल्स का पालन करना चाहिए. इतना बड़ा हमला पुलिस पर होगा, शायद यह पुलिसकर्मियों ने नहीं सोचा. अगर ऐसा सोचा होता तो उन्हें अपने जैकेट लेकर जाना चाहिए था. उनकी प्लानिंग में कमी रह गई थी. उनको लगा होगा कि पुलिस पर हमला नहीं होगा. पूरी तैयारी के साथ पुलिस नहीं गई और इसी कारण यह हमला हो गया. पुलिस की तरफ से यह प्लानिंग की भी कमी रही कि गांव को किस तरह से घेरें और उन्हें यह सावधानी भी बरतनी चाहिए थी कि अपराधियों को पुलिस की सूचना न मिलने पाए. इसमें भी चूक हुई है.'

पुलिस को बदलना होगा अपना माइंडसेट
आगे बेहतर पुलिसिंग की किस प्रकार से कार्य योजना बनानी चाहिए, सवाल पर पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी कहते हैं, 'पहले तो पुलिस को यह माइंडसेट बदलना होगा कि अपराधी पुलिस पर हमला नहीं करेगा. पहले हम लोगों का माइंडसेट यही था कि सामान्यतया अपराधी पुलिस पर हमला नहीं करेगा, लेकिन अब धीरे-धीरे पुलिस पर हमले बहुत होने लगे हैं. इस हालत में पहले सोचना चाहिए कि हमें अपने बचाव के क्या तरीके अपनाने हैं. पुलिस की दबिश के दौरान अब पब्लिक बहुत ही शातिर तरीके से हमले करने लगी है. इस मामले में पब्लिक ढीठ हो गई है और बड़ी जल्दी पुलिस पर हमला कर देती है.'

बेहतर तरीके से हो प्लानिंग
पूर्व डीजीपी बताते हैं, 'पहले से हमें सोचकर और प्लानिंग बनाकर दबिश जैसे मूवमेंट करने होंगे. पुलिस में भी परिवर्तन की आवश्यकता है कि जिस अपराधी पर 60 तरह के मुकदमे हो और वह लखनऊ में पकड़ा जा चुका हो, फिर वह कैसे जमानत पर आया. इसको लेकर भी कानून की प्रक्रिया में संशोधन की आवश्यकता है कि क्या ऐसे आदमी को जमानत पर होना चाहिए. इसके साथ ही राजनैतिक संरक्षण अपराधियों को नहीं दिया जाना चाहिए. दुर्भाग्य से बहुत सारे दल ऐसा करते रहे हैं. ऐसे अपराधियों को लगातार टिकट भी मिलता रहा है, जो बहुत बड़ा दुर्भाग्य है. इससे राजनीतिक दलों को बचना चाहिए. चुनाव आयोग के नियमों में बदलाव होना चाहिए ताकि अपराधी किस्म के व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोका जा सके.

राजनेताओं के संरक्षण से बिगड़ती है स्थिति
राजनेताओं के प्रभाव में पुलिस के न आने के सवाल पर पूर्व डीजीपी कहते हैं कि सिर्फ एक व्यक्ति की राजनीतिक इच्छा से काम नहीं होगा. सिर्फ मुख्यमंत्री की इच्छा से कुछ नहीं होगा. नीचे के लोगों में भी राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए और उसी अनुसार पुलिस को छूट देकर काम करने चाहिए.

ये भी पढ़ें: कानपुर मुठभेड़: लॉ एंड आर्डर के मुद्दे पर विपक्षियों के निशाने पर सरकार, पढ़ें किसने क्या कहा

पहले की सरकारों ने बिगाड़ी स्थिति, सुधरने में लगेगा समय
पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी कहते हैं कि पूर्व की सरकारों ने स्थिति को इतना खराब कर दिया है कि उसको सुधारने में अभी बहुत समय लगेगा. इतनी जल्दी यह नहीं बदला जा सकता है, लेकिन यह जरूर है कि कुछ चीजें जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुलिस आयोग के नियमों का पालन कीजिए तो जरूर कुछ न कुछ बेहतर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अगर उन नियमों का पालन किया जाए तो कुछ सुधार हो सकता है. फिलहाल अपने यहां राजनीतिक हस्तक्षेप न हो, यह रोक पाना बहुत मुश्किल है.

Last Updated : Jul 3, 2020, 6:38 PM IST
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