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नाबालिग के अपहरण और दुराचार के प्रयास के अभियुक्त को कारावास, 23 साल पुराने मामले में सजा - 7 वर्ष के कठोर कारावास

नाबालिग को बहला-फुसलाकर अपहरण करने के बाद उसके साथ दुराचार का प्रयास (kidnapping and attempt to rape of minor) करने के आरोपी दिनेश कुमार को कोर्ट ने 7 वर्ष के कठोर कारावास एवं 15 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है.

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Published : Oct 29, 2022, 9:47 PM IST

लखनऊ. नाबालिग को बहला-फुसलाकर अपहरण करने के बाद उसके साथ दुराचार का प्रयास (kidnapping and attempt to rape of minor) करने के आरोपी दिनेश कुमार को अनुसूचित जाति जनजाति निवारण अधिनियम के विशेष न्यायाधीश अनुरोध मिश्र ने 7 वर्ष के कठोर कारावास एवं 15 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है.

अदालत के समक्ष अभियोजन की ओर से तर्क प्रस्तुत करते हुए वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी सुनीता यादव एवं एडीजीसी अरविंद मिश्रा व शिवाधर द्विवेदी का तर्क था कि इस मामले की रिपोर्ट पीड़िता की मां द्वारा 20 दिसंबर 2000 को जिलाधिकारी के माध्यम से थाना सरोजनी नगर में दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया है कि उसकी 15 वर्षीय बेटी को अतीक की मदद से 3 जनवरी 2000 को आरोपी दिनेश बहला-फुसलाकर भगा ले गया है. जब शाम को मजदूरी करके वह घर आई तो पड़ोस के लोगों ने बताया कि उसकी लड़की घर पर नहीं है तथा अतीक द्वारा भी बताया गया कि उसकी लड़की दिनेश के साथ चली गई है. एक वर्ष तक न्याय की गुहार लगाने के बाद 20 दिसम्बर 2000 को जिलाधिकारी लखनऊ को दिए गए प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि उसने अपनी लड़की के गायब होने के बाबत सरोजनी नगर थाने में शिकायत की थी, लेकिन पुलिस ने जब उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी तब उसने जिलाधिकारी को अर्जी देकर न्याय की गुहार लगाई, जिसके बाद 22 दिसंबर 2000 को सरोजनी नगर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया. अदालत ने इस मामले में अन्य आरोपी अतीक एवं जमाल अहमद को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है, जबकि आरोपी दिनेश को कारावास एवं जुर्माने की सजा सुनाई है.

लखनऊ. नाबालिग को बहला-फुसलाकर अपहरण करने के बाद उसके साथ दुराचार का प्रयास (kidnapping and attempt to rape of minor) करने के आरोपी दिनेश कुमार को अनुसूचित जाति जनजाति निवारण अधिनियम के विशेष न्यायाधीश अनुरोध मिश्र ने 7 वर्ष के कठोर कारावास एवं 15 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है.

अदालत के समक्ष अभियोजन की ओर से तर्क प्रस्तुत करते हुए वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी सुनीता यादव एवं एडीजीसी अरविंद मिश्रा व शिवाधर द्विवेदी का तर्क था कि इस मामले की रिपोर्ट पीड़िता की मां द्वारा 20 दिसंबर 2000 को जिलाधिकारी के माध्यम से थाना सरोजनी नगर में दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया है कि उसकी 15 वर्षीय बेटी को अतीक की मदद से 3 जनवरी 2000 को आरोपी दिनेश बहला-फुसलाकर भगा ले गया है. जब शाम को मजदूरी करके वह घर आई तो पड़ोस के लोगों ने बताया कि उसकी लड़की घर पर नहीं है तथा अतीक द्वारा भी बताया गया कि उसकी लड़की दिनेश के साथ चली गई है. एक वर्ष तक न्याय की गुहार लगाने के बाद 20 दिसम्बर 2000 को जिलाधिकारी लखनऊ को दिए गए प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि उसने अपनी लड़की के गायब होने के बाबत सरोजनी नगर थाने में शिकायत की थी, लेकिन पुलिस ने जब उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी तब उसने जिलाधिकारी को अर्जी देकर न्याय की गुहार लगाई, जिसके बाद 22 दिसंबर 2000 को सरोजनी नगर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया. अदालत ने इस मामले में अन्य आरोपी अतीक एवं जमाल अहमद को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है, जबकि आरोपी दिनेश को कारावास एवं जुर्माने की सजा सुनाई है.

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