लखनऊः उत्तर प्रदेश सरकार देश के अन्य राज्यों की तरह अपने उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध हो सके इसके लिए बिजली कंपनियों को सब्सिडी देती है. सरकार घरेलू उपभोक्ताओं के साथ घरेलू किसान ग्रामीण उपभोक्ताओं को काफी सब्सिडी प्रदान करती है. देश के टॉप 5 राज्यों में उत्तर प्रदेश का सब्सिडी के मामले में तीसरा स्थान है. बावजूद इसके अभी भी उत्तर प्रदेश में बिजली अन्य राज्यों की तुलना में सबसे महंगी है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है उपभोक्ताओं से अपना ही बकाया वसूल न कर पाना.
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन का जनवरी 2023 तक उपभोक्ताओं पर 61000 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है. अगर यही वसूली हो जाए तो उपभोक्ताओं की बिजली महंगी करने के बजाय सस्ती की जा सकती है. इसी मामले को लेकर बुधवार को उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने नियामक आयोग में जनहित याचिका दाखिल की है.
नियामक आयोग में दाखिल जनहित याचिका में मुद्दा उठाया गया कि जहां राज्य सरकार प्रदेश के उपभोक्ताओं की बिजली दरों में बढ़ोतरी न हो इसके लिए बड़ी सब्सिडी दे रही है. वहीं, दूसरी ओर उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर लगभग 25,133 करोड़ रुपये सरप्लस निकल रहा है. ऐसे में वर्तमान परिवेश में बिजली दरों में बढ़ोतरी के बजाय बिजली दरों में कमी पर चर्चा की जानी चाहिए.
अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि 10 अप्रैल से बिजली दरों में जो सुनवाई शुरू होने जा रही है, उसमें उपभोक्ताओं के सामने जो बिजली दर प्रस्तुतीकरण किया जाए. उसमें उपभोक्ताओं को बताया जाए कि उनका जो बिजली कंपनियों पर सरप्लस पैसा निकल रहा है उसकी स्थिति क्या है? इससे प्रदेश का उपभोक्ता भी समझ सके कि वर्तमान में कहां-कहां किसका हिसाब बाकी है. उसके आधार पर उपभोक्ता अपनी बात आयोग को बता सकें.
राज्य | टैरिफ सब्सिडी |
राजस्थान | 19873 करोड़ |
कर्नाटक | 19312 करोड़ |
उत्तर प्रदेश | 14516 करोड़ |
पंजाब | 11888 करोड़ |
महाराष्ट्र | 10462 करोड़ |
अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि वर्तमान वर्ष 2023-24 में उत्तर प्रदेश शायद देश का पहला राज्य हो जाएगा, जो सबसे ज्यादा राजकीय सब्सिडी देता है. ऐसा इसलिए करता है जिससे विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरें न बढ़ें. उत्तर प्रदेश एक अप्रैल से किसानों को मुफ्त बिजली देने जा रहा है और इस मद में राज्य सरकार राजकीय सब्सिडी भी देगी.