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भविष्य की रणनीति को धार देने में जुटी बहुजन समाज पार्टी - बहुजन समाज पार्टी

बहुजन समाज पार्टी की ओर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का समर्थन करने के तुरंत बाद मायावती ने पार्टी में कई तब्दीलियां कीं. मायावती के ताबड़तोड़ फैसलों से कहा जा सकता है कि बसपा अपनी भविष्य की रणनीति के साथ काम करती हुई आगे बढ़ रही है.

मायावती
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Published : Aug 8, 2019, 7:29 PM IST

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती मौजूदा परिस्थितियों को भांपकर स्पष्ट नीतियों के साथ आगे बढ़ रही हैं. जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किए जाने के फैसले पर जहां पूरा विपक्ष असमंजस की स्थिति में था, वहीं मायावती ने इस प्रकरण पर अपनी स्पष्ट नीति सामने रखी. उन्होंने मोदी सरकार के इस फैसले का खुलकर स्वागत किया. वहीं अब मायावती ने अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए मुनकाद अली को यूपी बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.

बसपा की स्पष्ट रणनीति के साथ आगे बढ़ रही हैं मायावती.

2012 के विधानसभा चुनाव में हार से लेकर 2019 तक बसपा ने कई उतार चढ़ाव देखे. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां बीएसपी एक भी सीट नहीं जीत सकी वहीं साल 2019 में सपा के साथ मिलकर लड़े गए लोकसभा चुनाव में बसपा को 10 सीटें मिलीं. हालांकि चुनाव जीतने के बाद बसपा ने सपा पर आरोप लगाते हुए गठबंधन से किनारा कर लिया था.

अनुच्छेद 370 पर दिया स्पष्ट समर्थन
केंद्र सरकार की ओर से जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सभी पार्टियां असमंजस की स्थिति में दिखीं. वहीं बसपा ने स्पष्ट नीतियों के तहत इस फैसले का समर्थन किया. एक ओर सपा ने जहां सदन में कुछ और तो सदन से बाहर कुछ और ही कहा. वहीं कांग्रेस इस मसले को लेकर दो फाड़ में बंट गई. यहां तक कि रायबरेली सीट से विधायक अदिति सिंह ने केंद्र सरकार के इस फैसले को राष्ट्र हित में लिया गया फैसला करार दिया. वहीं लोकसभा में बसपा नेता दानिश अली पार्टी लाइन पर उतना प्रभावी ढंग से संदेश नहीं दे सके, जिसको लेकर उन्हें सदन में नेता बसपा का पद खोना पड़ा.

पार्टी में फेरबदल के पीछे की रणनीति
बसपा अध्यक्ष मायावती ने दानिश अली को सदन में नेता बसपा के पद से हटाकर जौनपुर से बसपा सांसद श्याम सिंह यादव को बसपा दल का नेता बना दिया. हालांकि पार्टी ने दलील देते हुए कहा कि श्याम सिंह यादव पिछड़े समाज से आते हैं, इसलिए उनका चयन किया गया है. बसपा 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' के विचार के आधार पर काम कर रही है, इसलिए पार्टी के विभिन्न पदों पर सभी समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व दिखना चाहिए.

वहीं मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए बसपा ने मुनकाद अली को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. पार्टी ने मुनकाद अली पर भरोसा जताकर मुसलमानों में यह संदेश देने का प्रयास किया है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के लिए सबसे मुफीद दल अगर कोई है, तो वह बहुजन समाज पार्टी है. इससे बसपा को मुसलमानों का भी साथ मिलता दिख रहा है. मौजूदा समय में अगर उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों की सियासत पर नजर डालें तो उसमें सबसे स्पष्ट नीति बहुजन समाज पार्टी की दिखाई दे रही है.

जानकारों की समझ से
राजनीतिक जानकार अशोक राजपूत का कहना है कि लंबे समय बाद बसपा स्पष्ट रणनीति के साथ सामने आई है. बसपा मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए सोशल इंजीनियरिंग कर मतदाताओं को रिझाने में लग गई है. बसपा अध्यक्ष मायावती अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़े और सवर्ण मतदाताओं को साधने के लिए संगठन में सुनियोजित तरीके से फेरबदल कर रही हैं.

इसे भी पढ़ें- मुनकाद अली बने बसपा प्रदेश अध्यक्ष, आरएस कुशवाहा को दी गई केंद्रीय महासचिव की जिम्मेदारी

वहीं राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी का कहना है कि बसपा की नीति हमेशा से स्पष्ट रही है. बसपा का फोकस हमेशा से दलितों पर रहा है. मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए मायावती ने दलित और मुस्लिम गठजोड़ पर जोर देते हुए सवर्णों और पिछड़ों को भी साथ लाने का प्रयास शुरू कर दिया है. मौके की नजाकत को देखते हुए बसपा ने अनुच्छेद 370 का समर्थन कर बड़ा संदेश दिया है. मायावती के इस फैसले को लोग अलग-अलग चश्मे से देख रहे हैं. हकीकत यह है कि मायावती के इस फैसले से बसपा की सराहना हो रही है.

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती मौजूदा परिस्थितियों को भांपकर स्पष्ट नीतियों के साथ आगे बढ़ रही हैं. जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किए जाने के फैसले पर जहां पूरा विपक्ष असमंजस की स्थिति में था, वहीं मायावती ने इस प्रकरण पर अपनी स्पष्ट नीति सामने रखी. उन्होंने मोदी सरकार के इस फैसले का खुलकर स्वागत किया. वहीं अब मायावती ने अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए मुनकाद अली को यूपी बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.

बसपा की स्पष्ट रणनीति के साथ आगे बढ़ रही हैं मायावती.

2012 के विधानसभा चुनाव में हार से लेकर 2019 तक बसपा ने कई उतार चढ़ाव देखे. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां बीएसपी एक भी सीट नहीं जीत सकी वहीं साल 2019 में सपा के साथ मिलकर लड़े गए लोकसभा चुनाव में बसपा को 10 सीटें मिलीं. हालांकि चुनाव जीतने के बाद बसपा ने सपा पर आरोप लगाते हुए गठबंधन से किनारा कर लिया था.

अनुच्छेद 370 पर दिया स्पष्ट समर्थन
केंद्र सरकार की ओर से जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सभी पार्टियां असमंजस की स्थिति में दिखीं. वहीं बसपा ने स्पष्ट नीतियों के तहत इस फैसले का समर्थन किया. एक ओर सपा ने जहां सदन में कुछ और तो सदन से बाहर कुछ और ही कहा. वहीं कांग्रेस इस मसले को लेकर दो फाड़ में बंट गई. यहां तक कि रायबरेली सीट से विधायक अदिति सिंह ने केंद्र सरकार के इस फैसले को राष्ट्र हित में लिया गया फैसला करार दिया. वहीं लोकसभा में बसपा नेता दानिश अली पार्टी लाइन पर उतना प्रभावी ढंग से संदेश नहीं दे सके, जिसको लेकर उन्हें सदन में नेता बसपा का पद खोना पड़ा.

पार्टी में फेरबदल के पीछे की रणनीति
बसपा अध्यक्ष मायावती ने दानिश अली को सदन में नेता बसपा के पद से हटाकर जौनपुर से बसपा सांसद श्याम सिंह यादव को बसपा दल का नेता बना दिया. हालांकि पार्टी ने दलील देते हुए कहा कि श्याम सिंह यादव पिछड़े समाज से आते हैं, इसलिए उनका चयन किया गया है. बसपा 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' के विचार के आधार पर काम कर रही है, इसलिए पार्टी के विभिन्न पदों पर सभी समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व दिखना चाहिए.

वहीं मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए बसपा ने मुनकाद अली को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. पार्टी ने मुनकाद अली पर भरोसा जताकर मुसलमानों में यह संदेश देने का प्रयास किया है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के लिए सबसे मुफीद दल अगर कोई है, तो वह बहुजन समाज पार्टी है. इससे बसपा को मुसलमानों का भी साथ मिलता दिख रहा है. मौजूदा समय में अगर उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों की सियासत पर नजर डालें तो उसमें सबसे स्पष्ट नीति बहुजन समाज पार्टी की दिखाई दे रही है.

जानकारों की समझ से
राजनीतिक जानकार अशोक राजपूत का कहना है कि लंबे समय बाद बसपा स्पष्ट रणनीति के साथ सामने आई है. बसपा मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए सोशल इंजीनियरिंग कर मतदाताओं को रिझाने में लग गई है. बसपा अध्यक्ष मायावती अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़े और सवर्ण मतदाताओं को साधने के लिए संगठन में सुनियोजित तरीके से फेरबदल कर रही हैं.

इसे भी पढ़ें- मुनकाद अली बने बसपा प्रदेश अध्यक्ष, आरएस कुशवाहा को दी गई केंद्रीय महासचिव की जिम्मेदारी

वहीं राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी का कहना है कि बसपा की नीति हमेशा से स्पष्ट रही है. बसपा का फोकस हमेशा से दलितों पर रहा है. मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए मायावती ने दलित और मुस्लिम गठजोड़ पर जोर देते हुए सवर्णों और पिछड़ों को भी साथ लाने का प्रयास शुरू कर दिया है. मौके की नजाकत को देखते हुए बसपा ने अनुच्छेद 370 का समर्थन कर बड़ा संदेश दिया है. मायावती के इस फैसले को लोग अलग-अलग चश्मे से देख रहे हैं. हकीकत यह है कि मायावती के इस फैसले से बसपा की सराहना हो रही है.

Intro:लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती मौजूदा परिस्थितियों को भापकर एकदम स्पष्ट नीति पर आगे कदम बढ़ा रही हैं। केंद्र की मोदी सरकार के जम्मू कश्मीर में धारा 370 निष्प्रभावी किए जाने के फैसले से एक ओर जहां पूरा विपक्ष असमंजस की स्थिति में आ गया था। उसकी स्पष्ट नीति सामने नहीं आई। कांग्रेस में दो फाड़ दिखा। तो सपा उलझी हुई दिखी। वहीं बसपा अध्यक्ष मायावती ने इस प्रकरण पर अपनी स्पष्ट नीति सामने रखी। उन्होंने मोदी सरकार के इस फैसले का खुलकर स्वागत किया। दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा में भी बसपा ने भाजपा द्वारा लाए गए इस विधेयक का समर्थन किया। इससे पहले भी सपा से गठबंधन हो या फिर गठबंधन से अलग होने का, सब में उनकी स्पष्ट नीति दिखाई पड़ी। अब वह अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए यूपी बसपा का अध्यक्ष पूर्व राज्यसभा सांसद मुनकाद अली को बनाया है।


Body:यूपी की सियासत में 2012 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को सपा के हाथों करारी शिकस्त मिली। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा लोकसभा में शून्य पर पहुंच गई। एक भी सांसद बसपा के चुनकर संसद नहीं पहुंचे। बसपा को उम्मीद थी कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे लाभ होगा लेकिन इस बार भी परिस्थितियां एकदम विपरीत ही रहीं।

इसके बाद बसपा अध्यक्ष मायावती ने अखिलेश यादव की पहल पर समाजवादी पार्टी के साथ जाने का निर्णय लिया। इसका उन्हें लाभ मिला। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा शून्य से 10 पर पहुंच गई। लोकसभा चुनाव के कुछ ही दिनों बाद मायावती ने समाजवादी पार्टी से किनारा कर लिया। किनारा करते वक्त सपा पर आरोप लगाया कि उसके मतदाता बसपा के खाते में ट्रांसफर नहीं हुए।

केंद्र की मोदी सरकार के जम्मू कश्मीर में धारा 370 निष्प्रभावी किए जाने के फैसले पर समाजवादी पार्टी स्पष्ट संदेश नहीं दे सकी। सदन में कुछ और सदन के बाहर कुछ और पार्टी के नेता बोल गए। वही कांग्रेस की बात करें तो उसने केंद्र सरकार द्वारा धारा 370 के निष्प्रभावी किए जाने की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए। कांग्रेस साफ तौर पर यह नहीं कह पाई की बीजेपी ने जो किया वह ठीक है या गलत। जनता को ये संदेश देने में कांग्रेस असफल साबित हुई।

कांग्रेस के कई नेताओं ने मोदी सरकार के इस कदम की भूरि भूरि प्रशंसा की। केंद्रीय नेता जनार्दन द्विवेदी ने तो यहां तक कह दिया कि यह फैसला एकदम ठीक है। यूपी की रायबरेली सीट से विधायक आदिती सिंह ने मोदी सरकार के इस फैसले को राष्ट्र हित में कदम करार दिया। खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि कश्मीर देश का अभिन्न अंग है। धारा 370 निष्प्रभावी किए जाने का फैसला एकदम उचित है क्या फैसला देश और जम्मू कश्मीर दोनों के लिए काफी लाभप्रद साबित होगा।

बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो उसकी हर तरह से नीति स्पष्ट दिखाई दी। बसपा ने सदन में और सदन से बाहर भी, मोदी सरकार के इस कदम की प्रशंसा की। राजसभा में सतीश चंद्र मिश्रा ने धारा 370 को निष्प्रभावी किए जाने के प्रस्ताव को समर्थन की घोषणा की। लोकसभा में बसपा के नेता दानिश अली पार्टी लाइन पर उतना प्रभावी ढंग से संदेश नहीं दे सके। जिसका उन्हें सदन में नेता बसपा का पद खोना पड़ा।

बसपा अध्यक्ष मायावती ने दानिश अली को नेता बसपा के पद से हटाकर जौनपुर से बसपा के सांसद श्याम सिंह यादव को बसपा दल का नेता बना दिया है। हालाकी पार्टी ने दलील दी है कि श्याम सिंह यादव पिछड़े समाज से आते हैं। इसलिए उनका चयन किया गया है। बसपा सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के विचार के आधार पर काम कर रही है। इसलिए पार्टी के विभिन्न पदों पर भी सभी समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व दिखना चाहिए।

मुस्लिम मतदाता मतदाताओं को रिझाने के लिए बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश इकाई का बसपा अध्यक्ष पूर्व राज्यसभा सांसद मुनकाद अली को बनाया है। मुनकाद अली बसपा अध्यक्ष के बेहद करीबी नेताओं में से माने जाते हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश में पार्टी की कमान करीब करीब इन्हीं हाथों में रही है। पार्टी के आर्थिक मामले की जिम्मेदारी भी लोकसभा चुनाव के दौरान इन्हीं के कंधों पर थी। पार्टी ने मुनकाद अली पर भरोसा जताकर मुसलमानों में यह संदेश देने का प्रयास किया है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के लिए सबसे मुफीद दल अगर कोई है तो बहुजन समाज पार्टी है।

बसपा को मुसलमानों का साथ इसलिए भी मिलता दिख रहा है क्योंकि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की नीति बहुत कुछ स्पष्ट नहीं दिखाई दे रही है। पार्टी के राज्यसभा सांसद इस्तीफा देकर दे रहे हैं। सपा के सांसद इस्तीफा ही नहीं दे रहे बल्कि वे भारतीय जनता पार्टी में भी शामिल हो रहे हैं। बावजूद इसके अखिलेश यादव सीधे तौर पर कोई ना तो कार्यवाही कर रहे हैं और ना ही नेताओं की नाराजगी दूर करने के लिए ठोस कदम उठा रहे हैं। मौजूदा समय में अगर उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों की सियासत पर नजर डालें तो उसमें सबसे स्पष्ट नीति बहुजन समाज पार्टी की दिखाई दे रही है।




Conclusion:बाईट- राजनीत राजनीति क्षेत्र के जानकार अशोक राजपूत का कहना है कि लंबे समय बाद बहुजन समाज पार्टी स्पष्ट रणनीति के साथ सामने आई है। बसपा मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए सोशल इंजीनियरिंग कर मतदाताओं को रिझाने में लग गई है। बसपा अध्यक्ष मायावती अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़े और सवर्ण मतदाताओं को साधने के लिए संगठन में सुनियोजित तरीके से फेरबदल भी किया है।

बाईट-राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी की नीति हमेशा से स्पष्ट रही है। उसका हमेशा से दलितों पर फोकस रहा है। मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए मायावती ने दलित और मुस्लिम गठजोड़ पर जोर देते हुए सवर्णों और पिछड़ों को भी साथ लाने का प्रयास शुरू कर दिया है। इसका लाभ उन्हें 2007 के विधानसभा चुनाव में भी मिल चुका है। मौके की नजाकत को देखते हुए बसपा ने धारा 370 के समर्थन में भी खड़े होकर बड़ा संदेश दिया है। उनके इस फैसले को लोग अलग अलग चश्मे से देख रहे हैं। हकीकत यह है कि इस फैसले से देश के बहुत बड़े हिस्से से बसपा की सराहना हो रही है।
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