लखनऊ : लोक सभा में बीते दिनों गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने देश में दलितों के प्रति होने वाले अपराधों का आंकड़ा रखा था. इन आंकड़ों में उत्तर प्रदेश एक नंबर के पायदान पर था. आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 से साल 2020 के बीच दलित और आदिवासियों के खिलाफ आपराधिक मामले बढ़े हैं. 2018 में दलितों के खिलाफ 42,793 आपराधिक मामले सामने आए थे तो साल 2020 ये मामले 50 हजार पहुंच गए. साल 2020 में 12,714 मामले अकेले यूपी में थे.
यूपी के लखनऊ में माल थाना क्षेत्र में 30 जून को मजदूरी करने वाला दलित युवक शिवम रात को चारपाई में सो रहा था. तभी बदमाशों ने चारपाई के नीचे बम रख दिया, बम फटने से शिवम बुरी तरह झुलस गया था. इसके बाद इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी. आरोप लगा कि जमीनी विवाद में भू माफियाओं ने उसकी हत्या की थी. वहीं जून 2022 में ही अलीगढ़ के थाना गोंडा क्षेत्र में दलित युवक अरुण की महज 70 रुपये के लेनदेन मामले को लेकर गोली मारकर हत्या कर दी गई. भाई को बचाने पहुंचे मनोज को भी लाठी-डंडों से पीट-पीटकर घायल कर दिया था.
आगरा में पुलिस कस्टडी में अरुण बाल्मीकि की मौत, हाथरस में गुड़िया की मौत, सोनभद्र के उम्भा में 11 आदिवासियों की सामुहिक हत्या, ये कुछ घटनाएं यूपी की तश्वीर-ए-हालात बयां कर रही हैं. ये सच है कि यूपी में बीते कुछ सालों में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. ये बात एनसीआरबी व केंद्र सरकार दोनों ही मान रही हैं. लोक सभा में बीते दिनों तेलंगाना से कांग्रेस के सांसद कोमाती रेड्डी और टीआरएस के सांसद मन्ने श्रीनिवास रेड्डी के सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने देश में साल 2018 से 2020 तक हुए दलितों के प्रति अपराधों का आंकड़ा रखा था. इसके अनुसार देश में साल 2018 में दलितों के खिलाफ 42,793 आपराधिक मामले सामने आए थे, जो साल 2020 में बढ़कर 50 हजार पहुंच गए. लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में दलितों के खिलाफ 45,961 मामले सामने आए थे
यूपी और बिहार दलित उत्पीड़न में सबसे आगे :
मंत्री द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश दलित उत्पीड़न में सबसे आगे रहा है. साल 2018 में उत्तर प्रदेश में 11,924 मामले दर्ज हुए थ, जो साल 2019 में बढ़कर 11,829 और साल 2020 में 12,714 हो गए. दूसरे नंबर पर बिहार राज्य है. बिहार में 2018 में 7,061 मामले सामने आए, जो साल 2019 में कम होकर 6,544 पर पहुंच गए. लेकिन ये आंकड़े साल 2020 में बढ़कर 7,368 पर पहुंच गए. यूपी में बीजेपी की सरकार है, तो बिहार में बीजेपी नीतीश सरकार के सहयोगी हैं.
ऐतिहासिक मानसिकता फिर से हुई है सक्रीय: प्रोफेसर
दलित चिंतक प्रोफेसर कविराज कहते है कि ऐतिहासिक सामाजिक मानसिकता, जो बीच में डाइल्यूट हो गयी थी. वह एक बार फिर से सक्रिय हो गई है. छोटी-छोटी बातों में दलितों की हत्या हो जा रही है. कविराज कहते है कि कुछ राजनीतिक दल, खासकर सत्ताधारी पार्टी के लोग यह सोच कर चलते हैं कि उन्हें दलित वोट नहीं करते हैं. ऐसे में उनसे वह लोग उस स्तर से जुड़ाव नहीं रख पाते हैं. प्रोफेसर कहते है कि संसद में जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं, इससे कहीं ज्यादा तो ऐसे मामले होते है जिनकी सुनवाई ही नहीं होती है.
सपा-बीजेपी में जुबानी जंग :
समाजवादी पार्टी नेता मनोज यादव का कहना है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में दलितों के साथ अत्याचार बढ़ रहा है. सूबे में न ही महिलाएं सुरक्षित हैं और न ही दलित. प्रदेश में पूरी तरह सामंतवाद हावी है. सपा नेता कहते है कि भाजपा कहती है कि महिलाओं के सम्मान में बीजेपी मैदान में, बल्कि राज्य में दलित महिलाओं व बच्चों के लिए सुकून से रहने के लिए कोई भी जगह नहीं बची है. वहीं बीजेपी प्रवक्ता अशोक पांडेय कहते है कि आतंकवादियों का मुकदमा हटाने वाली पार्टी दलितों की बात कर रही है. सपा सरकार में दलितों और कितना अत्याचार हुआ है, ये प्रदेश का बच्चा-बच्चा जानता है. हमारी सरकार में हर शिकायत पर एफआईआर दर्ज होती है तो आंकड़े दिखते है. उनकी सरकार में तो थानों से भगा दिया जाता था.
प्रदेश में बढ़े आपराधिक मामलों पर राजनीतिक विशेषज्ञ राघवेंद्र त्रिपाठी का मानना है कि पूर्व की सरकारों में गरीब और दलित वर्ग की थानों में सुनवाई नहीं होती थी. योगी आदित्यनाथ की सरकार में अपराध थानों में मुकदमे दर्ज हो रहे हैं, यही कारण है कि अपराधों की संख्या भी अधिक दिख रही है. हालांकि इस संख्या को कम करने की जिम्मेदारी भी सरकार की ही है. अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, जिससे दलित उत्पीड़न रोका जा सके.
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