लखनऊ : चिड़ियाघर लखनऊ में 13 साल से कान और मुंह के कैंसर से लड़ते हुए बाघ किशन ने शुक्रवार को लखनऊ प्राणि उद्यान चिकित्सालय (Lucknow Zoological Park Hospital) में आखिरी सांस ली. बाघ ने पिछले कुछ दिनों से खाना पीना छोड़ दिया था. बाघ किशन के दुनिया से जाने का गम चिड़ियाघर प्रशासन के अधिकारियों के अलावा उसके बाड़े के आसपास के जानवरों के चेहरे पर रहा था.
बता दें, प्रदेश के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) जिले के 10 गांवों में लोग शाम होने से पहले घरों में कैद हो जाते थे. महिलाएं इसी किशन (बाघ) की दहशत के कारण बच्चों को स्कूल तक नहीं भेजती थीं. हालत यह थी कि लोग रात में बीमार भी होते तो अस्पताल जाने से घबराते थे. ये डर लाजमी था क्योंकि इस बाघ ने इन गांवों के 5 लोगों को खा गया था. इसके अलावा 10 से ज्यादा लोगों को अधमरा कर चुका था. इसके बाद उसे वन विभाग की रेस्क्यू टीम की मदद से पकड़ कर लखनऊ चिड़ियाघर लाया गया था.
चिड़ियाघर के वन्य चिकित्सक उत्कर्ष शुक्ला (Zoo's wildlife doctor Utkarsh Shukla) ने बताया कि बाघ की उम्र करीब 15 साल होती है. किशन ने अपनी पूरी उम्र कैंसर में बिताई. यानी कि उसने अपनी औसत उम्र से ज्यादा जीवन बिताया. जानलेवा बीमारी से ग्रस्त बाघ 10 साल भी नहीं जी पाता, लेकिन किशन की इम्यूनिटी इतनी स्ट्रॉन्ग थी कि वह कैंसर से 13 साल तक लड़ता रहा. लगातार ट्रीटमेंट के बाद किशन हमें पहचानने लगा था. 7 महीने पहले जब हम उसे एंटी कैंसर डोज (anti cancer dose) देने पहुंचे थे तो वह हमें देखकर तेजी से पूंछ हिलाने लगा था. बाघों में पूंछ हिलाने का मतलब होता है कि वे खुश हैं. ट्रीटमेंट के हर स्टेज में वो कभी परेशान नहीं हुआ.