लखनऊ: राजधानी में कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टर, नर्स और स्टाफ किस स्थिति में काम कर रहे हैं. ये सिर्फ वहीं जानते हैं. पिछले साल (2020) प्रशासन ने इन डॉक्टरों के लिए होटलों में रुकने की व्यवस्था की थी. जहां पर ड्यूटी से आने के बाद डॉक्टर क्वारंटाइन रहते थे. फिलहाल इस बार प्रशासन की तरफ से ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है. जिसकी वजह से डॉक्टर व नर्स काफी परेशान हैं. क्योंकि, ड्यूटी करने के बाद उन्हें वापस घर जाना पड़ रहा है. ऐसे में उनके परिवार के लिए भी यह काफी खतरनाक साबित हो सकता है. दरअसल, अस्पताल में जब मरीज आते हैं तो उनकी कोरोना जांच नहीं हुई रहती है या फिर लैब टेक्नीशियन उनका सैंपल लेते हैं. इस दौरान वे (डॉक्टर-नर्स) कोरोना संक्रमित मरीजों से घिरे रहते हैं.
बच्चों को लेकर सताता रहता है डर
लोकबंधु अस्पताल की डॉ. प्रियंका पांडेय ने बताया कि कोरोना की दूसरी लहर को लेकर हर कोई परेशान है. दिसंबर में ड्यूटी की थी और अब फिर से कोविड अस्पताल में ड्यूटी लगने वाली है. ड्यूटी से जब वापस घर लौटते हैं तो घर वालों को लेकर हमेशा डर बना रहता है. क्योंकि घर में छोटे बच्चे हैं जो देखते ही आकर गले लगते हैं, लेकिन हमें अपने आप को भी संभालना होता है और उन्हें भी रोकना पड़ता है. ऐसे में काफी दिक्कत हो रही है.
उन्होंने बताया कि अस्पताल में इस समय सबसे बड़ी दिक्कत बेडों की है. क्योंकि इस समय अस्पताल के बेड फुल हो चुके हैं और मरीज स्ट्रक्चर या जमीन पर लेटने को मजबूर है. जिन्हें देखने के लिए हमें वहां जाना पड़ता है. इस दौरान हम पीपीई किट पहने हुए रहते हैं, लेकिन फिर भी डर बना हुआ रहता है. 14 दिन ड्यूटी करने के बाद 1 दिन का अवकाश मिलता है. जिस दौरान कोरोना जांच होती है और रिपोर्ट आने तक ड्यूटी नहीं लगती है. जैसे ही रिपोर्ट आ जाती हैं उसके बाद फिर 14 दिनों की ड्यूटी लगाई जाती है. अपनी शिफ्ट के अनुसार ड्यूटी करके फ्रेश होते हैं. इसमें भी कम से कम 3 घंटा एक्स्ट्रा लग जाता है. ड्यूटी अगर 8 से 3 बजे तक की है तो हम 6:30 बजे अस्पताल से बाहर निकल पाते हैं. क्योंकि डॉफिंग एरिया में डॉक्टर समेत, स्टाफ, नर्स और कर्मचारी भी पीपीई किट चेंज करने जाते हैं. जिसकी वजह से वहां पर समय लग जाता है.
अस्पताल में करना पड़ता है रात-दिन काम
बलरामपुर अस्पताल के लैब टेक्नीशियन सुनील कुमार बताते हैं कि सुबह 8 बजे वह अस्पताल में आ जाते हैं और फिर 2 बजे तक ड्यूटी करते हैं. इस दौरान मरीज का सैंपल लेने और उसकी रिपोर्ट तैयार करने में काफी समय लग जाता है. जब तक सारा काम नहीं हो जाता. तब तक अस्पताल में ही रहना पड़ता है. कभी-कभी रात में भी इमरजेंसी में आना पड़ता है. घर पर माता-पिता के अलावा पत्नी और दो बच्चे हैं. उन्हें लेकर थोड़ा सा डर बना रहता है. इसलिए अस्पताल से ही सैनिटाइज होकर निकलते हैं.
सुनील कुमार ने बताया कि घर के अंदर एंट्री करने से पहले घर के बाहर बने बाथरूम में नहाकर, मोबाइल और पर्स को सैनिटाइज करके ही घर में घुसते हैं ताकि परिवार में किसी को भी उनकी वजह से समस्या न हो. सुनील कुमार बताते हैं कि उन्हें सिर्फ जिंदा इंसानों का ही नहीं बल्कि मोर्चरी में रखी लावारिश लाशों का भी सैंपल लेना पड़ता है. इस दौरान उन्होंने लोगों से अपील किया है कि घर से बाहर बहुत कम निकले और कोरोना से डरे नहीं. प्रशासन द्वारा दिए गए दिशा निर्देश का पालन करें.
अस्पताल से घर लौटने में लगता है डर
लोकबंधु अस्पताल कोविड-19 आईसीयू में दोपहर 2 से रात 9 बजे की ड्यूटी कर रही नेहा सचान बताती हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में ड्यूटी करना बेहद ही चुनौतीपूर्ण है और खासकर ड्यूटी करके वापस घर लौटने में काफी डर रहता है. उन्होंने बताया कि उनकी ड्यूटी 1 सप्ताह की होताी है. जिसके बाद वह 1 सप्ताह क्वारंटाइन रहती हैं. फिर अगले सप्ताह ड्यूटी लगती है. इस दौरान सबसे बड़ी दिक्कत यह रहती है कि कितना भी संभल कर अस्पताल में काम करो, लेकिन घर लौटने में डर लगा ही रहता है.
इसे भी पढे़ं- विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए दिल्ली सरकार ने किया लॉकडाउन: सिद्धार्थ नाथ